Saturday 11 August 2018

सफलता का रहस्य

हर इंसान तरह-तरह के मन के लड्डू बनाते हैं, सुखी, समृद्ध होने के बड़े-बड़े मनसूबे पालते हैं परन्तु उन में से सफल बहुत ही थोड़े हो पाते हैं। शेखचिल्ली के से सपने यदि सफल हो जाया करें तो पुरुष और पौरुष का कोई फर्क ही इस संसार में नहीं रहता।


इच्छा, प्रयत्न, परिश्रम, लगन और दृढ़ता न हो तो सफलता की देवी ऐसे लोगों की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखती। सिद्धि उन्हें ही मिलती है जो अपनी चाहत को पूरी करने के लिए जी जान से प्रयास करते हैं।


ज्ञानीजनों ने कहा है- “उद्योगि नं पुरुष सिंह भुपैति लक्ष्मी, दैवेनदेव मति का पुरुषो बदन्ति।” लक्ष्मी उद्योगी पुरुषों को ही प्राप्त होती है और कायर लोग दैव-दैव पुकारा करते हैं। एक अन्य वचन है कि- ‘कायरा इति जल्पन्ति यद्भाव्यं तद्भविष्यति” कायर लोग ऐसी बकवास करते रहते हैं कि जो होना है वही होगा। “न प्रसुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगाः” सोते हुए सिंह के मुख में हिरन खुद प्रवेश नहीं करते, बल्कि सिंह को ही उन मृगों को पकड़ना और खाना पड़ता है।


रामायण का कथन है- “दैव दैव आलसी पुकारा।” भाग्य के भरोसे बैठे रहने से तरह-तरह की कल्पना करते रहने से, कुछ प्राप्त नहीं होता। इच्छा को पूर्ण करने के लिए जो निरन्तर उत्साहपूर्वक प्रयत्न करते हैं, वे ही सफलता के भागी होते हैं।


सफलता के इच्छुक व्यक्तियों को बाइबिल का यह वचन ध्यान रखना चाहिए कि “जो सच्चाइ से मांगता है उसे दिया जाता है।” सचाई से मांगने का अर्थ है पूरे परिश्रम उत्साह और संयम के साथ इच्छित वस्तु की प्राप्ति में जी जान से जुट जाना। आप यदि मनोरथ सफल करना चाहते हैं, सिद्धि की सीढ़ी पर चढ़ना चाहते हैं तो घोर प्रयत्न और दृढ़इच्छा को अपना साथी बना लीजिए, प्रयत्न के ऊपर प्राप्ति निर्भर है। याद रख लीजिए जो पाना चाहता है उसे ही मिलता है।


आचार्य ब्रह्मदेव वेदालंकार

Monday 6 August 2018

मन

मन जो है वह कामनाओं रूपी राजपथ पर बड़ी तेजी से दौड़ना चाहता है ।लेकिन आइये हम चिंतन करे कि यदि मन के साथ दौड़ते रहेगे तो क्या मंजिल मिलेगी तो निश्चित रूप से मन की मंजिल मिल सकती है लेकिन आत्मा कही खो जायेगी।और जब हमारा मालिक ही कही खो जाएगा तो हम उस शिखर पर पहुँच कर क्या करेंगे।
वास्तव में हमारे सम्पूर्ण दुखों का मूल मन का अनियंत्रित होना है,जैसे कि यदि हमे कार के द्वारा कही भी जाना  है तो
प्रशिक्षित चालक अवश्य होना चाहिए क्योंकि यदि चालक समझदार नही है तो कही ना कही गाड़ी  की टक्कर कर देगा जिससे चोटिल होकर कष्ट पाएंगे ठीक ऐसे ही यदि हम कामनाओं (इच्छाओं) के पथ पर  मन का नियंत्रण नही करते तो बड़ी दुर्घटना हो सकती है।
पं ब्रह्मदेव वेदालंकार