Friday 25 January 2019

गणतंत्र दिवस

मित्रों ये गणतंत्र है,इसके  आदि प्रणेता मनु है।


ये भारत की शान है,हम सबकी पहचान है।


हम कपिल,कणाद,गौतम की सन्तान है।


हमारे प्रेरक स्वयं राजा भरत है,जिनसे भारत की पहचान है।


ये भूमि बड़ी उर्वरा है दिव्य है,महान है।


क्योंकि हरिश्चंद्र युधिष्ठिर, श्रीराम, श्रीकृष्ण  की पुण्यभूमि


आर्यावर्त महान है।


इसकी रक्षा करने को यदि शीश कटाने पड़ जाए


इसकी रक्षा करने को यदि स्वयं को अर्पण करना पड़ जाए


तो मातृभूमि की रक्षा में तन मन धन न्यौछावर कर देंगे


लेकिन तिरंगे की शान  इसकी आन को धूमिल 


नही होने देंगे चाहे खुद मिट्टी में मिलना पड़े।


आओ चले भगत,बिस्मिल,खुदीराम बोस की राहें


ताकि फिर नेता जी को ना कहना पड़े तुम मुझे खून......


ताकि फिर किसी 'आज़ाद' को आज़ादी के लिए कोड़े ना लगे


ब्रह्मदेव की ओर से गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं


करे स्वीकार, सादर आभार सहित


द्वारा..पं ब्रह्मदेव वेदालंकार


Thursday 24 January 2019

निर्धनता बुरी नही धन का नशा बुरा है

कहा गया है कि धन में लक्ष्मी का वास होता है। धन का महत्व आज के समय में ही नहीं, बल्कि प्राचीन समय से रहा है। धन के बिना न तो कोई यज्ञ होता है न ही कोई अनुष्ठान। जीवन निर्वाह धन के बिना नहीं हो सकता। आपने अक्सर ही लोगों से सुना होगा कि पैसे में बहुत ताकत है और यह कि पैसा है तो सब कुछ है! इन कथनों में कुछ हद तक सच्चाई भी है। यह सही है कि धन के बिना हमारा काम नहीं चल सकता, पर ऐसा कतई नहीं है कि धन ही सब कुछ है। थोड़ा-बहुत धन हमें चाहिए, पर जितना चाहिए उसी के पीछे यह सब अनर्थ नहीं हो रहा। अनर्थ वे लोग ही करते हैं जिनके पास ‘चाहिए’ से अधिक धन है। यहां सवाल यह उठता है कि चाहिए से अधिक धन का लोग क्या करते हैं?

आज धन बल पर धर्म का व्यवसायीकरण हो रहा है। संतगण धन-संचय और वैभवशाली जीवन-शैली के नए प्रतिमान गढ़ रहे हैं। ऐसे में निराकार ईश्वर के आराधक संत कबीरदास याद आते हैं। कबीर ने बड़े सहज भाव से परमेश्वर से यह मांग रखी- ‘साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥’ यानी वह जनसाधारण को परिश्रम से उतने ही धन उपार्जन के लिए कह रहे हैं, जितने से उसके दैनिक कार्यों की पूर्ति हो जाए। आवश्यकता से अधिक धन की इच्छा ही तृष्णा का रूप धारण कर लेती है और अंततोगत्वा यह तृष्णा ही व्यक्ति के नैतिक पतन का कारण बनती है।

हमारी संस्कृति में धन के अभाव को बहुत बड़ा अभिशाप माना जाता है। जहां यह सत्य है कि दूसरों की भलाई के कार्यों के लिए धन की आवश्यकता होती है, वहां यह भी सत्य है कि धन की बुराइयों को अपनी ओर खींचने की क्षमता अकथनीय है। इस दुविधा को दूर करने के लिए हमारी संस्कृति ने एक मार्ग सुझाया है और वह है त्याग। अपने शरीर को स्वस्थ रखने व दूसरों की भलाई के लिए धन की सहायता से उचित साधन जुटाए जाएं, लेकिन उनका उपभोग त्याग की भावना से किया जाए।

यह सच है कि धन मूल्यवान है। उसकी सभी को जरूरत है, पर उसको सब कुछ मान लेना स्वस्थ मन-मस्तिष्क का परिचायक नहीं कहा जा सकता। इसी मान्यता के प्रभाव का परिणाम है कि आज जीवन के लिए धन नहीं रह गया है, धन के लिए जीवन हो गया है। हर आदमी भाईचारा, सुख-शांति व ईमान खोकर जिस किसी भी तरह से धन कमाने के पीछे पड़ा है। इससे दुनिया में धन नहीं बढ़ा है बल्कि धन का नशा बढ़ा है, धन के लिए पागलपन बढ़ा है। इससे दुख बढ़ा है, अशांति बढ़ी है, घमंड बढ़ा है और शैतानियत बढ़ी है।

वेद कहता है- पैसा कमाओ परंतु बहुत नहीं, जितनी जरूरत है उतना कमाओ। कुछ दान भी दो कुछ खाओ-पियो और ईश्वर का ध्यान, भगवान का भजन करो। धन कमाने के लिए एक दिन में अधिकतम 8 घंटे का समय खर्च करना चाहिए, थोड़ा-थोड़ा करके धीरे-धीरे पैसा कमाओ, धीरे-धीरे जमा करो जिससे अपना जीवन ठीक से चलता रहे। अत्यधिक धन की चाह को अपने दिल में कभी जड़ मत पकड़ने दो। याद रखिए कि आपके दोस्त, परिवार के सदस्य और आपकी सेहत पैसे से कहीं ज्यादा अनमोल हैं।
निर्धनता बुरी है पर धन का नशा उससे भी बुरा है।

Wednesday 16 January 2019

मकर संक्रांति

नमस्ते जी।इस मकर संक्रांति मैंने यह कुछ प्रभु को समर्पित करते हुए कविता लिखी है।आप भी आनंद लेऔर अपना स्नेह प्रदान करे।
हे मेरे वरेण्यम प्रभु वरदान दो,
सूर्य के पथ पर चलू निरन्तर,
ज्ञान दो सद्ज्ञान दो मेरे प्रभु
जीवन में दक्षिणायण ना आये कभी
उत्तरायण में बीते जीवन की घड़िया।
उत्तरायण के मार्ग पर चलता हुआ
सत्य की जय करता हुआ सदा,
क्योंकि सत्य भी आप ही है
और नारायण भी आप ही है।
आपका अटल पथ उत्तरायण है।
उत्तरायण के पथ पर चलता हुआ
विचलित ना हूँ कभी दक्षिणायन की बाधाओं से।
जीवन का अज्ञान तिमिर भस्म हो आपके प्रकाश से।
आपके दिखाये पथ पर चलकर
जीवन के संग्राम में बड़ो के बताए
मार्ग का आरोहण कर के
देवत्व का वरण करु
मैं ब्रह्म हूँ विजयी रहूँ, देवत्व के मार्ग में।
विजयी रहूँ, विजयी रहूँ देवत्व के मार्ग में।
द्वारा    पं ब्रह्मदेव वेदालंकार