Monday 28 July 2014

Vedic vichar on Arya samaj

   एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोजाना भोजन
पकाती थी और एक रोटी वह वहां से ...गुजरने वाले
किसी भी भूखे के लिए पकाती थी ,
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी जिसे
कोई भी ले सकता था .
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज उस रोटी को ले जाता और वजाय
धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह
बडबडाता "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और
जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
दिन गुजर...ते गए और ये
सिलसिला चलता रहा ,वो कुबड़ा रोज रोटी लेके
जाता रहा और इन्ही शब्दों को बडबडाता
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम
अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन
खुद से कहने लगी कि "कितना अजीब व्यक्ति है ,एक शब्द
धन्यवाद का तो देता नहीं है और न जाने
क्या क्या बडबडाता रहता है ,
मतलब क्या है इसका ".
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और
बोली "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी ".
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में जहर
मिला दीया जो वो रोज उसके लिए बनाती थी और जैसे
ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश
कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह
बोली "
हे भगवन मैं ये क्या करने जा रही थी ?" और उसने तुरंत उस
रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दीया .एक
ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी ,
हर रोज कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके "जो तुम
बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे
वह तुम तक लौट के आएगा " बडबडाता हुआ चला गया इस
बात से बिलकुल बेखबर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल
रहा है .
हर रोज जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह
भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर
वापसी के लिए प्रार्थना करती थी जो कि अपने सुन्दर
भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ
था .महीनों से उसकी कोई खबर नहीं थी.
शाम को उसके दरवाजे पर एक दस्तक होती है ,वह
दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है ,
अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है.वह पतला और
दुबला हो गया था. उसके कपडे फटे हुए थे और वह
भूखा भी था ,भूख से वह कमजोर हो गया था. जैसे ही उसने
अपनी माँ को देखा,
उसने कहा, "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ. जब मैं
एक मील दूर है, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर. मैं मर
गया होता,
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था ,उसकी नज़र
मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लीया,भूख के
मरे मेरे प्राण निकल रहे थे
मैंने उससे खाने को कुछ माँगा ,उसने नि:संकोच
अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि "मैं हर रोज
यही खाता हूँ लेकिन आज मुझसे ज्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है
सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो " .
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी माँ का चेहरा पिला पड़
गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाजे
का सहारा लीया ,
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह
रोटी में जहर मिलाया था
.अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट
नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और
अंजाम होता उसकी मौत
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट
हो चूका था
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम
अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।
" निष्कर्ष "
~हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप
को कभी मत रोको फिर चाहे उसके लिए उस समय
आपकी सराहना या प्रशंसा हो या न हो .
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अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो तो इसे दूसरों के साथ
शेयर करें ,
मैं आपसे शर्त लगाने के लिए तैयार हूँ कि ये बहुत लोगों के
जीवन को छुएगी .
Pandit Brahm Dev
Vedic Pravalta

Arya samaj

Friday 11 July 2014

Yagya ki mahima

Yagya ko ishwar ka mukh kaha gya hai .yadi aap kisi murti mei kuch bhi chadhate hai to wah kahan jata hai yah aap ache se samajh sakte hai.....lekin yagya mei di gayo aahuti pure vayumandal mei mil kal prithvi se dyulok tak pahuchti hai.   is yagya ki mahima ko samjhe ev pratidin yagya karein.aaj ke is vyast jeevan shaili mei kam se kam saptah mei ek din yagya karein..evam pratidin ishwar ka dhuan karna na bhoole

Thursday 10 July 2014

Aaj ka vichar

अपने माता पिता का सम्मान करने के 35 तरीके......

(भगवान ... हमें इन दिशा निर्देशों का पालन करने की क्षमता व भावना दे)

1. उनकी उपस्थिति में अपने फोन को दूर रखो
2. वे क्या कह रहे हैं इस पर ध्यान दो
3. उनकी राय स्वीकारें
4. उनकी बातचीत में सम्मिलित हों
5. उन्हें सम्मान के साथ देखें
6. हमेशा उनकी प्रशंसा करें
7. उनको अच्छा समाचार जरूर बताये
8. उनके साथ बुरा समाचार साझां करने से बचें
9. उनके दोस्तों और प्रियजनों से अच्छी तरह से बोलें
10. उनके द्वारा किये गए अच्छे काम सदैव याद रखें
11. वे यदि एक ही कहानी दोहरायें तो भी ऐसे सुनें जैसे पहली बार सुन रहे हो
12. अतीत की दर्दनाक यादों को मत दोहरायें
13. उनकी उपस्थिति में कानाफूसी न करें
14. उनके साथ तमीज से बैठे
15. उनके विचारों को न तो घटिया बताये न ही उनकी आलोचना करें
16. उनकी बात काटने से बचें
17. उनकी उम्र का सम्मान करें
18. उनके आसपास उनके पोते/पोतियों को अनुशासित करने अथवा मारने से बचें
19. उनकी सलाह और निर्देश स्वीकारें
20. उनका नेतृत्व स्वीकार करें
21. उनके साथ ऊँची आवाज में बात न करें
22. उनके आगे अथवा सामने से न चलें
23. उनसे पहले खाने से बचें
24. उन्हें घूरें नहीं
25. उन्हें तब भी गौरवान्वित प्रतीत करायें जब कि वे अपने को इसके लायक न समझें
26. उनके सामने अपने पैर करके या उनकी ओर अपनी पीठ कर के बैठने से बचें
27. न तो उनकी बुराई करें और न ही किसी अन्य द्वारा की गई उनकी बुराई का वर्णन करें
28. उन्हें अपनी प्रार्थनाओं में शामिल करें
29. उनकी उपस्थिति में ऊबने या अपनी थकान का प्रदर्शन न करें
30. उनकी गलतियों अथवा अनभिज्ञता पर हँसने से बचें
31. कहने से पहले उनके काम करें
32. नियमित रूप से
उनके पास जायें
33. उनके साथ वार्तालाप में अपने शब्दों को ध्यान से चुनें
34. उन्हें उसी सम्बोधन से सम्मानित करें जो वे पसन्द करते हैं
35. अपने किसी भी विषय की अपेक्षा उन्हें  प्राथमिकता दें

माता - पिता इस दुनिया में सबसे बड़ा खजाना हैं....

Wednesday 9 July 2014

Aaj ka vichar

एक आदमी की चार पत्नियाँ थी।

वह अपनी चौथी पत्नी से बहुत प्यार करता था और उसकी खूब देखभाल करता व उसको सबसे श्रेष्ठ देता।

वह अपनी तीसरी पत्नी से भी प्यार करता था और हमेशा उसे अपने मित्रों को दिखाना चाहता था। हालांकि उसे हमेशा डर था की वह कभी भी किसी दुसरे इंसान के साथ भाग सकती है।

वह अपनी दूसरी पत्नी से भी प्यार करता था।जब भी उसे कोई परेशानी आती तो वे अपनी दुसरे नंबर की पत्नी के पास जाता और वो उसकी समस्या सुलझा देती।

वह अपनी पहली पत्नी से प्यार नहीं करता था जबकि पत्नी उससे बहुत गहरा प्यार करती थी और उसकी खूब देखभाल करती।

एक दिन वह बहुत बीमार पड़ गया और जानता था की जल्दी ही वह मर जाएगा।
उसने अपने आप से कहा," मेरी चार पत्नियां हैं, उनमें से मैं एक को अपने साथ ले जाता हूँ...जब मैं मरूं तो वह मरने में मेरा साथ दे।"

तब उसने चौथी पत्नी से अपने साथ आने को कहा तो वह बोली," नहीं, ऐसा तो हो ही नहीं सकता और चली गयी।

उसने तीसरी पत्नी से पूछा तो वह बोली की," ज़िन्दगी बहुत अच्छी है यहाँ।जब तुम मरोगे तो मैं दूसरी शादी कर लूंगी।"

उसने दूसरी पत्नी से कहा तो वह बोली, " माफ़ कर दो, इस बार मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती।ज्यादा से ज्यादा मैं तुम्हारे दफनाने तक तुम्हारे साथ रह सकती हूँ।"

अब तक उसका दिल बैठ सा गया और ठंडा पड़ गया।

तब एक आवाज़ आई," मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ।तुम जहाँ जाओगे मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।"

उस आदमी ने जब देखा तो वह उसकी पहली पत्नी थी।वह बहुत बीमार सी हो गयी थी खाने पीने के अभाव में।

वह आदमी पश्चाताप के आंसूं के साथ बोला," मुझे तुम्हारी अच्छी देखभाल करनी चाहिए थी और मैं कर सकता थाI"

दरअसल हम सब की चार पत्नियां हैं जीवन में।

1. चौथी पत्नी हमारा शरीर है।
हम चाहें जिन सजा लें संवार लें पर जब हम मरेंगे तो यह हमारा साथ छोड़ देगा।

2. तीसरी पत्नी है हमारी जमा पूँजी, रुतबा। जब हम मरेंगे
तो ये दूसरों के पास चले जायेंगे।

3. दूसरी पत्नी है हमारे दोस्त व रिश्तेदार।चाहेंवे कितने भी करीबी क्यूँ ना हों हमारे जीवन काल में पर मरने के बाद हद से हद वे हमारे अंतिम संस्कार तक साथ रहते हैं।

4. पहली पत्नी हमारी आत्मा है, जो सांसारिक मोह माया में हमेशा उपेक्षित रहती है।
यही वह चीज़ है जो हमारे साथ रहती है जहाँ भी हम जाएँ.......
कुछ देना है तो इसे दो....
देखभाल करनी है तो इसकी करो....
प्यार करना है तो इससे करो...