Saturday 24 December 2011

क्यों कहते है स्वामी श्रद्धानन्द को कल्याण मार्ग का पथिक??



स्वामी श्रद्धानन्द जी के बचपन का नाम मुंशीराम था |इसने पिता श्री नानक चाँद जी east india company में इंस्पेक्टर थे ,इसी वजह से उनका जगह जगह तबादला होता रहता था और मुंशीराम की पढाई में व्यवधान आता था...|कालांतर में कुछ दुर्व्यसनी मित्रो की सांगत के कारन ही मुंशीराम के अन्दर बहुत सी बुरी आदतों ने प्रवेश कर लिया.|
बनारस के अन्दर के कहावत प्रचलित थी की जो अपने बच्चो को बहार भेजेंगे वह एक नास्तिक जादूगर के जादू में रंग जायेगा |उनकी माँ उन्हें बाहर नहीं निकलने देती थी...लेकिन भविष्य में इसी जादूगर (स्वामी दयानंद सरस्वती) से उनकी मुलाकात बरेली में हुई |स्वामी दयानंद के प्रवचनों से प्रभावित होकर इन्होने अपना जीवन बदल डाला और जीवन के चौराहे से निकल कर लक्ष्य का निश्चय करना सिखा...|महारिशी दयानंद के उपदेशो एवं जीवन की कुछ घटनाओ के कारन ही मुंशीराम को इश्वर पर भरोसा हुआ |इसके उपरांत वे लाहौर के आर्य समाज में जाकर सत्यार्थ प्रकाश लिया और उसको पढ़ कर अपने जीवन को नयी दिशा देते हुए ,सभी दुर्व्यसनो का त्याग करके वे महात्मा मुंशीराम बने..|
सर्वप्रथम आधुनिक भारत में 'कृष्ण-सुदामा' की गुरुकुल शिक्षा पद्धति को जीवित किया|अपनी समाती बेच कर स्वामी जी ने गुरुकिल की स्थापना करी |इसी तरह उन्होंने भारतीय राजनीती में नए काल का खंड किया और स्वतंत्रता आन्दोलन में देश को नयी दिशा दी |उन्हें न केवल वैदिक धर्मं का अपितु सभी धर्मो का समर्थन मिला और इसकी मिसाल है की उन्होंने जामा मस्जिद से मंत्रो का गान किया,जलिंवाला बाघ में कांगेस की अध्यक्षता की ,चांदनी चौक में गोरो की संगीनों के सामने अंग्रेजो को ललकारा|वो स्वामी श्रद्धानन्द ही थे जिन्होंने एक अनपढ़ भारत को पढ़ाने का सपना देखा|वह स्वामी श्रद्धानन्द नहीं तो कौन था जिसने शुद्धिकरण की प्रथा प्रारंभ की जिससे जो हिन्दू इसाई बन गए है,भटक गए है ,उन्हें पुनः हिन्दू धर्मं में लिया जाये |वो स्वामी श्रद्धानन्द थे जिन्होंने गुरुकुल कांगरी की स्थापना करके वेद की शिक्षाओ को प्रसारित किया |
आज जरुरत इस बात की है की हम स्वामी श्रद्धानन्द के विचारो को समझ कर उस पर चले ,और किसी व्यक्ति से घृणा न करे ,उसके अवगुणों को न देखे अपितु अपने सद्गुणों से उसके दुर्व्यसन दूर करने का प्रयास करें | आज आर्य समाज में कुछ लोग शराबी ,दुर्वस्नी लोगो को प्रवेश नहीं करने देते वो ऐसा करते है जैसे की कहीं दुर्गंधी है और वो खिड़की इसलिए बंद करते है कहीं वह दुर्गन्ध उनके कमरे में न घुस आये |वे लोग भूल जाते है की इस दुर्गंध्य्क्त वातावरण को बदलने के लिए हमे सुगन्धित वातावरण तैयार करना होगा....|यदि स्वामी जी दयानंद जी  से न मिलते तो आज हमे श्रद्धानन्द जी जैसे वो हीरा न मिलता जिसने हमारे भारत को एक ज्ञानवान,सुशिक्षित समाज में बदलने का सफल प्रयास किया .|हर इंसान के अन्दरकहीं न कहीं बुराई छुपी है,दुर्व्यसन है जो मुंशीराम का सूचक है |
आइये उठे,जागे,और अपने अन्दर के मुंशीराम को पहचान कर महात्मा मुंशीराम बने ,स्वामी जी के सपने को सच कर जायें और स्वामी श्रद्धानन्द कल्याण  मार्ग के पथिक कहलाये...
Wartch Video at http://www.youtube.com/watch?v=dEqt6pCwOBU&feature=c4-overview&list=UU0jmNbH1s9526PzNHBAfH2Q 

पं ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )
Purohit,
Arya Samaj Mandir
Vivek Vihar ,Delhi

Wednesday 21 December 2011

आत्मविश्वास :आपकी हार या जीत का फैसला


मैंने हमेशा परमात्मा पर विश्वास किया है ..और आप सभी को भ अपने चिंतन के द्वारा उस परमपिता परमेश्वर की शरण में रहने का अपना विचार दिया...|जीवन में ऐसा समय आता है जब हम सोचते है की "अब तो सब ख़तम हो गया",हम कह देते है की "मै अब टूट सा गया हू" ,"अब जीत नामुमकिन है" , "यह जीवन तो नरक है" ,"इस जीवन से अच्छी तो मृत्यु है"  |
लेकिन आप ही बताईये क्या ऐसे विचार आने चाहिए,??क्यों हम खुद पर भरोसा खो देते है ??आज जीवन में आप जहाँ पहुच गए है वहां क्या कोई आप को गोद में लाकर छोड़ गया जो आप आगे बढ़ने से डरते है ,...जरा विचार करें .....

मित्रो हमेशा अपनी उप्लाब्धियो को याद रखे ,अपने जीवन के अच्छे पहलु को याद रखे...मन की हमे अपनी कमियों पर भी ध्यान रखना चाहिए लेकिन अगर आप अपने अन्दर के हुनर को भूल जायेंगे तो आप जरुर वही ख़तम हो जायेंगे....यदि किसी चिड़िया को पता ही न हो की वो उड़ भी सकती है तो क्या वह उड़ेगी????और फिर अगर वो उड़ने का प्रयास न करे तो क्या उड़ पायेगी???ठीक उसी प्रकार से हमारे अन्दर वो हुनर है,वो ताकत है ,वो जज्बा है की हम किसी भी चट्टान को गिरा सकते है और विजयी हो सकते है,बस अगर जरुरत है तो अपने इस हुनर,ताकत,क़ाबलियत को पहचाननने की |
आज हमारी समस्या है की हम अपने आप को इतना कम आंकते है की अगर सामने रुई पड़ी हो और उसे रस्ते से हटाना हो तो हम उसे भी एक भारी  पत्थर समझ कर नहीं हटाते अपना रास्ता बदल लेते है ....
मित्रो ,अपने अन्दर की शक्ति को जागृत करो अपने आप को ही अपनी ताकत बनाओ,किसी 'बैसाखी' से चलना  छोड़ दो,अपने पर विश्वास रखो  ,तुम्हारे अन्दर ही कहीं 'शिवाजी' तो कहीं 'चंद्रशेखर आज़ाद' जैसे वीर है ,आपमें से ही कोई 'बिल गेट्ज' तो कोई 'धीरुभाई अम्बानी' है लेकिन मित्रो अपने मूल्य को इतना न गिरा दो की ये समाज,ये दुनिया भी तुम्हारे मूल्य को न समझ सके....
तो हे वीर!उठो ,नयी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ो जिससे न केवल अपने लक्ष्य को प्राप्त करो अपितु अपने माता-पिता के सपनो को भी साकार करो....आपने अगर इस उर्जा को प्राप्त कर लिया,इस शक्ति को जागृत कर लिया और इस मंत्र को समझ लिया तो समझ लो आप जंग जीत गए फिर तो बस घोषणा होने की औपचारिकता बची है...इसलिए कहते है की "आत्मविश्वास ही आपकी हार या जीत का फैसला करता है .....
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633)
(Purohit,Arya Samaj
Vivek Vihar,Delhi)
Remember always: If you really put a small value upon yourself, rest assured that the world will not raise your price.
"It is not the mountain we conquer but ourselves".  ~Edmund Hillary

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Monday 19 December 2011

रूस ने कहा की गीता हिंसा एवं आतंकवाद को बढ़ावा देती है ,क्या ये सही है ????


रूस ने हिन्दू ग्रन्थ 'गीता' को  बैन कर दिया ,उनका कहना  है की ये पुस्तक  हिंसा को बढ़ावा देती है,आतंकवाद की समर्थक है | आइये आज इसी पर विचार करते है की क्या सचमुच श्री कृष्ण ने हिंसा की शिक्षा दी?क्या युगप्रवर्तक के नाम से जाने जाने वाले श्रीकृष्ण आतंकवाद को बढ़ावा देते थे??सत्य क्या है ???
गीता हमे आतंकवाद नहीं,जीने की कला सिखाती है|
गीता हमे बहार की चकाचौंध से हटकर अन्दर के प्रकाशवान आन्तरिक आत्मविश्वास से परिचय करवाती है |
गीता हमे जीवन के उतार चढ़ाव में स्थिर रहना सिखाती है |
गीता हमे प्रकृति के साथ सामंजस्य करना सिखाती है|
और ऊपर कही गयी एक एक बात को सिद्ध क्या जा सकता है |........
गीता के अन्दर जो शिक्षा है उसका विश्लेषण मेरी दृष्टिकोण में :-
यदि मैं एक व्यक्ति से कहू की आप के दीपक जला कर ले आईये ,लेकिन दीपक को खुली जगह में ही जलना| निश्चित ही यह कठिन कार्य है ,लेकिन वह व्यक्ति एक बगीचे में गया और एक वृक्ष के निचे बैठकर उसे जला लिए ,लेकिन जलाते ही वह दीपक उसके हाथ से छूट गया और पूरे बगीचे में आग लग गयी|अब मैं आपसे पूछता हु -
दीपक के न जलने का कारन क्या था?कौन था दीपक का दुश्मन ? ...आप कहेंगे हवा |
अब मई आपसे पूछता हू की वह आग किसकी वजह से फैली ?....तो आप कहेंगे हवा की वजह से....
जो हवा कुछ क्षण पहले दीपक की दुश्मन थी वही अब दोस्त बन कर आग को फैलाने में मदद कर रही है......गीता का सन्देश  भी कुछ aiisa  ही है की विपरीत परिस्थिति में हम अटूट  ,अखंड,अटल,आस्थावान रहते है तो हमारी विपरीत परिस्थिति भी अनुकूल बन जाती है |जीवन में इतना परिश्रम करे,इतना आत्मविश्वास के साथ के साथ आगे बढे की आपके दुश्मन भी आपकी सहायता करने पर मजबूर हो जाये,वो आपके साथ चलने को मजबूर हो जाये.....जीवन में विजय प्राप्त करने के लिए अपनी विपरीत परिस्थिति को भी अपने अनुकूल बनाना सीखो यह है गीता का सन्देश....जीवन में विजय प्राप्त करने के लिए संघर्ष द्वारा परिश्रम का रास्ता चुनो यह है गीता का सन्देश.......||||||


गीता में श्री कृष्ण कहते है की "आप कर्म करे और फल की इच्छा न करे " क्या इसमें हिंसा है ,मै कहता हु यदि इस बात को आज का विद्यार्थी समझ ले तो देश में जो हर रोज हमे सुनने को आता है किसी बालक ने परीक्षाफल के डर से आत्महत्या कर ली,वो होगी???क्या श्री कृष्ण ने यहाँ, हिंसा को बढ़ावा दिया?यदि उन्होंने ने यह कहा की जीवन में सत्य और असत्य को समझे तो क्या ये गलत है .....???
मेरे मित्रो गीता में जो अनमोल बाते लिखी है वह सच में कोई वेद का विद्वान् ही कह सकता है ,श्री कृष्ण सच्चे अर्थो में वेद के विद्वान थे....यह बात सिद्ध भी की जा चुकी है की कौन सा श्लोक उन्होंने किस वेद से लिया है और मंत्र क्या है जहाँ से उन्होंने ये बात कही.....
इसलिए गीता जैसे ग्रन्थ का विरोध करना तो शायद हमारी संस्कृति पर दाग  लगाने जैसा है,हम इसका विरोध करते है  ....कोई भी आदालत चाहे जो फैसला करे लेकिन गीता की सार्थकता पर प्रश्नचिंह नहीं लगाया  जा सकता......




ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )

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Monday 12 December 2011

खुशहाल जिन्दगी को कैसे पाएं ???

जो व्यक्ति महान बनना चाहता है उनके लिए सामवेद की एक ऋचा बहुत ही सुन्दर संकेत देती है की हे मनुष्य !तू अपने जीवन को यज्ञ की और ले चल| लेकिन यज्ञ का क्या तात्पर्य है ,यज्ञ का अर्थ बहुत ही गहन,विशाल व रहस्यों से परिपूर्ण है की जैसे यज्ञ जो है ,कभी अकेले यज्ञ नहीं कर सकता ,अर्थात यदि समिधा(लकड़ी) चाहे की अकेले यज्ञ कर ले तो ये मुमकिन नहीं है .घरात चाहे की वो अपनी महत्ता को साबित कर दे तो यज्ञ सम्पन्न नहीं हो सकता क्युकी जब तक सभी वस्तुए मिलते नहीं ,संयुक्त नहीं होते तब तक यज्ञ संभव नहीं है ,ठीक उसी प्रकार से मित्रो जब तक हम अपनी इन्द्रिय,मनन,वचन,कर्म से संयुक्त नहीं हो जाते,मिलकर कार्य नहीं करते तो सफलता प्राप्त करना बहुत मुश्किल हो जायेगा |इसलिए यदि हम जीवन में उचाई को प्राप्त करना चाहते है तो हमे ह्रदय व आत्मा  को परमपिता परमात्मा से संयुक्त करना पड़ेगा ताकि महाशक्ति बन कर हम अपने लक्ष्य को भेद सके |
क्युकी जैसे यज्ञ में दिव्या पदाथ जलकर भी भस्म नहीं होते अपितु सुक्ष्म रूप से आसपास के वातावरण को सुगन्धित व पुष्ट बना देते है ठीक उसी प्रकार से जो भक्त परमात्मा रुपी अग्नि को अपने ह्रदय में प्रज्वलित कर गया और अपने अन्दर के अहंकार को खत्म कर देता है वह सर्वविद सफलता और विजय को प्राप्त करता है |
तो आइये खुशहाल जीवन के लिए,जिन्दगी की जिन्दादिली के लिए अपनी जिन्दगी की इस बगिया में यज्ञ रुपी फल की पवित्र वर्षा के द्वारा फूले  फले ||

पं ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )

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