Thursday 25 December 2014

Nobody Loves god,Nobody wants to meet him..!

There was one vedic literature preacher in the aashram named as GURU.His biggest follower was DIVANSH who work for the society to teach people about humanity.
One day Divyansh went to Guru and asked him "I see almost every person woship god.Every person ask god give 'Darshan (appearence)',everyone want to meet god and for this he visits,Temple,churches,mosque and other places.But how can god be so rude that he does not have time to meet his children?"
Listening to Question of Divyansh,Guru answered very politely "No one wants to meet God,no one wants to get darshan of god,they all are busy in their own.They are not visiting temple to meet god,they are visiting temple to meet their needs.You bring any one person who truely wants to meet god"
Next day Divyansh went to the town and saw one man of age around 45 years.He was chanting the name of God again and again.Divyansh asked him if he wants to meet God.The person said "yes,it will be my dream come true.What else I want ,if i will meet my God".Divyansh asked him to come along with him to meet god in Himalay parvat.He has specially come to take him to God.
The person was very happy and said "wow,its too great ...I will definitely come,but just give me 7 days time because my Son marriage is there ,once It happens then I will come with you".Divyansh said Ok and came back after 10 Days ,asked the same person if he is coming to meet god.The person replied "Dont mind,just now marriage is completed.I want to see the face my grandson then I will go.Please give me 1 year time."Divyansh Went back .
Again Divyansh came back after 1 year and asked the person to come,the person replied "recently I had my grandson,very quite,very sweet....I want to play with him,live his life.....Give me more 2-3 years then I will surely come.Divyansh Again went back.Divyansh came back after  3 years and asked the person to come.The person replied "Why all the time you come to me?My grand child is small ,my son can't take care of him,I have to do all the things.You take somebody else"

Now Divyansh realised how people are making fool of their own.Some time they are busy in their job and establishing their family,educating their small kids.Then making their childrent get established or after that preparing them for marriage.But nobody has time to think about the one who sent them on this earth,GOD.Nobody has time to give atleast 24 minutes of 24 hrs to GOD.Everybody is Busy.But yes,they are free,they have lot of time critisizing god when they face problems,they face challenges..........
My friends become true lover of god,fulfill your duties and love god......Not just pray god only in difficult times,not in time when you want something.Always thank god for each and every beautiful moment he has given to you....


Friday 3 October 2014

|| आज फिर रावण जलेगा...राम जीतेंगे !! ||

अब से कुछ देर बाद आप रावण-दहन देखेंगे ,रावण के पुतले को बड़े ही उत्साह के साथ, 'जय श्री राम' के नारो के साथ जला दिया जायेगा |और उसके बाद.......उसके बाद आप अपनी वही दैनिक कार्यो में व्यस्त हो जायेंगे.....
आईये २ मिनट का चिंतन कर लेते है ....
दशहरा (विजयादशमी) का यह त्योहार इसलिए मनाया जाता है क्योकि श्री राम ने आज ही के दिन बुराई के प्रतीक -रावण का वध किया था.तभी से हमने निश्चय किया की हम इस दिन को त्योहार के रूप में मनायेगे |अगर आप वाल्मीकि रामायण को पढ़े तो आपको यह ज्ञात हो जायेगा की रावण बहुत ही बुद्धिमान,ज्ञानी एवं तपस्वी व्यक्ति था.अनेको सिद्धियों से युक्त था,विज्ञान का बहुत ही अच्छा ज्ञान रखता था.यहाँ तक की कुछ इतिहासकार एवं उपदेेशक रावण को उस समय का सबसे बुद्धिमान और ज्ञानी भी मानते है |लेकिन रावण के अंदर सिर्फ एक बुराई थी -अहंकार (घमंड)|एक यही दुर्गुण के कारण रावण क्षति को प्राप्त हुआ ,उसका श्री राम ने वध किया और आज हम राम को पूजते है रावण को नहीं .
मित्रो, एक बुराई भी इंसान के लिए कितनी घातक है ,बुरी है उसका ये सबसे अच्छा उदहारण है |आज हम रावण को तो जलाते है लेकिन इस सन्देश को नहीं समझते की रावण को क्यों जला रहे है | "राम ने रावण को नहीं मारा,अपितु रावण को उसकी बुराई ने मारा " यह अगर कहे तो गलत नहीं होगा| आज जरुरत है की आज के दिन हम अपने अंदर की कम से कम एक बुराई को पहचाने ,अभिमान,क्रोध,लोभ,चोरी, बेईमानी,अति-मोह, हिंसा चाहे वो जो कुछ भी हो....निश्चय करिये की इस एक बुराई को आप और हम आज जरूर पहचानेंगे और जब रावण दहन शाम को टीवी पर देखेंगे तो साथ में इस बुराई को भी दहन कर देंगे ,इस बुराई को भी जला देंगे....यह इतना आसान नहीं है ,मुश्किल है | लेकिन आपकी इच्छाशक्ति,दृढ़संकल्प के सामने कुछ भी नहीं है|आपको समय लगेगा लेकिन आप बुराई से जरूर विजय पा सकते है|आज संकल्प लें की अगले साल के विजयादशमी के पर्व तक हम इस बुराई से विजयी हो जायेंगे |
इस बुराई से विजय प्राप्त करना,इस बुराई को छोड़ देना ही सच्चे अर्थो में विजयादशमी का पर्व है | राम ने तो रावण को मारा लेकिन आपने क्या किया? कभी अपने से ये भी तो पूछिये | आज हम सब राम बन सकते है ,जरूर बनेंगे ये संकल्प करिये ,और मैं विश्वास के साथ कहता हू की यह संकल्प आपके अंदर इस पर्व के प्रति और उत्साह भर देगा |
कल जब आप अपने नित्य कार्यो से अपने ऑफिस आदि जायेंगे तो आपके मित्र पूछेंगे-"भाई दशहरा पर क्या किया?" |मित्रो तब गर्व से कहियेगा की लोगो ने तो रावण के पुतले को जलाया,मैंने अपने अंदर के रावण को जलाया है और मैं सच्चे अर्थो में 'भगवन' श्रीराम के साथ विजयी हुआ हू |

इस सन्देश को अपने तक न रखे,अपने बच्चो,अपने मित्रो ,दोस्तों को सभी को दे और पालन करके सच्चे अर्थो में विजयादशमी(दशहरा) को मनाये.....विजयादशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं |
धन्यवाद
-ब्रह्मदेव वेदालंकार

Monday 28 July 2014

Vedic vichar on Arya samaj

   एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोजाना भोजन
पकाती थी और एक रोटी वह वहां से ...गुजरने वाले
किसी भी भूखे के लिए पकाती थी ,
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी जिसे
कोई भी ले सकता था .
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज उस रोटी को ले जाता और वजाय
धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह
बडबडाता "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और
जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
दिन गुजर...ते गए और ये
सिलसिला चलता रहा ,वो कुबड़ा रोज रोटी लेके
जाता रहा और इन्ही शब्दों को बडबडाता
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम
अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन
खुद से कहने लगी कि "कितना अजीब व्यक्ति है ,एक शब्द
धन्यवाद का तो देता नहीं है और न जाने
क्या क्या बडबडाता रहता है ,
मतलब क्या है इसका ".
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और
बोली "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी ".
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में जहर
मिला दीया जो वो रोज उसके लिए बनाती थी और जैसे
ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश
कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह
बोली "
हे भगवन मैं ये क्या करने जा रही थी ?" और उसने तुरंत उस
रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दीया .एक
ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी ,
हर रोज कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके "जो तुम
बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे
वह तुम तक लौट के आएगा " बडबडाता हुआ चला गया इस
बात से बिलकुल बेखबर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल
रहा है .
हर रोज जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह
भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर
वापसी के लिए प्रार्थना करती थी जो कि अपने सुन्दर
भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ
था .महीनों से उसकी कोई खबर नहीं थी.
शाम को उसके दरवाजे पर एक दस्तक होती है ,वह
दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है ,
अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है.वह पतला और
दुबला हो गया था. उसके कपडे फटे हुए थे और वह
भूखा भी था ,भूख से वह कमजोर हो गया था. जैसे ही उसने
अपनी माँ को देखा,
उसने कहा, "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ. जब मैं
एक मील दूर है, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर. मैं मर
गया होता,
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था ,उसकी नज़र
मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लीया,भूख के
मरे मेरे प्राण निकल रहे थे
मैंने उससे खाने को कुछ माँगा ,उसने नि:संकोच
अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि "मैं हर रोज
यही खाता हूँ लेकिन आज मुझसे ज्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है
सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो " .
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी माँ का चेहरा पिला पड़
गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाजे
का सहारा लीया ,
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह
रोटी में जहर मिलाया था
.अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट
नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और
अंजाम होता उसकी मौत
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट
हो चूका था
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम
अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।
" निष्कर्ष "
~हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप
को कभी मत रोको फिर चाहे उसके लिए उस समय
आपकी सराहना या प्रशंसा हो या न हो .
-
अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो तो इसे दूसरों के साथ
शेयर करें ,
मैं आपसे शर्त लगाने के लिए तैयार हूँ कि ये बहुत लोगों के
जीवन को छुएगी .
Pandit Brahm Dev
Vedic Pravalta

Arya samaj

Friday 11 July 2014

Yagya ki mahima

Yagya ko ishwar ka mukh kaha gya hai .yadi aap kisi murti mei kuch bhi chadhate hai to wah kahan jata hai yah aap ache se samajh sakte hai.....lekin yagya mei di gayo aahuti pure vayumandal mei mil kal prithvi se dyulok tak pahuchti hai.   is yagya ki mahima ko samjhe ev pratidin yagya karein.aaj ke is vyast jeevan shaili mei kam se kam saptah mei ek din yagya karein..evam pratidin ishwar ka dhuan karna na bhoole

Thursday 10 July 2014

Aaj ka vichar

अपने माता पिता का सम्मान करने के 35 तरीके......

(भगवान ... हमें इन दिशा निर्देशों का पालन करने की क्षमता व भावना दे)

1. उनकी उपस्थिति में अपने फोन को दूर रखो
2. वे क्या कह रहे हैं इस पर ध्यान दो
3. उनकी राय स्वीकारें
4. उनकी बातचीत में सम्मिलित हों
5. उन्हें सम्मान के साथ देखें
6. हमेशा उनकी प्रशंसा करें
7. उनको अच्छा समाचार जरूर बताये
8. उनके साथ बुरा समाचार साझां करने से बचें
9. उनके दोस्तों और प्रियजनों से अच्छी तरह से बोलें
10. उनके द्वारा किये गए अच्छे काम सदैव याद रखें
11. वे यदि एक ही कहानी दोहरायें तो भी ऐसे सुनें जैसे पहली बार सुन रहे हो
12. अतीत की दर्दनाक यादों को मत दोहरायें
13. उनकी उपस्थिति में कानाफूसी न करें
14. उनके साथ तमीज से बैठे
15. उनके विचारों को न तो घटिया बताये न ही उनकी आलोचना करें
16. उनकी बात काटने से बचें
17. उनकी उम्र का सम्मान करें
18. उनके आसपास उनके पोते/पोतियों को अनुशासित करने अथवा मारने से बचें
19. उनकी सलाह और निर्देश स्वीकारें
20. उनका नेतृत्व स्वीकार करें
21. उनके साथ ऊँची आवाज में बात न करें
22. उनके आगे अथवा सामने से न चलें
23. उनसे पहले खाने से बचें
24. उन्हें घूरें नहीं
25. उन्हें तब भी गौरवान्वित प्रतीत करायें जब कि वे अपने को इसके लायक न समझें
26. उनके सामने अपने पैर करके या उनकी ओर अपनी पीठ कर के बैठने से बचें
27. न तो उनकी बुराई करें और न ही किसी अन्य द्वारा की गई उनकी बुराई का वर्णन करें
28. उन्हें अपनी प्रार्थनाओं में शामिल करें
29. उनकी उपस्थिति में ऊबने या अपनी थकान का प्रदर्शन न करें
30. उनकी गलतियों अथवा अनभिज्ञता पर हँसने से बचें
31. कहने से पहले उनके काम करें
32. नियमित रूप से
उनके पास जायें
33. उनके साथ वार्तालाप में अपने शब्दों को ध्यान से चुनें
34. उन्हें उसी सम्बोधन से सम्मानित करें जो वे पसन्द करते हैं
35. अपने किसी भी विषय की अपेक्षा उन्हें  प्राथमिकता दें

माता - पिता इस दुनिया में सबसे बड़ा खजाना हैं....

Wednesday 9 July 2014

Aaj ka vichar

एक आदमी की चार पत्नियाँ थी।

वह अपनी चौथी पत्नी से बहुत प्यार करता था और उसकी खूब देखभाल करता व उसको सबसे श्रेष्ठ देता।

वह अपनी तीसरी पत्नी से भी प्यार करता था और हमेशा उसे अपने मित्रों को दिखाना चाहता था। हालांकि उसे हमेशा डर था की वह कभी भी किसी दुसरे इंसान के साथ भाग सकती है।

वह अपनी दूसरी पत्नी से भी प्यार करता था।जब भी उसे कोई परेशानी आती तो वे अपनी दुसरे नंबर की पत्नी के पास जाता और वो उसकी समस्या सुलझा देती।

वह अपनी पहली पत्नी से प्यार नहीं करता था जबकि पत्नी उससे बहुत गहरा प्यार करती थी और उसकी खूब देखभाल करती।

एक दिन वह बहुत बीमार पड़ गया और जानता था की जल्दी ही वह मर जाएगा।
उसने अपने आप से कहा," मेरी चार पत्नियां हैं, उनमें से मैं एक को अपने साथ ले जाता हूँ...जब मैं मरूं तो वह मरने में मेरा साथ दे।"

तब उसने चौथी पत्नी से अपने साथ आने को कहा तो वह बोली," नहीं, ऐसा तो हो ही नहीं सकता और चली गयी।

उसने तीसरी पत्नी से पूछा तो वह बोली की," ज़िन्दगी बहुत अच्छी है यहाँ।जब तुम मरोगे तो मैं दूसरी शादी कर लूंगी।"

उसने दूसरी पत्नी से कहा तो वह बोली, " माफ़ कर दो, इस बार मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती।ज्यादा से ज्यादा मैं तुम्हारे दफनाने तक तुम्हारे साथ रह सकती हूँ।"

अब तक उसका दिल बैठ सा गया और ठंडा पड़ गया।

तब एक आवाज़ आई," मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ।तुम जहाँ जाओगे मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।"

उस आदमी ने जब देखा तो वह उसकी पहली पत्नी थी।वह बहुत बीमार सी हो गयी थी खाने पीने के अभाव में।

वह आदमी पश्चाताप के आंसूं के साथ बोला," मुझे तुम्हारी अच्छी देखभाल करनी चाहिए थी और मैं कर सकता थाI"

दरअसल हम सब की चार पत्नियां हैं जीवन में।

1. चौथी पत्नी हमारा शरीर है।
हम चाहें जिन सजा लें संवार लें पर जब हम मरेंगे तो यह हमारा साथ छोड़ देगा।

2. तीसरी पत्नी है हमारी जमा पूँजी, रुतबा। जब हम मरेंगे
तो ये दूसरों के पास चले जायेंगे।

3. दूसरी पत्नी है हमारे दोस्त व रिश्तेदार।चाहेंवे कितने भी करीबी क्यूँ ना हों हमारे जीवन काल में पर मरने के बाद हद से हद वे हमारे अंतिम संस्कार तक साथ रहते हैं।

4. पहली पत्नी हमारी आत्मा है, जो सांसारिक मोह माया में हमेशा उपेक्षित रहती है।
यही वह चीज़ है जो हमारे साथ रहती है जहाँ भी हम जाएँ.......
कुछ देना है तो इसे दो....
देखभाल करनी है तो इसकी करो....
प्यार करना है तो इससे करो...