Tuesday 24 April 2018

आज का विचार


आज का शब्द है: *सम्मान्य*
*✍एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण: रिश्तें मोतियों की तरह कीमती होतें हैं अगर कोई गिर भी जाये तो झुककर उठा लेना* *चाहिए।।*
एक कथा:
*✔”भैया, परसों नये मकान पे हवन है। छुट्टी (इतवार) का दिन है। आप सभी को आना है, मैं गाड़ी भेज दूँगा।” छोटे* *भाई लक्ष्मण ने बड़े भाई भरत से मोबाईल पर बात करते हुए कहा।*
*”क्या छोटे,किराये के किसी दूसरे मकान में शिफ्ट हो रहे हो?”*
*”नहीं भैया, ये अपना मकान है, किराये का नहीं ।”*
*”अपना मकान”, भरपूर आश्चर्य के साथ भरत के मुँह से निकला।*
*“छोटे तूने बताया भी नहीं कि तूने अपना मकान ले लिया है।”*
*”बस भैया“,कहते हुए लक्ष्मण ने फोन काट दिया।*
*”अपना मकान”,”बस भैया” ये शब्द भरत के दिमाग़ में हथौड़े की तरह बज रहे थे।*
*✔भरत और लक्ष्मण दो सगे भाई और उन दोनों में उम्र का अंतर था करीब पन्द्रह साल। लक्ष्मण जब करीब सात* *साल का था तभी उनके माँ-बाप की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। अब लक्ष्मण के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारी* *भरत पर थी। इस चक्कर में उसने जल्द ही शादी कर ली कि जिससे लक्ष्मण की देख-रेख ठीक से हो जाये।*
*✔प्राईवेट कम्पनी में क्लर्क का काम करते भरत की तनख़्वाह का बड़ा हिस्सा दो कमरे के किराये के मकान और* *लक्ष्मण की पढ़ाई व रहन-सहन में खर्च हो जाता। इस चक्कर में शादी के कई साल बाद तक भी भरत ने बच्चे पैदा* *नहीं किये। जितना बड़ा परिवार उतना ज्यादा खर्चा।*
*✔पढ़ाई पूरी होते ही लक्ष्मण की नौकरी एक अच्छी कम्पनी में लग गयी और फिर जल्द शादी भी हो गयी। बड़े* *भाई के साथ रहने की जगह कम पड़ने के कारण उसने एक दूसरा किराये का मकान ले लिया। वैसे भी अब भरत के* *पास भी दो बच्चे थे, लड़की बड़ी और लड़का छोटा।*
*✔मकान लेने की बात जब भरत ने अपनी बीबी को बताई तो उसकी आँखों में आँसू आ गये। वो बोली,”देवर जी के* *लिये हमने क्या नहीं किया। कभी अपने बच्चों को बढ़िया नहीं पहनाया। कभी घर में महँगी सब्जी या महँगे फल नहीं* *आये। दुःख इस बात का नहीं कि उन्होंने अपना मकान ले लिया, दुःख इस बात का है कि ये बात उन्होंने हम से* *छिपा के रखी।”*
*✔इतवार की सुबह लक्ष्मण द्वारा भेजी गाड़ी, भरत के परिवार को लेकर एक सुन्दर से मकान के आगे खड़ी हो* *गयी। मकान को देखकर भरत के मन में एक हूक सी उठी। मकान बाहर से जितना सुन्दर था अन्दर उससे भी ज्यादा* *सुन्दर। हर तरह की सुख-सुविधा का पूरा इन्तजाम। उस मकान के दो एक जैसे हिस्से देखकर भरत ने मन ही मन* *कहा,”देखो छोटे को अपने दोनों लड़कों की कितनी चिन्ता है। दोनों के लिये अभी से एक जैसे दो हिस्से तैयार कराये* *हैं। पूरा मकान सवा-डेढ़ करोड़ रूपयों से कम नहीं होगा। और एक मैं हूँ, जिसके पास जवान बेटी की शादी के लिये* *लाख-दो लाख रूपयों का इन्तजाम भी नहीं है।”*
*✔मकान देखते समय भरत की आँखों में आँसू थे जिन्हें  उन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर आने से रोका। तभी पण्डित* *जी ने आवाज लगाई,”हवन का समय हो रहा है, मकान के स्वामी हवन के लिये अग्नि-कुण्ड के सामने बैठें।” लक्ष्मण* *के दोस्तों ने कहा,”पण्डित जी तुम्हें बुला रहे हैं।” यह सुन लक्ष्मण बोले,”इस मकान का स्वामी मैं अकेला नहीं, मेरे बड़े* *भाई भरत भी हैं। आज मैं जो भी हूँ सिर्फ और सिर्फ इनकी बदौलत। इस मकान के दो हिस्से हैं, एक उनका और एक* *मेरा।” हवन कुण्ड के सामने बैठते समय लक्ष्मण ने भरत के कान में फुसफुसाते हुए कहा, ”भैया,बिटिया की शादी की* *चिन्ता बिल्कुल न करना। उसकी शादी हम दोनों मिलकर करेंगे।”*
एक निचोड़ कथा का:
*पूरे हवन के दौरान भरत अपनी आँखों से बहते पानी को पोंछ रहे थे, जबकि हवन की अग्नि में धुँए का नामोनिशान* *न था। भरत जैसे आज भी मिल जाते हैं इन्सान पर लक्ष्मण जैसे बिरले ही मिलते इस जहान में। आओ दोस्तो आज* *से ही सही पर लक्ष्मण न बन सके पर सोच तो शुरू कर ही सकते है लक्ष्मण जैसी। लक्ष्मण दूसरे के घर में नहीं पर* *अपने घर में भी पैदा करोंगे, ऐसा प्रण तो कर ही लो न दोस्तो।*