Monday 29 October 2018

आज का विचार

*एक राजा को दयालु और दानवीर कहलाने का बड़ा शौक था। दूसरों के मुख से आत्म प्रशंसा* *सुनने की उसकी ललक दिन–प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। वह प्रतिदिन यश और प्रशंसा बटोरने* *के लिए कोई न कोई अनोखा कार्य करता था।*

*एक दिन राजा नगर की सैर को जा रहा था, तभी वहाँ से एक बहेलिया बंद पिंजरे में पक्षियों* *को लेकर जा रहा था। राजा ने उस बहेलिये को बुलाया और सभी पक्षियों का मूल्य पूछा।* *बहेलिये ने मूल्य बताया तो राजा ने सब पक्षियों को खरीद लिया और स्वतन्त्र कर दिया।*

*जिसने भी यह दृश्य देखा उसने राजा की बड़ी सराहना की। इससे राजा बहुत खुश हुआ। अब* *वह बहेलिया प्रतिदिन उसी समय वहाँ से गुजरने लगा, जब राजा नगर की सैर करने जाता* *था। प्रशंसा का गुलाम राजा भी प्रतिदिन उसी बहेलिये से पक्षी खरीद कर उड़ा देता।*

*राजा के दयालुता के इस प्रदर्शन ने उस राज्य में कई नये बहेलियों को जन्म दे दिया।* *आत्मप्रशंसा और यश कामना के आनंद में डूबा राजा अपनी मुर्खता को समझ नहीं पाया।*

*इसी बीच एक महात्मा का उस राज्य में आगमन हुआ। जब उनके सामने राजा यह मुर्खता* *किया तो वह बहुत दुखी हुए। महात्मा ने राजा को समझाया–“ हे राजन ! आपको मालूम भी* *है, आपकी झूठी यश कामना इन निरीह पक्षियों को कितनी महँगी पड़ती है। बहेलियों पर* *आपके मनमाने धन लुटाने के कारण कई नये बहेलिये पैदा हो गये। ये लालची बहेलिये* *प्रातःकाल आपके सामने प्रस्तुत करने के चक्कर में पता नहीं, दिनभर कितने पक्षियों को* *परेशान करते होंगे। उनमें से कई निर्दोष पक्षी तो मर भी जाते होंगे। यदि आप इतने ही* *दयावान और धर्म परायण है तो दयालुता का प्रदर्शन बंद कीजिये और पक्षियों के शिकार पर* *प्रतिबंध लगा दीजिये।”*

*राजा को महात्मा की बात समझ आ गई। उसने अपनी भूल के लिए महात्मा के सामने* *पश्चाताप व्यक्त किया और यश कामना की आकांक्षा छोड़कर वास्तविक दया धर्म के पालन* *की रीति नीति अपनाई। दुसरे ही दिन राजा ने सभी बहेलियों को कारावास में डाल दिया और* *पुरे राज्य में पक्षियों के वध पर सख्त नियम ऐलान करवा दिया।*
शिक्षाप्रद्ध कथासार:
*इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें दयालुता का प्रदर्शन नहीं, पालन करना चाहिए।* *वास्तव में प्रदर्शन यश की कामना से किया जाता है जबकि पालन आत्म प्रेरणा से किया* *जाता है।*

Saturday 11 August 2018

सफलता का रहस्य

हर इंसान तरह-तरह के मन के लड्डू बनाते हैं, सुखी, समृद्ध होने के बड़े-बड़े मनसूबे पालते हैं परन्तु उन में से सफल बहुत ही थोड़े हो पाते हैं। शेखचिल्ली के से सपने यदि सफल हो जाया करें तो पुरुष और पौरुष का कोई फर्क ही इस संसार में नहीं रहता।


इच्छा, प्रयत्न, परिश्रम, लगन और दृढ़ता न हो तो सफलता की देवी ऐसे लोगों की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखती। सिद्धि उन्हें ही मिलती है जो अपनी चाहत को पूरी करने के लिए जी जान से प्रयास करते हैं।


ज्ञानीजनों ने कहा है- “उद्योगि नं पुरुष सिंह भुपैति लक्ष्मी, दैवेनदेव मति का पुरुषो बदन्ति।” लक्ष्मी उद्योगी पुरुषों को ही प्राप्त होती है और कायर लोग दैव-दैव पुकारा करते हैं। एक अन्य वचन है कि- ‘कायरा इति जल्पन्ति यद्भाव्यं तद्भविष्यति” कायर लोग ऐसी बकवास करते रहते हैं कि जो होना है वही होगा। “न प्रसुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगाः” सोते हुए सिंह के मुख में हिरन खुद प्रवेश नहीं करते, बल्कि सिंह को ही उन मृगों को पकड़ना और खाना पड़ता है।


रामायण का कथन है- “दैव दैव आलसी पुकारा।” भाग्य के भरोसे बैठे रहने से तरह-तरह की कल्पना करते रहने से, कुछ प्राप्त नहीं होता। इच्छा को पूर्ण करने के लिए जो निरन्तर उत्साहपूर्वक प्रयत्न करते हैं, वे ही सफलता के भागी होते हैं।


सफलता के इच्छुक व्यक्तियों को बाइबिल का यह वचन ध्यान रखना चाहिए कि “जो सच्चाइ से मांगता है उसे दिया जाता है।” सचाई से मांगने का अर्थ है पूरे परिश्रम उत्साह और संयम के साथ इच्छित वस्तु की प्राप्ति में जी जान से जुट जाना। आप यदि मनोरथ सफल करना चाहते हैं, सिद्धि की सीढ़ी पर चढ़ना चाहते हैं तो घोर प्रयत्न और दृढ़इच्छा को अपना साथी बना लीजिए, प्रयत्न के ऊपर प्राप्ति निर्भर है। याद रख लीजिए जो पाना चाहता है उसे ही मिलता है।


आचार्य ब्रह्मदेव वेदालंकार

Monday 6 August 2018

मन

मन जो है वह कामनाओं रूपी राजपथ पर बड़ी तेजी से दौड़ना चाहता है ।लेकिन आइये हम चिंतन करे कि यदि मन के साथ दौड़ते रहेगे तो क्या मंजिल मिलेगी तो निश्चित रूप से मन की मंजिल मिल सकती है लेकिन आत्मा कही खो जायेगी।और जब हमारा मालिक ही कही खो जाएगा तो हम उस शिखर पर पहुँच कर क्या करेंगे।
वास्तव में हमारे सम्पूर्ण दुखों का मूल मन का अनियंत्रित होना है,जैसे कि यदि हमे कार के द्वारा कही भी जाना  है तो
प्रशिक्षित चालक अवश्य होना चाहिए क्योंकि यदि चालक समझदार नही है तो कही ना कही गाड़ी  की टक्कर कर देगा जिससे चोटिल होकर कष्ट पाएंगे ठीक ऐसे ही यदि हम कामनाओं (इच्छाओं) के पथ पर  मन का नियंत्रण नही करते तो बड़ी दुर्घटना हो सकती है।
पं ब्रह्मदेव वेदालंकार

Thursday 7 June 2018

आज का विचार

👉👉👉  *असली उम्र*   👈👈👈

एक बार एक आदमी किसी गाँव के पास से गुजर रहा था ।  उस रास्ते में श्मशान भूमि थी, उसने श्मशान भूमि में पत्थरों के ऊपर मरने वाले की उम्र लिखी हुई देखी 5 वर्ष, 8 वर्ष, 10 वर्ष और 20 वर्ष ।  उस आदमी ने सोचा कि इस गांव में सभी की मृत्यु अल्प आयु में ही हो जाती है ।  वह आदमी गांव में गया तो गांव वालों ने उस आदमी की बहुत सेवा सत्कार किया । वह आदमी कुछ दिन उस गांव में ठहरने के बाद वहां से जाने के लिए तैयार हुआ और गांव वालों को बताया कि मैं कल जा रहा हूँ ।

उसकी बात सुनकर गांव वाले बहुत दुखी हुए और कहने लगे हमारे से कोई गलती हुई है तो बताओ लेकिन आप यहाँ से न जाओ, आप इसी गाँव में रुक जाओ ।  वह आदमी कहने लगा कि इस गांव में, मैं और अधिक नहीं रह सकता, क्योंकि इस गांव में इंसान की अल्प आयु में ही मृत्यु हो जाती है । उसकी बात सुनकर गांव वाले हँसने लगे, और बोले देखो - हमारे बीच में भी कोई 60 वर्ष, 70 वर्ष औऱ 85 वर्ष का भी है ।  *तो उस आदमी ने पूछा कि श्मशान भूमि के पत्थरों पर लिखी मृतक की आयु का क्या कारण है ?*  गांव वाले कहने लगे कि हमारे गांव में रिवाज़ है कि *आदमी सारा दिन काम काज करके, फिर भगवान का भजन कीर्तन, जीव की सेवा करके, रात को भोजन करने के बाद, जब वह सोने जाता है,  तब वो अपनी डायरी के अंदर यह बात लिखता है कि आज कितना समय भगवान का सत्संग, भजन - सुमिरन किया ।*

जब उस आदमी की मृत्यु होती है, तब उसकी लिखी हुई डायरी लेकर उसके किये हुए *भजन सिमरन  के समय को जोड़ कर हम उसे महीने और साल बनाकर उसे पत्थरों पर लिख देते हैं ।* क्योंकि इंसान की *असली आयु तो वही है जो उसने भगवान के भजन - सुमिरन  में बिताई है ।*  इंसान का बाकी जीवन तो *दुनियाँ मे ही व्यर्थ चला गया।*

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Tuesday 24 April 2018

आज का विचार


आज का शब्द है: *सम्मान्य*
*✍एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण: रिश्तें मोतियों की तरह कीमती होतें हैं अगर कोई गिर भी जाये तो झुककर उठा लेना* *चाहिए।।*
एक कथा:
*✔”भैया, परसों नये मकान पे हवन है। छुट्टी (इतवार) का दिन है। आप सभी को आना है, मैं गाड़ी भेज दूँगा।” छोटे* *भाई लक्ष्मण ने बड़े भाई भरत से मोबाईल पर बात करते हुए कहा।*
*”क्या छोटे,किराये के किसी दूसरे मकान में शिफ्ट हो रहे हो?”*
*”नहीं भैया, ये अपना मकान है, किराये का नहीं ।”*
*”अपना मकान”, भरपूर आश्चर्य के साथ भरत के मुँह से निकला।*
*“छोटे तूने बताया भी नहीं कि तूने अपना मकान ले लिया है।”*
*”बस भैया“,कहते हुए लक्ष्मण ने फोन काट दिया।*
*”अपना मकान”,”बस भैया” ये शब्द भरत के दिमाग़ में हथौड़े की तरह बज रहे थे।*
*✔भरत और लक्ष्मण दो सगे भाई और उन दोनों में उम्र का अंतर था करीब पन्द्रह साल। लक्ष्मण जब करीब सात* *साल का था तभी उनके माँ-बाप की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। अब लक्ष्मण के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारी* *भरत पर थी। इस चक्कर में उसने जल्द ही शादी कर ली कि जिससे लक्ष्मण की देख-रेख ठीक से हो जाये।*
*✔प्राईवेट कम्पनी में क्लर्क का काम करते भरत की तनख़्वाह का बड़ा हिस्सा दो कमरे के किराये के मकान और* *लक्ष्मण की पढ़ाई व रहन-सहन में खर्च हो जाता। इस चक्कर में शादी के कई साल बाद तक भी भरत ने बच्चे पैदा* *नहीं किये। जितना बड़ा परिवार उतना ज्यादा खर्चा।*
*✔पढ़ाई पूरी होते ही लक्ष्मण की नौकरी एक अच्छी कम्पनी में लग गयी और फिर जल्द शादी भी हो गयी। बड़े* *भाई के साथ रहने की जगह कम पड़ने के कारण उसने एक दूसरा किराये का मकान ले लिया। वैसे भी अब भरत के* *पास भी दो बच्चे थे, लड़की बड़ी और लड़का छोटा।*
*✔मकान लेने की बात जब भरत ने अपनी बीबी को बताई तो उसकी आँखों में आँसू आ गये। वो बोली,”देवर जी के* *लिये हमने क्या नहीं किया। कभी अपने बच्चों को बढ़िया नहीं पहनाया। कभी घर में महँगी सब्जी या महँगे फल नहीं* *आये। दुःख इस बात का नहीं कि उन्होंने अपना मकान ले लिया, दुःख इस बात का है कि ये बात उन्होंने हम से* *छिपा के रखी।”*
*✔इतवार की सुबह लक्ष्मण द्वारा भेजी गाड़ी, भरत के परिवार को लेकर एक सुन्दर से मकान के आगे खड़ी हो* *गयी। मकान को देखकर भरत के मन में एक हूक सी उठी। मकान बाहर से जितना सुन्दर था अन्दर उससे भी ज्यादा* *सुन्दर। हर तरह की सुख-सुविधा का पूरा इन्तजाम। उस मकान के दो एक जैसे हिस्से देखकर भरत ने मन ही मन* *कहा,”देखो छोटे को अपने दोनों लड़कों की कितनी चिन्ता है। दोनों के लिये अभी से एक जैसे दो हिस्से तैयार कराये* *हैं। पूरा मकान सवा-डेढ़ करोड़ रूपयों से कम नहीं होगा। और एक मैं हूँ, जिसके पास जवान बेटी की शादी के लिये* *लाख-दो लाख रूपयों का इन्तजाम भी नहीं है।”*
*✔मकान देखते समय भरत की आँखों में आँसू थे जिन्हें  उन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर आने से रोका। तभी पण्डित* *जी ने आवाज लगाई,”हवन का समय हो रहा है, मकान के स्वामी हवन के लिये अग्नि-कुण्ड के सामने बैठें।” लक्ष्मण* *के दोस्तों ने कहा,”पण्डित जी तुम्हें बुला रहे हैं।” यह सुन लक्ष्मण बोले,”इस मकान का स्वामी मैं अकेला नहीं, मेरे बड़े* *भाई भरत भी हैं। आज मैं जो भी हूँ सिर्फ और सिर्फ इनकी बदौलत। इस मकान के दो हिस्से हैं, एक उनका और एक* *मेरा।” हवन कुण्ड के सामने बैठते समय लक्ष्मण ने भरत के कान में फुसफुसाते हुए कहा, ”भैया,बिटिया की शादी की* *चिन्ता बिल्कुल न करना। उसकी शादी हम दोनों मिलकर करेंगे।”*
एक निचोड़ कथा का:
*पूरे हवन के दौरान भरत अपनी आँखों से बहते पानी को पोंछ रहे थे, जबकि हवन की अग्नि में धुँए का नामोनिशान* *न था। भरत जैसे आज भी मिल जाते हैं इन्सान पर लक्ष्मण जैसे बिरले ही मिलते इस जहान में। आओ दोस्तो आज* *से ही सही पर लक्ष्मण न बन सके पर सोच तो शुरू कर ही सकते है लक्ष्मण जैसी। लक्ष्मण दूसरे के घर में नहीं पर* *अपने घर में भी पैदा करोंगे, ऐसा प्रण तो कर ही लो न दोस्तो।*

Thursday 25 January 2018

26januray


नमस्ते जी।

आज हमारे  श्रेष्ठ आर्यावर्त भारतवर्ष का पावन पवित्र गणतंत्र पर्व है।आज एक प्रकार से राष्ट्रीय अनुशासन पर्व है आइये कुछ चिन्तन मनन करे जिस से हमारे जीवन मे अग्नि मिसाइल जैसी लक्ष्य सिद्धि हो,इसरो के सैटलाइट की तरह दूरदृष्टि हो सर्वत्र विजय का जज्बा पैरा कमांडो की तरह हो।
याद कीजिए सतयुग के चक्रवर्ती राजा हरिश्चन्द्र जी को जिन्होंने जीवन की विपरीत परिस्थितियों में भी अपने धीरज साहस शौर्य को कमजोर नही होने दिया।
स्मरण कीजिए आर्य शिरोमणि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी  के जीवन को जिन्होंने समस्याओं को चुनौती समझा ना कि अपनी किस्मत को कोसा, और अपनी धीरता वीरता,शूरता ,पराक्रम के द्वारा अपनी चुनौतियों को ही अवसर में परिवर्तित कर के आर्य वंश के गौरव और श्रेष्ठता को स्थापित किया।
मित्रों आज का दिवस श्रीकृष्ण जी की  नीति निपुणता, चाणक्य और चन्द्रगुप्त का ज्ञान कर्म का उच्चतम स्तर का  शुभ प्रेरणापूर्ण मेल,गौतम, कणाद,ऋषि दयानंद जी 
की देश पर मर मिटने और आध्यात्मिक उन्नति के द्वारा 
भारतवर्ष के गौरवशाली स्वर्णिम अतीत की ओर अग्रसर होने का संकल्प लेने का समय है।
आज के समाज मे यदि हमे सफल सुखी स्वस्थ तन और मन रखना है तो सबसे पहले धीरज धारण करना पड़ेगा घर परिवार के मामलों कुछ को माफ करना पड़ेगा, कुछ से माफी मांग कर रिश्तों के नये गणतंत्र  का शुभारंभ कर पाएंगे।
अपने ईश्वर, गुरुजनों ,माता पिता की सर्वोच्च सत्ता को पुनः स्थापित करना पड़ेगा।
दोस्तों आज का दिन कुछ संकल्प करने  का समय है कि हम धर्मवीर बने हकीकत रॉय की तरह,भक्त बने प्रहलाद की तरह,धनवान बने भामाशाह की तरह,वीर बने महाराणा प्रताप की तरह,आयुष्मान बने पितामह भीष्म की तरह तभी तिरंगे की आन बान शान हिमालय की तरह अटूट अक्षुण्ण रहेगी।
जय हिंद
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
पं ब्रह्मदेव वेदालंकार