Saturday 24 December 2011

क्यों कहते है स्वामी श्रद्धानन्द को कल्याण मार्ग का पथिक??



स्वामी श्रद्धानन्द जी के बचपन का नाम मुंशीराम था |इसने पिता श्री नानक चाँद जी east india company में इंस्पेक्टर थे ,इसी वजह से उनका जगह जगह तबादला होता रहता था और मुंशीराम की पढाई में व्यवधान आता था...|कालांतर में कुछ दुर्व्यसनी मित्रो की सांगत के कारन ही मुंशीराम के अन्दर बहुत सी बुरी आदतों ने प्रवेश कर लिया.|
बनारस के अन्दर के कहावत प्रचलित थी की जो अपने बच्चो को बहार भेजेंगे वह एक नास्तिक जादूगर के जादू में रंग जायेगा |उनकी माँ उन्हें बाहर नहीं निकलने देती थी...लेकिन भविष्य में इसी जादूगर (स्वामी दयानंद सरस्वती) से उनकी मुलाकात बरेली में हुई |स्वामी दयानंद के प्रवचनों से प्रभावित होकर इन्होने अपना जीवन बदल डाला और जीवन के चौराहे से निकल कर लक्ष्य का निश्चय करना सिखा...|महारिशी दयानंद के उपदेशो एवं जीवन की कुछ घटनाओ के कारन ही मुंशीराम को इश्वर पर भरोसा हुआ |इसके उपरांत वे लाहौर के आर्य समाज में जाकर सत्यार्थ प्रकाश लिया और उसको पढ़ कर अपने जीवन को नयी दिशा देते हुए ,सभी दुर्व्यसनो का त्याग करके वे महात्मा मुंशीराम बने..|
सर्वप्रथम आधुनिक भारत में 'कृष्ण-सुदामा' की गुरुकुल शिक्षा पद्धति को जीवित किया|अपनी समाती बेच कर स्वामी जी ने गुरुकिल की स्थापना करी |इसी तरह उन्होंने भारतीय राजनीती में नए काल का खंड किया और स्वतंत्रता आन्दोलन में देश को नयी दिशा दी |उन्हें न केवल वैदिक धर्मं का अपितु सभी धर्मो का समर्थन मिला और इसकी मिसाल है की उन्होंने जामा मस्जिद से मंत्रो का गान किया,जलिंवाला बाघ में कांगेस की अध्यक्षता की ,चांदनी चौक में गोरो की संगीनों के सामने अंग्रेजो को ललकारा|वो स्वामी श्रद्धानन्द ही थे जिन्होंने एक अनपढ़ भारत को पढ़ाने का सपना देखा|वह स्वामी श्रद्धानन्द नहीं तो कौन था जिसने शुद्धिकरण की प्रथा प्रारंभ की जिससे जो हिन्दू इसाई बन गए है,भटक गए है ,उन्हें पुनः हिन्दू धर्मं में लिया जाये |वो स्वामी श्रद्धानन्द थे जिन्होंने गुरुकुल कांगरी की स्थापना करके वेद की शिक्षाओ को प्रसारित किया |
आज जरुरत इस बात की है की हम स्वामी श्रद्धानन्द के विचारो को समझ कर उस पर चले ,और किसी व्यक्ति से घृणा न करे ,उसके अवगुणों को न देखे अपितु अपने सद्गुणों से उसके दुर्व्यसन दूर करने का प्रयास करें | आज आर्य समाज में कुछ लोग शराबी ,दुर्वस्नी लोगो को प्रवेश नहीं करने देते वो ऐसा करते है जैसे की कहीं दुर्गंधी है और वो खिड़की इसलिए बंद करते है कहीं वह दुर्गन्ध उनके कमरे में न घुस आये |वे लोग भूल जाते है की इस दुर्गंध्य्क्त वातावरण को बदलने के लिए हमे सुगन्धित वातावरण तैयार करना होगा....|यदि स्वामी जी दयानंद जी  से न मिलते तो आज हमे श्रद्धानन्द जी जैसे वो हीरा न मिलता जिसने हमारे भारत को एक ज्ञानवान,सुशिक्षित समाज में बदलने का सफल प्रयास किया .|हर इंसान के अन्दरकहीं न कहीं बुराई छुपी है,दुर्व्यसन है जो मुंशीराम का सूचक है |
आइये उठे,जागे,और अपने अन्दर के मुंशीराम को पहचान कर महात्मा मुंशीराम बने ,स्वामी जी के सपने को सच कर जायें और स्वामी श्रद्धानन्द कल्याण  मार्ग के पथिक कहलाये...
Wartch Video at http://www.youtube.com/watch?v=dEqt6pCwOBU&feature=c4-overview&list=UU0jmNbH1s9526PzNHBAfH2Q 

पं ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )
Purohit,
Arya Samaj Mandir
Vivek Vihar ,Delhi

Wednesday 21 December 2011

आत्मविश्वास :आपकी हार या जीत का फैसला


मैंने हमेशा परमात्मा पर विश्वास किया है ..और आप सभी को भ अपने चिंतन के द्वारा उस परमपिता परमेश्वर की शरण में रहने का अपना विचार दिया...|जीवन में ऐसा समय आता है जब हम सोचते है की "अब तो सब ख़तम हो गया",हम कह देते है की "मै अब टूट सा गया हू" ,"अब जीत नामुमकिन है" , "यह जीवन तो नरक है" ,"इस जीवन से अच्छी तो मृत्यु है"  |
लेकिन आप ही बताईये क्या ऐसे विचार आने चाहिए,??क्यों हम खुद पर भरोसा खो देते है ??आज जीवन में आप जहाँ पहुच गए है वहां क्या कोई आप को गोद में लाकर छोड़ गया जो आप आगे बढ़ने से डरते है ,...जरा विचार करें .....

मित्रो हमेशा अपनी उप्लाब्धियो को याद रखे ,अपने जीवन के अच्छे पहलु को याद रखे...मन की हमे अपनी कमियों पर भी ध्यान रखना चाहिए लेकिन अगर आप अपने अन्दर के हुनर को भूल जायेंगे तो आप जरुर वही ख़तम हो जायेंगे....यदि किसी चिड़िया को पता ही न हो की वो उड़ भी सकती है तो क्या वह उड़ेगी????और फिर अगर वो उड़ने का प्रयास न करे तो क्या उड़ पायेगी???ठीक उसी प्रकार से हमारे अन्दर वो हुनर है,वो ताकत है ,वो जज्बा है की हम किसी भी चट्टान को गिरा सकते है और विजयी हो सकते है,बस अगर जरुरत है तो अपने इस हुनर,ताकत,क़ाबलियत को पहचाननने की |
आज हमारी समस्या है की हम अपने आप को इतना कम आंकते है की अगर सामने रुई पड़ी हो और उसे रस्ते से हटाना हो तो हम उसे भी एक भारी  पत्थर समझ कर नहीं हटाते अपना रास्ता बदल लेते है ....
मित्रो ,अपने अन्दर की शक्ति को जागृत करो अपने आप को ही अपनी ताकत बनाओ,किसी 'बैसाखी' से चलना  छोड़ दो,अपने पर विश्वास रखो  ,तुम्हारे अन्दर ही कहीं 'शिवाजी' तो कहीं 'चंद्रशेखर आज़ाद' जैसे वीर है ,आपमें से ही कोई 'बिल गेट्ज' तो कोई 'धीरुभाई अम्बानी' है लेकिन मित्रो अपने मूल्य को इतना न गिरा दो की ये समाज,ये दुनिया भी तुम्हारे मूल्य को न समझ सके....
तो हे वीर!उठो ,नयी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ो जिससे न केवल अपने लक्ष्य को प्राप्त करो अपितु अपने माता-पिता के सपनो को भी साकार करो....आपने अगर इस उर्जा को प्राप्त कर लिया,इस शक्ति को जागृत कर लिया और इस मंत्र को समझ लिया तो समझ लो आप जंग जीत गए फिर तो बस घोषणा होने की औपचारिकता बची है...इसलिए कहते है की "आत्मविश्वास ही आपकी हार या जीत का फैसला करता है .....
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633)
(Purohit,Arya Samaj
Vivek Vihar,Delhi)
Remember always: If you really put a small value upon yourself, rest assured that the world will not raise your price.
"It is not the mountain we conquer but ourselves".  ~Edmund Hillary

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Monday 19 December 2011

रूस ने कहा की गीता हिंसा एवं आतंकवाद को बढ़ावा देती है ,क्या ये सही है ????


रूस ने हिन्दू ग्रन्थ 'गीता' को  बैन कर दिया ,उनका कहना  है की ये पुस्तक  हिंसा को बढ़ावा देती है,आतंकवाद की समर्थक है | आइये आज इसी पर विचार करते है की क्या सचमुच श्री कृष्ण ने हिंसा की शिक्षा दी?क्या युगप्रवर्तक के नाम से जाने जाने वाले श्रीकृष्ण आतंकवाद को बढ़ावा देते थे??सत्य क्या है ???
गीता हमे आतंकवाद नहीं,जीने की कला सिखाती है|
गीता हमे बहार की चकाचौंध से हटकर अन्दर के प्रकाशवान आन्तरिक आत्मविश्वास से परिचय करवाती है |
गीता हमे जीवन के उतार चढ़ाव में स्थिर रहना सिखाती है |
गीता हमे प्रकृति के साथ सामंजस्य करना सिखाती है|
और ऊपर कही गयी एक एक बात को सिद्ध क्या जा सकता है |........
गीता के अन्दर जो शिक्षा है उसका विश्लेषण मेरी दृष्टिकोण में :-
यदि मैं एक व्यक्ति से कहू की आप के दीपक जला कर ले आईये ,लेकिन दीपक को खुली जगह में ही जलना| निश्चित ही यह कठिन कार्य है ,लेकिन वह व्यक्ति एक बगीचे में गया और एक वृक्ष के निचे बैठकर उसे जला लिए ,लेकिन जलाते ही वह दीपक उसके हाथ से छूट गया और पूरे बगीचे में आग लग गयी|अब मैं आपसे पूछता हु -
दीपक के न जलने का कारन क्या था?कौन था दीपक का दुश्मन ? ...आप कहेंगे हवा |
अब मई आपसे पूछता हू की वह आग किसकी वजह से फैली ?....तो आप कहेंगे हवा की वजह से....
जो हवा कुछ क्षण पहले दीपक की दुश्मन थी वही अब दोस्त बन कर आग को फैलाने में मदद कर रही है......गीता का सन्देश  भी कुछ aiisa  ही है की विपरीत परिस्थिति में हम अटूट  ,अखंड,अटल,आस्थावान रहते है तो हमारी विपरीत परिस्थिति भी अनुकूल बन जाती है |जीवन में इतना परिश्रम करे,इतना आत्मविश्वास के साथ के साथ आगे बढे की आपके दुश्मन भी आपकी सहायता करने पर मजबूर हो जाये,वो आपके साथ चलने को मजबूर हो जाये.....जीवन में विजय प्राप्त करने के लिए अपनी विपरीत परिस्थिति को भी अपने अनुकूल बनाना सीखो यह है गीता का सन्देश....जीवन में विजय प्राप्त करने के लिए संघर्ष द्वारा परिश्रम का रास्ता चुनो यह है गीता का सन्देश.......||||||


गीता में श्री कृष्ण कहते है की "आप कर्म करे और फल की इच्छा न करे " क्या इसमें हिंसा है ,मै कहता हु यदि इस बात को आज का विद्यार्थी समझ ले तो देश में जो हर रोज हमे सुनने को आता है किसी बालक ने परीक्षाफल के डर से आत्महत्या कर ली,वो होगी???क्या श्री कृष्ण ने यहाँ, हिंसा को बढ़ावा दिया?यदि उन्होंने ने यह कहा की जीवन में सत्य और असत्य को समझे तो क्या ये गलत है .....???
मेरे मित्रो गीता में जो अनमोल बाते लिखी है वह सच में कोई वेद का विद्वान् ही कह सकता है ,श्री कृष्ण सच्चे अर्थो में वेद के विद्वान थे....यह बात सिद्ध भी की जा चुकी है की कौन सा श्लोक उन्होंने किस वेद से लिया है और मंत्र क्या है जहाँ से उन्होंने ये बात कही.....
इसलिए गीता जैसे ग्रन्थ का विरोध करना तो शायद हमारी संस्कृति पर दाग  लगाने जैसा है,हम इसका विरोध करते है  ....कोई भी आदालत चाहे जो फैसला करे लेकिन गीता की सार्थकता पर प्रश्नचिंह नहीं लगाया  जा सकता......




ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )

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Monday 12 December 2011

खुशहाल जिन्दगी को कैसे पाएं ???

जो व्यक्ति महान बनना चाहता है उनके लिए सामवेद की एक ऋचा बहुत ही सुन्दर संकेत देती है की हे मनुष्य !तू अपने जीवन को यज्ञ की और ले चल| लेकिन यज्ञ का क्या तात्पर्य है ,यज्ञ का अर्थ बहुत ही गहन,विशाल व रहस्यों से परिपूर्ण है की जैसे यज्ञ जो है ,कभी अकेले यज्ञ नहीं कर सकता ,अर्थात यदि समिधा(लकड़ी) चाहे की अकेले यज्ञ कर ले तो ये मुमकिन नहीं है .घरात चाहे की वो अपनी महत्ता को साबित कर दे तो यज्ञ सम्पन्न नहीं हो सकता क्युकी जब तक सभी वस्तुए मिलते नहीं ,संयुक्त नहीं होते तब तक यज्ञ संभव नहीं है ,ठीक उसी प्रकार से मित्रो जब तक हम अपनी इन्द्रिय,मनन,वचन,कर्म से संयुक्त नहीं हो जाते,मिलकर कार्य नहीं करते तो सफलता प्राप्त करना बहुत मुश्किल हो जायेगा |इसलिए यदि हम जीवन में उचाई को प्राप्त करना चाहते है तो हमे ह्रदय व आत्मा  को परमपिता परमात्मा से संयुक्त करना पड़ेगा ताकि महाशक्ति बन कर हम अपने लक्ष्य को भेद सके |
क्युकी जैसे यज्ञ में दिव्या पदाथ जलकर भी भस्म नहीं होते अपितु सुक्ष्म रूप से आसपास के वातावरण को सुगन्धित व पुष्ट बना देते है ठीक उसी प्रकार से जो भक्त परमात्मा रुपी अग्नि को अपने ह्रदय में प्रज्वलित कर गया और अपने अन्दर के अहंकार को खत्म कर देता है वह सर्वविद सफलता और विजय को प्राप्त करता है |
तो आइये खुशहाल जीवन के लिए,जिन्दगी की जिन्दादिली के लिए अपनी जिन्दगी की इस बगिया में यज्ञ रुपी फल की पवित्र वर्षा के द्वारा फूले  फले ||

पं ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )

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Sunday 27 November 2011

सफलता प्राप्त करने के लिए जरुरी है त्रिविध शक्ति :आइये इसको समझे...

मित्रो,आज जीवन में कौन सफल नहीं होना चाहता ,,हर व्यक्ति दुसरे से आगे बढ़ना चाहता है ,ऊंचा उठाना चाहता है ,सफल होना चाहता है ....इसमें कोई खराबी नहीं है ,प्रतिस्पर्धा की भावना से अपने अन्दर सुधार आता है लेकिन सही तरीके से.| कोई भी व्यक्ति सिर्फ चाहने से,बोल देने से सफल नहीं हो जाता उसके लिए उसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है ....वेद में कहा गया है की सफलता प्राप्त करने के लिए त्रिविध शक्ति (शारीरिक,बौद्धिक,आत्मिक) की आवश्यकता है ....आइये इसपर विचार करे ..
कभी कभी इनमे से कोई एक या फिर दो होने पर भी सफलता मिल जाती है ...
शारीरिक बल :शारीरक बल से भी बहुत सारे कार्य सिध्द होते है ,जैसे यदि महाभारत का उद्धरण ले तो ध्यान दीजिये की चक्रव्यू की रचना कौरवो  ने करी और उसका रक्षक ड्रोन जैसे महारथी को बनाया लेकिन अभिमन्यु अपनी वीरता और शारीरिक,बौद्धिक बल के द्वारा उसमे प्रवेश करने में सफल रहा ...इसलिए अपने शारीर को स्वस्थ रखना चाहिए
अब बात करते है बौद्धिक बल की ,बहुत से युद्ध हथियारों से नहीं बुध्धि से लड़े जाते है ये आप सभी जानते है ,यदि हम अपनी बुधि का सही प्रयोग न करे तो उसे कह दिया
 जाता है strategy failure .| उद्धरण आप महाभारत के यक्ष-युधिष्ठिर संवाद का ले सकते है जहाँ युधिष्ठिर ने अपने बौद्धिक बल से अपने सारे भाइयो को बचाया था |
अब बात आती है आत्मिक बल की ,,,,इसे समझना बहुत जरुरी है.| हमे कहा  बोलना है ,कब बोलना है ,कैसे बोलना है ये भी समझने की जरुरत है .जीवन में संयम का भी बहुत महत्व है ,यदि व्यक्ति अचानक बिना सोचे समझे कार्य कर दे तो वह मार खा सकता है इसलिए आपको आत्मिक रूप से मजबूत होना होगा .इसका उद्धरण आप श्री कृष्ण को ले सकते है जिन्हें योगिराज भी कहा जाता है
चाहे कितनी सफलता ही क्यों न मिल जाये हमेशा सज्जन रहे ,अपने व्यव्हार में शालीनता रहे,वाणी में मधुरता है रहे क्रोध में अनावश्यक निर्णय न करना यही है  आपका आत्मिक रूप से मजबूत होना |
मित्रो जरा विचार करें और अपने लक्ष्य को सोचे ,और देखे ,विश्लेषण करे की क्या आप अपने लक्ष्य की और बढ़ रहे हो??क्या आप जिस रस्ते पर चल रहे हो वह आपकी मंजिल तक पहुचता है ???क्या आपके पास वो त्रिविध शक्ति है जिससे आप अपनी मंजिल को हासिल करोगे??? सिर्फ ऊंचे सपने देखने से सपना सच नहीं हो जाता ,उस पर कठोर परिश्रम करें ,सोचे और विचार करें....
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633)
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Thursday 24 November 2011

आत्मजागरण :क्रांति की मशाल


प्रिय मित्रो,
आज  अन्ना जी के वक्तव्य पर बवाल हो रहा है कि ज सार्वजनिक रूप से झगडा फसाद करता है  पूरे दिन कमाने के बाद जब शाम को घर में गृहणी उसका इंतज़ार कर रही होती है तब वो शराबी अपने दिन भर की मेहनत की कमाई को शराब में उड़ा देता है और उसके बच्चे घर में भूखे पेट सो जाते है ,उस शराबी को सुधारने की 3 बार चेतावनी देने के बाद यदि वह नहीं सुधरता तो उसको सार्वजनिक रूप से दण्डित किया जाये ....
जरा विचार कीजिये,...जब किसी भवन को सुन्दर,सुरम्य व अपने अनुकूल भवन बनाना हो तो पहले वहां के खंडहर को तोडा जाता है और उसके स्थान पर भवन खड़ा किया जाता है ..| जिस प्रकार हमारे शारीर में रीढ़ की हड्डी का स्थान होता है ठीक उसी प्रकार से युवा वर्ग का स्थान समाज में होता है | यदि इस युवा वर्ग को ही ख़तम कर दिया जाये तो समाज रुपी भवन को जर्जर होते देर न लगेगी |  शराब ,नशाखोरी की लत इंसान को मानसिक रूप से नष्ट कर देती है ,और कहा भी गया है की मन के हारे हार है और मन के जीते जीत | 
इसलिए ,हम अन्ना का समर्थन करते है क्योकि कहने को तो केरल आज सबसे ज्यादा साक्षर राज्य है लेकिन अगर आकड़ो की बात करे तो सबसे ज्यादा शराब की खपत भी वहीँ होती है ,सबसे ज्यादा आत्महत्या (आकड़ो के माध्यम से) केरल में होती है /......
सिर्फ पाबन्दी लगा देने से बुराई समाप्त नहीं होती ,बुराई समाप्त होती है आत्मजागरण से आज के युवा को हमे जगाना है नशे के खिलाफ ताकि नशा स्वयं समाप्त हो जाये ...| आज जरुरत है अपने अन्दर झाकने की की हम धन,बल,'संस्कार' ,परिवार से पूर्ण होने पर भी नशे की ओर क्यों भागते है ??? इसका कारन लगता है  मन का कमजोर होना ,मन को मजबूत करे ,आत्मचिंतन करे...मनन की शक्ति बहुत बलवान होती है इसी ने एक 'नरेन्द्र नाथ 'को 'स्वामी विवेकानंद' बनादिया, 'गुदड़ी के लाल ' 'लाल बहादुर शास्त्री बने','मूलशंकर' 'स्वामी दयानंद' बने ....
अपने अन्दर सहनशीलता को लाओ,ज्ञान के माध्यम से सत्य और असत्य ,सही और गलत में अंतर को पहचानो ,जीवन में बड़ा आदमी बन जाना ही सब कुछ नहीं है ,एक अच्छा इंसान बनना भी जरुरी है.इंसान अच्छा बनता है ज्ञान से,विचारो से ,कर्म से इसलिए मित्रो आत्मज्गरण करे ,और अपने अन्दर एक क्रांति की मशाल को जलाये और इन बातो पर विचार करे....
ब्रह्मदेव वेदालंकार 
(09350894633)



Thursday 17 November 2011

मैने माता पिता के अहसानों को चुका दिया !!!


कुछ दिन पहले मेरा एक आर्य समाज में  प्रवचन का कार्यक्रम था ,वहां पर प्रवचन के उपरांत एक महानुभाव मेरे पास आये और प्रशन किया की "मेरे माता पिता ने मेरी पढाई पर बहुत खर्च किया था ,आज मै ऊचे पद पर पहुच गया हू मैंने उन्हें वो पैसा लौटा दिया और उनके रहने की व्यवस्था कर दी ,इसलिए मै मानता हू की मैंने उनका अहसान चुका दिया है ,लेकिन वो यह नहीं मानते ,मै क्या करू??"
मैंने कहां-
महोदय,जो आपके माता पिता ने पैसे खर्च किये वो आपने लौटा दिए पर वो पल,वो क्षण,वो समय लौटा दिया,जो आपके माता पिता ने आपको पालने में व्यतीत किया?एक छोटा बच्चा जब गलती करता है तो उसके पिता उसे समझाते है,लेकिन जब एक बूढ़ा पिता जब गलती करता है तो हम उसे डाटते है....जरा विचार करें ...
जब एक बच्चा चलते चलते गिरता है तो हम उसे हाथ पकड़ कर चलना  सिखाते है लेकिन जब एक बूढ़ा पिता चलते हुए गिर जाये तो हम गुस्सा दिखाते है ...हम बूढ़े माँ-बाप को पैसा देकर छोड़ देते है अकेला जीने के लिए जहाँ उसे सहारे की जरुरत होती है ,लेकिन जरा विचार करें अगर माता पिता एक २ साल के छोटे बच्चे को छोड़ दे तो क्या वो जी पायेगा ......फिर भी न जाने क्यों लोग कहते है की हमने उनके अहसान चुका दिए.....!
वेद में कहां गया है की माता पिता की सेवा करना हमारा धर्मं है ...लेकिन वो सेवा कैसी हो ये समझने की जरुरत है ...इंसान को ये नहीं भूलना चाहिए की जिस समय से माता पिता गुज़र रहे है वो समय निश्चित रूप से हमारा भी आएगा...|क्या हमारा कर्त्तव्य नहीं की हम अपने माता-पिता को खुशिया दे जिन्होंने हमारे लिए अपनी खुशिया कुर्बान कर दी????
मुझे एक घटना याद आती है,एक समय एक राज्य में राजा  राज करता था...उसने अपनी माँ से कहा की तूने जो किया है मै वो तुझे  दे चुका हू अब तू मुझ पर अपना हक मत जमाया कर...|एक दिन रात्रि में जब राजा सो रहा था तब माँ ने उसके बिस्तर में लोटे से पानी डाल दिया,राजा की नींद खुली और वो अपशब्द का प्रयोग करते हुए बोला -अरे बुढ़िया ! ये क्या किया मेरा बिस्तर गीला कर दिया ,तू क्या चाहती है ???माँ ने उत्तर दिया-"बेटा,जब तू छोटा था इसी तरह रात को नींद में बिस्तर गीला कर देता था और रोने लगता था  ,तब मै तुझे सूखे में सुलाती थी और खुद गीले में सोती थी,क्या वो समय भूल गया..."
मित्रो यह सुन कर राजा की आंखे खुली रह गयी और उसे अपनी गलती का अहसास हो गया,पैरो में माँ के गिर कर रोने लगा.........

मित्रो माता पिता का आशीर्वाद न हो तो हम जीवन में कभी भी सफल नहीं हो सकते...,यदि माता पिता के प्रति अपना दायित्व पूरा नहीं करते तो कभी सुखी नहीं रह सकते...उन्होंने जो हमारे लिए किया वह अहसान कभी नहीं चुका सकते ,प्रयास जरुर कर सकते है इसलिए हमेशा अपने माता-पिता की सेवा करते हुए जीवन में आगे बढे,उनकी सेवा करें ,विजयी बने...और इससे न केवल आपको आशीर्वाद प्राप्त होगा अपितु आपको आत्मविश्वास भी मिलेगा,नयी ऊर्जा मिलेगी......

पं ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 ) .

Monday 14 November 2011

आप क्यों डरते है ?किससे डरते है ?आप कमजोर है ??


            इश्वर जो कुछ करता है अच्छा ही करता है |
           मानव तू परिवर्तन से कहे को डरता है ||
          
             जब से दुनिया बनी है तब से रोज बदलती है ,
            जो शै आज यहाँ है ,कल वो आगे चलती है,
            देख के अदला बदली तू आहें क्यों भरता है ,
            मानव तू परिवर्तन से कहे को डरता है ||


           दुःख सुख आते जाते रहते सबके जीवन में
           पत्जध और बहारें दोनों जैसे गुलशन में
           चढ़ता  है तूफ़ान कभी और कभी उतरता है ,
            मानव तू परिवर्तन से कहे को डरता है ||
          
           कितनी लम्बी रात हो लेकिन दिन तो आएगा ,
           जल में कमल खिलेगा फिर वो मुस्कुराएगा ,
          देता है जो कष्ट वही कष्टों को हरता है ,
           मानव तू परिवर्तन से कहे को डरता है ||


        
 इस कविता के माध्यम से कवी कितना सुन्दर सन्देश देता है .....परिवर्तन ,बदलाव इस जीवन का नियम है ,लेकिन हम इतना बदलाव से डरते क्यों है(why we resist change?) ,क्या हम किसी से डरते है ??क्या हमे इश्वर पर भरोसा नहीं है ??क्या हमे अपने पिता पर ही भरोसा नहीं ???क्या हम अपनी काबिलियत पर शक करते है ??? क्या हमे हार जाने का डर है ????जरा चिंतन करे.........
इस जीवन में हमेशा बदलाव होते रहे है और आगे भी होंगे हमे उन्हें स्वीकार करना चाहिए अपना पूर्ण परिश्रम करना चाहिए....क्योंकि  इश्वर जो कुछ भी  करता है अच्छा ही करता है ....
मित्रो ये जीवन है हम सिर्फ कर्म कर सकते लेकिन फल हमेशा इश्वर ही देता है ,,वह ही जनता है की हमारे लिए कब और किस समय क्या अच्छा है ....यदि वह आपकी अपेक्षा अनुरूप नहीं देता इसका अर्थ है उसके पास आपके लिए और भी कुछ अच्छा है,अभी जो आपके लिए सही है वह आपको प्राप्त हुआ...आप सभी जानते है की सोना भी तपने के बाद ही निखरता है ठीक उसी प्रकार जीवन में चुनौती हमे हमेशा मजबूत बनाने के लिए होती है उससे भागे नहीं,डरे नहीं,...अपने पिता पर भरोसा करे, इश्वर हमारा पिता है ....तो क्या कोई पिता अपने पुत्र को कष्ट देता है,उत्तर है नहीं....निश्चित ही अह हमे कुछ सिखाना चाहता है ....उसको सीखे और जीवन में बदलाव से न डरे उसे स्वीकार करे और अपना कर्म करे...यदि आप इसी सोच के साथ आगे बढ़ेंगे तो दुःख ,दुःख नहीं रह जायेगा,वह तो एक सीखने  का समय बन जायेगा(learning period). 
मित्रो इन्ही विचारो के साथ मैं  आज यही रुकता हु,और मैं  विश्वास रखता हू की  आप नयी उर्जा के साथ,नए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ेंगे  ,अपने लक्ष्य  पर ध्यान देंगे,कठनाइयों पर नहीं.......
शुभकामनाओ सहित
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )

Saturday 12 November 2011

सूर्य को पूजना छोड़ कर उसके सन्देश को ग्रहण करो ,पर क्या है सन्देश?


सीखना एक कला है | इंसान अपने जीवनकाल में निरंतर ,प्रतिदिन,हरपाल सीखता है.....सीख कर और उस पर चल ही जीवन को उत्क्रष्ट बनाया जा सकता है | हमे निरंतर ज्ञान अर्जित करके उससे अपने जीवन और सुखमयी बनाना चाहिए लेकिन अपने लक्ष्य को भी नहीं भूलना चाहिए..
इस संसार में हर वास्तु चाहे वो छोटी हो या बड़ी हमे सिखाती है...जैसे सूर्य को देखिये,सूर्य हमेशा समय से उदय होता है और समय से अस्त होता है ,पर सूर्य से हमने क्या सीखा ?क्या हम अपने काम को समय से करते है...हम कहते है 'कल' करेंगे ,क्यों?क्या सूर्य ये कह दे की आज मैं उदय नहीं होऊंगा,तो क्या ये सृष्टि चल सकती है?निश्चित ही उत्तर है 'नहीं"
 दूसरा,अगर आप ध्यान दे तो देखेंगे कि सूर्य नदी से जल लेता है (water lifecycle -evaporation ) ,सरोवर से जल लेता है,नाले से जल लेता है परन्तु जहाँ से भी जल लेता है चाहे वो स्वच्छ जल हो या गन्दा हो लेकिन हमेशा सूर्य स्वच्छ जल ही ग्रहण करता है.....नाला ही देख लीजिये लेकिन जब सूरज वहां से जल लेता है तो गन्दा जल नहीं लेता....अर्थात मित्रो जीवन में कोई कितना ही गिरा हुआ क्यों न हो,कोई कितना ही गन्दा हो लेकिन आप  हमेशा अच्छी बातो को ग्रहण करो,अच्छे विचारो को ग्रहण करो,अच्छे संस्कारो को प्राप्त करो लेकिन बुरे विचारो को कभी प्राप्त मत करो...सूर्य जैसे प्रकाशवान बनो,इसलिए स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने  भी कहा कि "सत्य कि ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सदैव तैयार रहो" |हमें स्वयं अपने लिए पुरुषार्थ करना है दूसरों की कमाई पर नहीं जीना दूसरों के परिश्रम का फल नहीं खाना .....सूर्य को पूजना छोड़ कर उसके सन्देश को ग्रहण करो ,यही सूर्य देवता कि सच्ची पूजा है...पर यदि आप इन बातो ओ ग्रहण नहीं करते तो सूर्य कि पूजा करना व्यर्थ है........|यही वेद का सन्देश है...इस पर चले और निरंतर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने कि ओर बढे.

ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633)

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Tuesday 8 November 2011

इश्वर का ध्यान क्यों?क्यों ओ3म का जप करे?


इस जीवन में सुख भी है और दुःख भी है | सुख का  अर्थ है प्रकाश और दुःख का अर्थ अँधेरा है | परमात्मा प्रकाश वाला है ,अर्थात मित्रो जहाँ आप परमात्मा से पास है वहां सुख है और जहाँ आप परमात्मा से दूर है वहां दुःख है ....जिस प्रकार अँधेरा आने पर हम प्रकाश की कामना करते और दुःख आने पर सुख की कामना करते है ...मेरे मित्रो जब आप हमेशा इश्वर के निकट बने रहेंगे उसका ध्यान करेंगे उसका धन्यवाद करेंगे तो निश्चित रूप से आप उस प्रभु के निकट रहेंगे,प्रकाश के निकट रहेंगे अर्थात आप सुख में रहेंगे.....
इसलिए मित्रो हमेशा उस प्रकाशवान परमपिता परमात्मा का धन्यवाद करते हुए उसका ध्यान करे और उसके समीप रहे तो निश्चित रूप से आपको दुःख नह्ही होगा.....जब आप यह समझेंगे की सब प्रभु का है और प्रभु ही करने वाला है तो फिर चिंता कैसी,दुःख किस बात वही आपको मार्ग दिखायेगा ,सत्य की और ले जायेगा...व्यर्थ में चिंता न करे,अपना कर्त्तव्य कर्म करे,निश्चित ही विजय आपकी होगी.........
यही एक  कारण है जो संत महात्मा हमेशा इश्वर का ध्यान करने को कहते है ,ओ3म का जप करने को कहते है ताकि आप इश्वर के निकट रहे और सुख में रहे.....

ब्रह्मदेव वेदालंकार 
(09350894633)

Friday 4 November 2011

क्यों करे अच्छे लोगो का संग??क्या है अच्छे विचारों का महत्व ??


मिट्टी के ठेले से सुगंध आ रही थी और दूसरे से दुर्गन्ध | जब दोनों आपस में मिले तो बात करने लगे की हम दोनों एक ही मिट्टी के बने है फिर ये  अंतर कैसा? | सुगन्धित ठेले ने कहा की सत्संगति का असर है ,मुझे गुलाब के निचे पड़े रहने का अवसर मिला और तुम गोबर के निचे दबे रहे...| यही है सत्संगति का असर |
आचार्य चाणक्य ने कहा है सत्संग से दुष्ट एवं दुर्जन पुरषों में सज्जनता अवश्य आ जाती है लेकिन दुष्टों के संग से सज्जनों में दुष्टता नहीं आती ....|स्वाति नक्षत्र से गिरने वाली बूँद एक ही होती है लेकिन उसके कई रूप होते है....कमल पर पड़ी तो मोती का आकर लगती है,वही बूँद सीप पर पड़े तो मोती बन जाती है ,लेकिन वही बूँद यदि सांप के मुख में गिरे तो जहर बन जाती है .....
इसलिए अपने अन्दर की बुरइयो को निकल फेंके ..अच्छे लोगो के साथ रहे जिससे आप तक अच्छे विचार पहुचे और आप उनसे अपना जीवन और आनंदमयी बना सके...
यदि आपका घर छोटा है और नया सामान  रखने की जगह नहीं है तो आप क्या करेंगे ??पहले पुराना सामान जो काम का नहीं है उसको निकालेंगे,जगह बनायेंगे और नया सामान  लायेंगे...यही बात आप अपने जीवन में क्यों नहीं अपनाते?जब तक आप अपने अन्दर की बुराइयों ,कमियों को बाहर नहीं निकालेंगे तब तक कोई अच्छाई ,अच्छा गुण ,संस्कार आपके अन्दर कैसे आएगा???विचार करे...



ब्रह्मदेव
(09350894633 )




Wednesday 2 November 2011

"अच्छे गुणों को भी ढक देती है इर्ष्या "

एक महिला को कुब्जा थी ,झुककर चलती थी..सब उसे चिढाते थे और उस पर हस्ते थे जिससे वह बहुत परेशान हो जाया करती थी.|एक दिन उसकी मुलाकात एक स्वामी जी से हुई ,उन्होंने उसे कहा-मेरे पास आओ और जो वरदान मांगना है मांगो...|महिला बोली-भगवन आप तो जानते है लोग मेरा कितना मजाक उड़ाते है,मुझे बुढिया कहते है ,कुबड़ी कहते है..|अगर आप मुझ पर मेहरबान है तो कूबड़ की फिकर मत कीजिये ,आप इन सबको कूबड़ से ग्रस्त कर दीजिये ताकि ये सब भी झुककर चले और मैं इन पर हसू,मजाक उडाऊ ..|
स्वामी जी उस महिला का उत्तर सुन कर हक्के बक्के रह गए ...|उस महिला के उत्तर  से पता चल गया की वह अपने दुःख से दुखी नहीं है बल्कि दूसरो  के सुख से दुखी है..कुछ यही हालत हमारी आपकी है...|   ईर्ष्यालु व्यक्ति की प्रकृति ऐसी ही होती है कि वह दूसरो कि सुखी सम्पन्न देखकर उनके जैसा उन्नत और सुखी होने कि प्रेरणा नहीं लेता बल्कि उनको दुखी करने और नीचा दिखाने का प्रयास करता है .|
इसलिए मित्रो दूसरो कि अच्छी आदतों को देखो उनसे प्रेरणा लो लेकिन कभी भी दूसरो को गिराने का प्रयत्न न करो..जब ऐसा विचार आये तो समझ लेना कि तुम इर्ष्या करने लगे हो और अगर यह स्वाभाव न छोड़ा तो विनाश निश्चित है....
अतः मित्रो प्रगति करो उन्नति करो लेकिन जलो नहीं,इर्ष्या मत करो.....

"श्री कृष्ण जी गीता में  कहते है की जिस प्रकार एक माचिस की सींक पहले अपने आपको जलती है बाद में दुसरे को ठीक उसी प्रकार से क्रोध और इर्ष्या के द्वारा व्यक्ति पहले अपने आप को जलाता है बाद में दूसरे को......|"

ब्रह्मदेव 
(09350894633 )


Tuesday 1 November 2011

जिंदगी से शिकायत नहीं ,धन्यवाद करे ,पर क्यों ????


जिंदगी एक नायब तोहफा है,इसे मुस्कुरा कर जिए .इससे शिकायत करने से पहले इससे जो पाया है उस पर नज़र जरुर डाले .आपकी जिंदगी में कई  रंग है जो औरो की जिंदगी से नदारद है.|हमे जो मिला है हम उसे  सही तरीके से नहीं जीते|कोई कठोर बात बोलने से पहले उनकी सोचिये जो बोल ही नहीं पाते |इसलिए जबान जैसी अनमोल चीज़ का सही इस्तमाल ही समझदारी है |
हमे स्वाद बहुत प्यारा होता है पर उसकी कीमत से हम अनजान है|जबकि न जाने कितने ऐसे है जो पैदा होते है और खाने के लिए संघर्ष करते हुए मर जाते है| इसलिए खाने से पहले मुह बनाने से पहले इस संघर्ष को समझे |
यदि बच्चो से परेशान है उनके बारे में सोचिये जो 'माँ' और 'पापा' शब्द सुनने के लिए हर वक़्त तरसते है.|दूरिय आपको तरसाती है पर  सोचे,जिन्हें लम्बी-लम्बी दूरियां पैदल चल कर पूरी करनी पड़ती है||
काम करते करते थकान से चूर होकर जब आपका मन काम को कोसने का होता है तो उन पर नज़र दौडाए जो बेरोजगार या physically challenged  है,हर वक़्त काम पाने का सपना देखते है.|\

जीवन को समझदारी से जीने का मंत्र है की जब भी आपकी ऊँगली किसी पर उठती है ,तो फट से अपने बारे में सोचे| आप भी कमियों से अछूते नहीं है,कमियों को दूर करने की कोशिश में जुटे ,रोने में समय बर्बाद न करे|आपके जीवन में कमिया आपको परेशान करे तो इस दुनिया की खूबसूरती के बारे में सोचे |अपने अन्दर की कमियों को दूर करे न की दूसरो की कनमिया देखते रहे यही जीवन को जीने का सही तरीका है ......,
always be happy always smile,not only because life is full of reasons to smile but also because your smile itself is a reason for many to smile....

ब्रह्मदेव
(09350894633 )


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Tuesday 25 October 2011

दीपावली का सन्देश

आप सभी को दीपावली की शुभकामनाये .
जिस प्रकार एक दीपक पल भर में अँधेरे को दूर कर देता है उसी प्रकार हम अपने अन्दर ऐसे विचारो को जगाये ,ऐसे गुणों को धारण करे जिससे हमारे अन्दर की बुराईया ,तामसिक विचार  पल भर में दूर हो जाये......
यही दीपावली का सन्देश है की जब श्रीराम बुराई(असत्य ) पर विजय प्राप्त करके वापिस आये तब हमने इस दिए की प्रथा,प्रकाश की प्रथा को आरम्भ किया......
आज के दिन संकल्प करे अच्छे विचारो को धारण करने का और अपने लक्ष्य की ओर नयी उर्जा के साथ बढे और विजय प्राप्त करे......
शुभ दीपावली 
 
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )
 


Thursday 6 October 2011

विजयादशमी का सन्देश


आप सभी को विजयादशमी की शुभकामनाये .आज रावन दहन के साथ साथ हम अपने अन्दर के रावण अर्थात बुरे विचारो,गलत भावना,गलत आदतों का भी दहन कर दे,जला दे.....यही विजयादशमी का सन्देश है....
ब्रह्मदेव 
(09350894633 )

happy dusshera to all...as we are burning ravan today similary there is a need to burn all the wrong and negative enrgy that is existing in us..so try to remove those negative points this is the main theme of this festival....
Brahm Dev

Saturday 1 October 2011

जिंदगी में निराशा???

इंसान कभी कभी छोटी बात को भी बड़ा बना कर निराश हो जाता है ...कभी खेल में हार,कभी रिश्तो में हार,कभी दोस्ती में हार ,और कभी प्यार में धोखा.
लेकिन क्या निराश हो जाने से हम जीत जायेंगे???नहीं हमे कभी भी निराश नहीं होना चाहिए...
अब प्रश्न उठता है की क्यों न हो निराश,दुःख तो होता है...
हमेशा याद रखे "इश्वर जो करता है अच्छा ही करता है"
अगर भगवन नहीं चाहता की ऐसा हो तो नहीं होगा...शायद उसके पास तुम्हारे लिए और कुछ  अच्छा हो...तुम्हारे लिए एक बड़ा लक्ष्य हो,जिसे तुम ही जीत सकते हो..तुम ही हासिल कर सकते हो....
इसलिए मेरे दोस्त जिंदगी में कितनी भी परेशानी आ जाये मुस्कुराते हुए उसे सहो और मजबूत बनो,उससे अच्छा  करने की कोशिश करो ,जीत तुम्हारी होगी....
भगवन हमारा पिता भी है और कोई भी पिता अपने पुत्र के साथ गलत नहीं करता इसलिए उसपर हमेशा  भरोसा रखो....
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )
 

Tuesday 26 July 2011

चिंता और चिंतन

जीवन चिंता नहीं,अपितु चिंतन और आचरण का नाम है .चिता  छोड़ कर चिंतन करे

Sunday 24 July 2011

बैर ,वासना और वहम

हमारे ऋषि मुनियों ने हमेशा मनुष्य को सत्य का ज्ञान दिया जो आज तक सिद्ध है..यदि इंसान उसका पालन करे तो आज भी हम  कभी दुखी न हो..
कहा गया है की :: बैर ,वासना और वहम जीवन और मृत्यु दोनों को बिगाड़  देते है....

ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )

Thursday 21 July 2011

प्रभु के प्रति समर्पण :सच्ची घटना



एक समय किसी गाँव में एक बहुत ही गरीब परिवार रहता था उस परिवार में एक बालक था वो  पढने   में बहुत होशियार  था  माता  पिता  ने  उसको  ये  कहा  की  तुम्हारी  पढाई  में हम  अपनी  गरीबी  को बाधक  नहीं  बनने देंगे  हम  महनत   मजदूरी  कर के  तुम्हारी  शिक्षा  पूर्ण  करायेगे | एक सुबह   बालक  उठा  तो  माँ  ने  कहा  की  आज  घर में केवल चार रोटी का आटा ही है ,आप के पिता जी के लिए ही है जिसमे से आप के लिए दो रोटी और आप के पिता जी के लिए एक रोटी और मेरे लिए एक रोटी है |
बालक  ने  बड़े ही दुखी मन से  रोटी खाई और स्कूल के लिए चल दिया  स्कूल के रास्ते में एक गाँव और आता था  बालक ने एक घर में आवाज़ दी अंदर से एक महिला निकल कर आई और कहा की बोलो बेटा क्या बात है बालक ने कहा की माँ मुझे बड़े जोर की प्यास  लगी है उस महिला को समझते देर नहीं लगी की बालक भूखा है वह अन्दर गई और जा कर एक बड़ा गिलास दूध से भर कर दे दिया |बालक ने भी दूध प़ी कर उस का धन्यवाद किया और यह कहा की माँ मेरी माँ ने मुझे यह सिखाया है अगर कोई आप पर उपकार करे तो आप  को भी बदले में उपकार करना चाहिए मेरी माँ ने मुझे स्कूल फीस के लिए एक रुपे दिया है वो मै आप को दे देता हूँ  उस महिला ने कहा की बेटा तुम खूब पढो लिखो यही मेरे लिए आप का उपकार है  खैर कहानी एक भाग यही बीत जाता है कुछ वर्षो बाद एक किसी गाँव में एक महिला बहुत बीमार हो गई दर्द से परेशान हो कर के गाँव के डॉक्टर के पास जाती है डॉक्टर  ने   उन का दर्द देख कर उन को सिटी के किसी बड़े हॉस्पिटल में जाने को कहा वो शहर के बड़े हॉस्पिटल में भारती हो गई विशेषज्ञ ने परिक्षण करके  उनका operation कर दिया धीरे धीरे वो स्वस्थ होने लगी लेकिन एक चिंता ने उन को घेर लिया की इस हॉस्पिटल का बिल कैसे भुगतान होगा जब वो स्वस्थ हो गई  तो डॉक्टर ने को घर जाने को कहा तो उस महिला ने अपना बिल मागा तो कैश काउंटर पर  बैठे हुआ आदमी ने यह कहा की आप बिल के लिए  डॉक्टर से मिल लीजिये | वो महिला यह सोच कर और परेशान  हो गई की लगता है की बिल ज्यादा होगा तभी   डॉक्टर से मिलने के लिए कहा है वो बुजुर्ग महिला परेशान होती हुई डॉक्टर के चम्बर में जा कर बोली डॉक्टर साहब जो मेरा बिल है  दे दीजिये .डाक्टर ने कहा की आपका कोई बिल नहीं है आप घर जाईये,तब माता जी ने कहा की बेटा कोई बिल कैसे नहीं है?जो है मुझे बता दो ,मैं दूंगी.. तब उसने कहा की ,"माँ आपने मुझे पहचाना नहीं ,मै वही बालक हू जिसे आपने एक दिन दूध पिलाया था ,जब मै कुछ बन गया तो हमेशा ही आपको ढूद्ता रहा,,आज इस ऋण से उऋण  होने का अवसर आया है |इसलिए माँ मैंने सारा बिल चुकता कर दिया...अगर आपको बिल देने की जिद है तो मै घर आऊंगा तो आप मुझे अपने हाथों से दूध पिला दीजियेगा,वही बिल है " ||

 

मै जब भी इस कहानी को पढता हू, सुनता हू  तो मिझे एहसास होता है की एक बालक ने दूध के ऋण के लिए पूर्ण जीवन उस माँ को ढूढता  रहा और जिस  परमात्मा ने हमे सब कुछ दिया है हम उसी को भूल जाते है??क्या हमे उसका उपकार भूल जाना चाहिए?क्या इश्वर सिर्फ हमे दुःख में ही याद करना चाहिए, में इश करे??नहीं ,उस परमपिता परमात्मा का धन्यवाद् करी हमे उसका आभारी रहना चाहिए,eश्वर का ध्यान करना चाहिए  ताकि हम हमेशा जीवन में उन्नति करते रहे.|

Wednesday 20 July 2011

सफलता

जैसे दीपक जलकर अँधेरे को दूर करता है वैसे ही मन में शुभ विचार जगाने पर सफलता निश्चित है.....आचे विचारो को सुन कर उन पर चलने का प्रयास करे....
ब्रह्मदेव
(9350894633)

Monday 18 July 2011

झुकता वही है जो इन्सान है,अकड़ तो मुर्दों की पहचान है...

ॐ भूर्भुवः॒ स्वः॒
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥


यह प्रकति हमे विभिन्न प्रकार से समझाती रहती है...हम बहुत कुछ इस जीवन में प्रकति से सीखते है.
एक वृक्ष  पर जब फल लग जाते है तो वह झुक जाता ,और अकड़ता नहीं है लेकिन हम मनुष्य उससे सीखना नहीं चाहते,हमारे अन्दर यदि कोई एक भी सदगुण आता है तो हम और अड़ियल हो जाते है घमंड करते है क्योकि  झुकना हमने सिखा ही नहीं...
मित्रो इस जीवन में जो  अहंकार करता है वो उन्नति नहीं कर पता,जो झुकता नहीं वो टूट जाता है,...
रावण के अन्दर इतना ज्ञान था लेकिन सज्जनता और विनम्रता न होने के कारन वह अहंकार में ही नष्ट हो गया,..
किसी कवि ने सुन्दर ही लिखा है..
झुकता वही है जो इन्सान है,अकड़ तो मुर्दों की पहचान है...
इसलिए मित्रो अपने अन्दर के ज्ञान को जगाओ और अपने विनम्र और शालीनता के आचरण से विजय प्राप्त करो......
धन्यवाद
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(9350894633)

Saturday 25 June 2011

शालीनता ,विनम्रता और मुस्कान

शालीनता ,विनम्रता और मुस्कान बिना मूल्य के मिलते है लेकिन इनसे सब कुछ ख़रीदा जा सकता है...इसलिए हमारे ऋषि मुनियों ने संस्कारो पर बल दिया और कहा की सत्य और अच्छाई के रास्ते चलते हुए गुणों कोधारण करते जाये और अवगुणों को छोड़ते जाये....
Pt. Brahm Dev Vedalankar
(09350894633)

Monday 20 June 2011

कर्मफल

हमे कृतज्ञ बनना चाहिए न की कृतघ्न .इश्वर की व्यवस्था भी अदभुद  है ,मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्र है और और फल भोगने के लिए परतंत्र.अर्थात हम जो कर्म करना चाहते है वह हम करते तो है लेकिन उसका  फल भी हमे अवश्य लेना पड़ता है....यह कुछ उसी तरह है जैसे एक किसान खेत में जो बोता है समय आने पर उसे वही मिलता है ,यही जीवन है.....इसलिए सत्कर्म करे,अच्छे कर्म करे और सुखी रहते हुए विजय को प्राप्त करे...

pt. Brahm Dev Vedalankar
(09350894633)

Monday 13 June 2011

क्यों छोड़े बुरी आदतों और विचारो को???

मै जैसा हू सो तैसा हु,अच्छा हू .....ये बोल कर क्या आप अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग रहे??
क्या यह आपका कर्त्तव्य नहीं है की आप अपने अन्दर की कमियों को पहचाने और उनको दूर करे???और जब कोई दूसरा आपको आपकी कमी बताता है तो आपको गुस्सा आता है...!!.क्या आप सही मार्ग पर चल रहे है....???
 यदि आपका घर छोटा है और नया सामान  रखने की जगह नहीं है तो आप क्या करेंगे ??पहले पुराना सामान जो काम का नहीं है उसको निकालेंगे,जगह बनायेंगे और नया सामान  लायेंगे...यही बात आप अपने जीवन में क्यों नहीं अपनाते?जब तक आप अपने अन्दर की बुराइयों ,कमियों को बाहर नहीं निकालेंगे तब तक कोई अच्छाई ,अच्छा गुण ,संस्कार आपके अन्दर कैसे आएगा???विचार करे...
अपने अन्दर की बुराइयों  को समाप्त करना  और अच्छाई ,गुण,कर्म,संस्कार को धारण करना हम मनुष्यों का कर्त्तव्य है नहीं तो आप ये बताये की आपमें और एक पशु में क्या अंतर रह गया???
इसलिए वेद में मंत्र आता है "ओउम विश्वनी देव सवितार्दुरितानी परासुव यद् भद्रं तन्न आसुव ."
अर्थात "हे प्रभु मेरे अन्दर की बुराइयों  को दूर कर,मुझे बल दे की  मै अपनी कमियों को पहचान कर दूर करू और अच्छे गुण.संस्कार को धारण करू..."
इसलिए आप,हम,सभी लोग सत्य को पहचाने,उसको माने और अपने को श्रेष्ठ ,अच्छा,और सच्चे अर्थो में मनुष्य बनाये....आत्मचिंतनबहुत जरुरी है,आत्मचिंतन करे ,मंथन करे और जीवन सुखमयी बनाये...
ब्रह्मदेव 
Pt. Brahm Dev Vedalankar               
(09350894633)


Saturday 11 June 2011

कैसे मिलेगी सफलता???

कहा गया है की "न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवा: " अर्थात बिना परिश्रम के तो देवो की भी मैत्री नै मिलती..हमारे ऋषि मुनियों ने ,अमर ग्रन्थ वेद ने हमे यही ज्ञान दिया यदि कोई व्यक्ति परिश्रम,म्हणत करता है तो उसे उसका फल जरूर मिलता है...इसलिए कभी हार न माने..सफलता की ओर बढ़ना  है तो मेहनत करे क्योकि  कहा गया है की "श्रमेव जयते" अर्थात परिश्रम की ही जीत होती....
अतः जीवन में विजय प्राप्त करने के लिए आलस्य छोड़कर,परिश्रम का मार्ग अपनाये...
pt. Brahm Dev Vedalankar 
(09350894633)

Thursday 9 June 2011

सत्य मार्ग ही क्यों??

ओउम
  वेद कहता है की अच्छा सुने और उस पर चलने का प्रयास करे .आजकल लोग साधू संतो के प्रवचन तो सुन लेते है लेकिन ना तो कभी उस पर विचार करते और ना ही उस पर अमल करते...तभी वेद भगवन कहते है की हमेशा सत्य सुने ,अच्छा सुने,सत्संग में रहे और उस सत्य के अनुसार अपना आचरण बनाये क्योकि जीवन अच्छे मार्ग पर चल कर ,अच्छे विचारो को सुनकर,और उस का पालन करने पर ही सुख समृद्धि से पूर्ण हो सकता है... .....

वेद :::चुनौतियों का सामना करे

 जीवन में अगर मुश्किल न हो,कष्ट न हो तो जीवन नीरस हो जायेगा....जिस प्रकार से रोज रोज मीठा खाते खाते कुछ दिन बाद मीठा खाने का मजा नहीं आता ठीक उसीप्रकार से अगर हमारे जीवन में हरपाल सुख रहेगा तो हम सुख का भी आनंद नहीं ले पाएंगे. इसीलिए इश्वर ने यह व्यवस्था बनायीं कि कर्म के अनुसार दंड देना, जिसकी वजह से हम कष्ट भी सहते है और सुख भी भोगते है...
जीवन में कभी दुःख के समय घबराये  नहीं,उस चुनौती का सामना करे...ये जीवन भी रण है और इस रण में हमे विजय प्राप्त करनी है...कही  इश्वर को दोष न दे अपितु अपने अन्दर कि कमियों को दूर करे....
सत्य पथ पर चले और जीवन में सुख समृधि प्राप्त करते हुए आगे बढे...

Sunday 22 May 2011

महाभारत में ये धृत राष्ट्र  जो पात्र है वो हर युग में होता है

Sunday 15 May 2011

गीता:एक जीवनदर्शन(part 1 )

 गीता की शुरुआत धृतराष्ट्र  के पक्ष  से होती है और जब की गीता में कृष्ण  अर्जुन का संवाद है ऐसे में सोचने वाली बात यह है की ये धृतराष्ट्र यहाँ क्या  कर रहा है. वास्तव में बात ये है की महाभारत के युद्ध से पहले धृतराष्ट्र ने अपने सब से प्रिय मंत्री संजय को बुलाया और बुला कर ये कहा की अब केवल आप से ही आशा रखता हूँ कि आप कुछ ऐसा करेंगे  की जिस से ये युद्ध ना होने पाए और पांड्वो में ऐसी निराशा भर दो की ये युद्ध ही ना कर सके इसलिए धृतराष्ट्र  के वाक्य से गीता का प्रारंभ होता है .राजा धृतराष्ट्र ये जानना चाहता है और कहता है  "हे संजय तुम्हारे उपदेश का कुछ प्रभाव हुआ की नहीं. संजय फिर कहता है की दोनों सेनाये कुरुक्षेत्र की रणभूमि में आमने सामने खड़ी है और अर्जुन ने अपने सारथी  श्रीकृष्ण को ये कहा की मेरे रथ को दोनों सेनाओ के मध्य में ले चलो मै ये देखना चाहता हूँ की कौन मेरे साथ खड़ा और कौन नहीं   .....to be continued...
गीता की शुरुआत धृतराष्ट्र

Saturday 7 May 2011

गीता एक जीवनदर्शन

गीता एक जीवनदर्शन है जिस ने इस को समझा वो जीत गया यदि आप जीवन में जीत चाहते हो  तो इस ब्लॉग को जरुर पढना