Sunday 27 November 2011

सफलता प्राप्त करने के लिए जरुरी है त्रिविध शक्ति :आइये इसको समझे...

मित्रो,आज जीवन में कौन सफल नहीं होना चाहता ,,हर व्यक्ति दुसरे से आगे बढ़ना चाहता है ,ऊंचा उठाना चाहता है ,सफल होना चाहता है ....इसमें कोई खराबी नहीं है ,प्रतिस्पर्धा की भावना से अपने अन्दर सुधार आता है लेकिन सही तरीके से.| कोई भी व्यक्ति सिर्फ चाहने से,बोल देने से सफल नहीं हो जाता उसके लिए उसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है ....वेद में कहा गया है की सफलता प्राप्त करने के लिए त्रिविध शक्ति (शारीरिक,बौद्धिक,आत्मिक) की आवश्यकता है ....आइये इसपर विचार करे ..
कभी कभी इनमे से कोई एक या फिर दो होने पर भी सफलता मिल जाती है ...
शारीरिक बल :शारीरक बल से भी बहुत सारे कार्य सिध्द होते है ,जैसे यदि महाभारत का उद्धरण ले तो ध्यान दीजिये की चक्रव्यू की रचना कौरवो  ने करी और उसका रक्षक ड्रोन जैसे महारथी को बनाया लेकिन अभिमन्यु अपनी वीरता और शारीरिक,बौद्धिक बल के द्वारा उसमे प्रवेश करने में सफल रहा ...इसलिए अपने शारीर को स्वस्थ रखना चाहिए
अब बात करते है बौद्धिक बल की ,बहुत से युद्ध हथियारों से नहीं बुध्धि से लड़े जाते है ये आप सभी जानते है ,यदि हम अपनी बुधि का सही प्रयोग न करे तो उसे कह दिया
 जाता है strategy failure .| उद्धरण आप महाभारत के यक्ष-युधिष्ठिर संवाद का ले सकते है जहाँ युधिष्ठिर ने अपने बौद्धिक बल से अपने सारे भाइयो को बचाया था |
अब बात आती है आत्मिक बल की ,,,,इसे समझना बहुत जरुरी है.| हमे कहा  बोलना है ,कब बोलना है ,कैसे बोलना है ये भी समझने की जरुरत है .जीवन में संयम का भी बहुत महत्व है ,यदि व्यक्ति अचानक बिना सोचे समझे कार्य कर दे तो वह मार खा सकता है इसलिए आपको आत्मिक रूप से मजबूत होना होगा .इसका उद्धरण आप श्री कृष्ण को ले सकते है जिन्हें योगिराज भी कहा जाता है
चाहे कितनी सफलता ही क्यों न मिल जाये हमेशा सज्जन रहे ,अपने व्यव्हार में शालीनता रहे,वाणी में मधुरता है रहे क्रोध में अनावश्यक निर्णय न करना यही है  आपका आत्मिक रूप से मजबूत होना |
मित्रो जरा विचार करें और अपने लक्ष्य को सोचे ,और देखे ,विश्लेषण करे की क्या आप अपने लक्ष्य की और बढ़ रहे हो??क्या आप जिस रस्ते पर चल रहे हो वह आपकी मंजिल तक पहुचता है ???क्या आपके पास वो त्रिविध शक्ति है जिससे आप अपनी मंजिल को हासिल करोगे??? सिर्फ ऊंचे सपने देखने से सपना सच नहीं हो जाता ,उस पर कठोर परिश्रम करें ,सोचे और विचार करें....
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633)
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Thursday 24 November 2011

आत्मजागरण :क्रांति की मशाल


प्रिय मित्रो,
आज  अन्ना जी के वक्तव्य पर बवाल हो रहा है कि ज सार्वजनिक रूप से झगडा फसाद करता है  पूरे दिन कमाने के बाद जब शाम को घर में गृहणी उसका इंतज़ार कर रही होती है तब वो शराबी अपने दिन भर की मेहनत की कमाई को शराब में उड़ा देता है और उसके बच्चे घर में भूखे पेट सो जाते है ,उस शराबी को सुधारने की 3 बार चेतावनी देने के बाद यदि वह नहीं सुधरता तो उसको सार्वजनिक रूप से दण्डित किया जाये ....
जरा विचार कीजिये,...जब किसी भवन को सुन्दर,सुरम्य व अपने अनुकूल भवन बनाना हो तो पहले वहां के खंडहर को तोडा जाता है और उसके स्थान पर भवन खड़ा किया जाता है ..| जिस प्रकार हमारे शारीर में रीढ़ की हड्डी का स्थान होता है ठीक उसी प्रकार से युवा वर्ग का स्थान समाज में होता है | यदि इस युवा वर्ग को ही ख़तम कर दिया जाये तो समाज रुपी भवन को जर्जर होते देर न लगेगी |  शराब ,नशाखोरी की लत इंसान को मानसिक रूप से नष्ट कर देती है ,और कहा भी गया है की मन के हारे हार है और मन के जीते जीत | 
इसलिए ,हम अन्ना का समर्थन करते है क्योकि कहने को तो केरल आज सबसे ज्यादा साक्षर राज्य है लेकिन अगर आकड़ो की बात करे तो सबसे ज्यादा शराब की खपत भी वहीँ होती है ,सबसे ज्यादा आत्महत्या (आकड़ो के माध्यम से) केरल में होती है /......
सिर्फ पाबन्दी लगा देने से बुराई समाप्त नहीं होती ,बुराई समाप्त होती है आत्मजागरण से आज के युवा को हमे जगाना है नशे के खिलाफ ताकि नशा स्वयं समाप्त हो जाये ...| आज जरुरत है अपने अन्दर झाकने की की हम धन,बल,'संस्कार' ,परिवार से पूर्ण होने पर भी नशे की ओर क्यों भागते है ??? इसका कारन लगता है  मन का कमजोर होना ,मन को मजबूत करे ,आत्मचिंतन करे...मनन की शक्ति बहुत बलवान होती है इसी ने एक 'नरेन्द्र नाथ 'को 'स्वामी विवेकानंद' बनादिया, 'गुदड़ी के लाल ' 'लाल बहादुर शास्त्री बने','मूलशंकर' 'स्वामी दयानंद' बने ....
अपने अन्दर सहनशीलता को लाओ,ज्ञान के माध्यम से सत्य और असत्य ,सही और गलत में अंतर को पहचानो ,जीवन में बड़ा आदमी बन जाना ही सब कुछ नहीं है ,एक अच्छा इंसान बनना भी जरुरी है.इंसान अच्छा बनता है ज्ञान से,विचारो से ,कर्म से इसलिए मित्रो आत्मज्गरण करे ,और अपने अन्दर एक क्रांति की मशाल को जलाये और इन बातो पर विचार करे....
ब्रह्मदेव वेदालंकार 
(09350894633)



Thursday 17 November 2011

मैने माता पिता के अहसानों को चुका दिया !!!


कुछ दिन पहले मेरा एक आर्य समाज में  प्रवचन का कार्यक्रम था ,वहां पर प्रवचन के उपरांत एक महानुभाव मेरे पास आये और प्रशन किया की "मेरे माता पिता ने मेरी पढाई पर बहुत खर्च किया था ,आज मै ऊचे पद पर पहुच गया हू मैंने उन्हें वो पैसा लौटा दिया और उनके रहने की व्यवस्था कर दी ,इसलिए मै मानता हू की मैंने उनका अहसान चुका दिया है ,लेकिन वो यह नहीं मानते ,मै क्या करू??"
मैंने कहां-
महोदय,जो आपके माता पिता ने पैसे खर्च किये वो आपने लौटा दिए पर वो पल,वो क्षण,वो समय लौटा दिया,जो आपके माता पिता ने आपको पालने में व्यतीत किया?एक छोटा बच्चा जब गलती करता है तो उसके पिता उसे समझाते है,लेकिन जब एक बूढ़ा पिता जब गलती करता है तो हम उसे डाटते है....जरा विचार करें ...
जब एक बच्चा चलते चलते गिरता है तो हम उसे हाथ पकड़ कर चलना  सिखाते है लेकिन जब एक बूढ़ा पिता चलते हुए गिर जाये तो हम गुस्सा दिखाते है ...हम बूढ़े माँ-बाप को पैसा देकर छोड़ देते है अकेला जीने के लिए जहाँ उसे सहारे की जरुरत होती है ,लेकिन जरा विचार करें अगर माता पिता एक २ साल के छोटे बच्चे को छोड़ दे तो क्या वो जी पायेगा ......फिर भी न जाने क्यों लोग कहते है की हमने उनके अहसान चुका दिए.....!
वेद में कहां गया है की माता पिता की सेवा करना हमारा धर्मं है ...लेकिन वो सेवा कैसी हो ये समझने की जरुरत है ...इंसान को ये नहीं भूलना चाहिए की जिस समय से माता पिता गुज़र रहे है वो समय निश्चित रूप से हमारा भी आएगा...|क्या हमारा कर्त्तव्य नहीं की हम अपने माता-पिता को खुशिया दे जिन्होंने हमारे लिए अपनी खुशिया कुर्बान कर दी????
मुझे एक घटना याद आती है,एक समय एक राज्य में राजा  राज करता था...उसने अपनी माँ से कहा की तूने जो किया है मै वो तुझे  दे चुका हू अब तू मुझ पर अपना हक मत जमाया कर...|एक दिन रात्रि में जब राजा सो रहा था तब माँ ने उसके बिस्तर में लोटे से पानी डाल दिया,राजा की नींद खुली और वो अपशब्द का प्रयोग करते हुए बोला -अरे बुढ़िया ! ये क्या किया मेरा बिस्तर गीला कर दिया ,तू क्या चाहती है ???माँ ने उत्तर दिया-"बेटा,जब तू छोटा था इसी तरह रात को नींद में बिस्तर गीला कर देता था और रोने लगता था  ,तब मै तुझे सूखे में सुलाती थी और खुद गीले में सोती थी,क्या वो समय भूल गया..."
मित्रो यह सुन कर राजा की आंखे खुली रह गयी और उसे अपनी गलती का अहसास हो गया,पैरो में माँ के गिर कर रोने लगा.........

मित्रो माता पिता का आशीर्वाद न हो तो हम जीवन में कभी भी सफल नहीं हो सकते...,यदि माता पिता के प्रति अपना दायित्व पूरा नहीं करते तो कभी सुखी नहीं रह सकते...उन्होंने जो हमारे लिए किया वह अहसान कभी नहीं चुका सकते ,प्रयास जरुर कर सकते है इसलिए हमेशा अपने माता-पिता की सेवा करते हुए जीवन में आगे बढे,उनकी सेवा करें ,विजयी बने...और इससे न केवल आपको आशीर्वाद प्राप्त होगा अपितु आपको आत्मविश्वास भी मिलेगा,नयी ऊर्जा मिलेगी......

पं ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 ) .

Monday 14 November 2011

आप क्यों डरते है ?किससे डरते है ?आप कमजोर है ??


            इश्वर जो कुछ करता है अच्छा ही करता है |
           मानव तू परिवर्तन से कहे को डरता है ||
          
             जब से दुनिया बनी है तब से रोज बदलती है ,
            जो शै आज यहाँ है ,कल वो आगे चलती है,
            देख के अदला बदली तू आहें क्यों भरता है ,
            मानव तू परिवर्तन से कहे को डरता है ||


           दुःख सुख आते जाते रहते सबके जीवन में
           पत्जध और बहारें दोनों जैसे गुलशन में
           चढ़ता  है तूफ़ान कभी और कभी उतरता है ,
            मानव तू परिवर्तन से कहे को डरता है ||
          
           कितनी लम्बी रात हो लेकिन दिन तो आएगा ,
           जल में कमल खिलेगा फिर वो मुस्कुराएगा ,
          देता है जो कष्ट वही कष्टों को हरता है ,
           मानव तू परिवर्तन से कहे को डरता है ||


        
 इस कविता के माध्यम से कवी कितना सुन्दर सन्देश देता है .....परिवर्तन ,बदलाव इस जीवन का नियम है ,लेकिन हम इतना बदलाव से डरते क्यों है(why we resist change?) ,क्या हम किसी से डरते है ??क्या हमे इश्वर पर भरोसा नहीं है ??क्या हमे अपने पिता पर ही भरोसा नहीं ???क्या हम अपनी काबिलियत पर शक करते है ??? क्या हमे हार जाने का डर है ????जरा चिंतन करे.........
इस जीवन में हमेशा बदलाव होते रहे है और आगे भी होंगे हमे उन्हें स्वीकार करना चाहिए अपना पूर्ण परिश्रम करना चाहिए....क्योंकि  इश्वर जो कुछ भी  करता है अच्छा ही करता है ....
मित्रो ये जीवन है हम सिर्फ कर्म कर सकते लेकिन फल हमेशा इश्वर ही देता है ,,वह ही जनता है की हमारे लिए कब और किस समय क्या अच्छा है ....यदि वह आपकी अपेक्षा अनुरूप नहीं देता इसका अर्थ है उसके पास आपके लिए और भी कुछ अच्छा है,अभी जो आपके लिए सही है वह आपको प्राप्त हुआ...आप सभी जानते है की सोना भी तपने के बाद ही निखरता है ठीक उसी प्रकार जीवन में चुनौती हमे हमेशा मजबूत बनाने के लिए होती है उससे भागे नहीं,डरे नहीं,...अपने पिता पर भरोसा करे, इश्वर हमारा पिता है ....तो क्या कोई पिता अपने पुत्र को कष्ट देता है,उत्तर है नहीं....निश्चित ही अह हमे कुछ सिखाना चाहता है ....उसको सीखे और जीवन में बदलाव से न डरे उसे स्वीकार करे और अपना कर्म करे...यदि आप इसी सोच के साथ आगे बढ़ेंगे तो दुःख ,दुःख नहीं रह जायेगा,वह तो एक सीखने  का समय बन जायेगा(learning period). 
मित्रो इन्ही विचारो के साथ मैं  आज यही रुकता हु,और मैं  विश्वास रखता हू की  आप नयी उर्जा के साथ,नए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ेंगे  ,अपने लक्ष्य  पर ध्यान देंगे,कठनाइयों पर नहीं.......
शुभकामनाओ सहित
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )

Saturday 12 November 2011

सूर्य को पूजना छोड़ कर उसके सन्देश को ग्रहण करो ,पर क्या है सन्देश?


सीखना एक कला है | इंसान अपने जीवनकाल में निरंतर ,प्रतिदिन,हरपाल सीखता है.....सीख कर और उस पर चल ही जीवन को उत्क्रष्ट बनाया जा सकता है | हमे निरंतर ज्ञान अर्जित करके उससे अपने जीवन और सुखमयी बनाना चाहिए लेकिन अपने लक्ष्य को भी नहीं भूलना चाहिए..
इस संसार में हर वास्तु चाहे वो छोटी हो या बड़ी हमे सिखाती है...जैसे सूर्य को देखिये,सूर्य हमेशा समय से उदय होता है और समय से अस्त होता है ,पर सूर्य से हमने क्या सीखा ?क्या हम अपने काम को समय से करते है...हम कहते है 'कल' करेंगे ,क्यों?क्या सूर्य ये कह दे की आज मैं उदय नहीं होऊंगा,तो क्या ये सृष्टि चल सकती है?निश्चित ही उत्तर है 'नहीं"
 दूसरा,अगर आप ध्यान दे तो देखेंगे कि सूर्य नदी से जल लेता है (water lifecycle -evaporation ) ,सरोवर से जल लेता है,नाले से जल लेता है परन्तु जहाँ से भी जल लेता है चाहे वो स्वच्छ जल हो या गन्दा हो लेकिन हमेशा सूर्य स्वच्छ जल ही ग्रहण करता है.....नाला ही देख लीजिये लेकिन जब सूरज वहां से जल लेता है तो गन्दा जल नहीं लेता....अर्थात मित्रो जीवन में कोई कितना ही गिरा हुआ क्यों न हो,कोई कितना ही गन्दा हो लेकिन आप  हमेशा अच्छी बातो को ग्रहण करो,अच्छे विचारो को ग्रहण करो,अच्छे संस्कारो को प्राप्त करो लेकिन बुरे विचारो को कभी प्राप्त मत करो...सूर्य जैसे प्रकाशवान बनो,इसलिए स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने  भी कहा कि "सत्य कि ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सदैव तैयार रहो" |हमें स्वयं अपने लिए पुरुषार्थ करना है दूसरों की कमाई पर नहीं जीना दूसरों के परिश्रम का फल नहीं खाना .....सूर्य को पूजना छोड़ कर उसके सन्देश को ग्रहण करो ,यही सूर्य देवता कि सच्ची पूजा है...पर यदि आप इन बातो ओ ग्रहण नहीं करते तो सूर्य कि पूजा करना व्यर्थ है........|यही वेद का सन्देश है...इस पर चले और निरंतर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने कि ओर बढे.

ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633)

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Tuesday 8 November 2011

इश्वर का ध्यान क्यों?क्यों ओ3म का जप करे?


इस जीवन में सुख भी है और दुःख भी है | सुख का  अर्थ है प्रकाश और दुःख का अर्थ अँधेरा है | परमात्मा प्रकाश वाला है ,अर्थात मित्रो जहाँ आप परमात्मा से पास है वहां सुख है और जहाँ आप परमात्मा से दूर है वहां दुःख है ....जिस प्रकार अँधेरा आने पर हम प्रकाश की कामना करते और दुःख आने पर सुख की कामना करते है ...मेरे मित्रो जब आप हमेशा इश्वर के निकट बने रहेंगे उसका ध्यान करेंगे उसका धन्यवाद करेंगे तो निश्चित रूप से आप उस प्रभु के निकट रहेंगे,प्रकाश के निकट रहेंगे अर्थात आप सुख में रहेंगे.....
इसलिए मित्रो हमेशा उस प्रकाशवान परमपिता परमात्मा का धन्यवाद करते हुए उसका ध्यान करे और उसके समीप रहे तो निश्चित रूप से आपको दुःख नह्ही होगा.....जब आप यह समझेंगे की सब प्रभु का है और प्रभु ही करने वाला है तो फिर चिंता कैसी,दुःख किस बात वही आपको मार्ग दिखायेगा ,सत्य की और ले जायेगा...व्यर्थ में चिंता न करे,अपना कर्त्तव्य कर्म करे,निश्चित ही विजय आपकी होगी.........
यही एक  कारण है जो संत महात्मा हमेशा इश्वर का ध्यान करने को कहते है ,ओ3म का जप करने को कहते है ताकि आप इश्वर के निकट रहे और सुख में रहे.....

ब्रह्मदेव वेदालंकार 
(09350894633)

Friday 4 November 2011

क्यों करे अच्छे लोगो का संग??क्या है अच्छे विचारों का महत्व ??


मिट्टी के ठेले से सुगंध आ रही थी और दूसरे से दुर्गन्ध | जब दोनों आपस में मिले तो बात करने लगे की हम दोनों एक ही मिट्टी के बने है फिर ये  अंतर कैसा? | सुगन्धित ठेले ने कहा की सत्संगति का असर है ,मुझे गुलाब के निचे पड़े रहने का अवसर मिला और तुम गोबर के निचे दबे रहे...| यही है सत्संगति का असर |
आचार्य चाणक्य ने कहा है सत्संग से दुष्ट एवं दुर्जन पुरषों में सज्जनता अवश्य आ जाती है लेकिन दुष्टों के संग से सज्जनों में दुष्टता नहीं आती ....|स्वाति नक्षत्र से गिरने वाली बूँद एक ही होती है लेकिन उसके कई रूप होते है....कमल पर पड़ी तो मोती का आकर लगती है,वही बूँद सीप पर पड़े तो मोती बन जाती है ,लेकिन वही बूँद यदि सांप के मुख में गिरे तो जहर बन जाती है .....
इसलिए अपने अन्दर की बुरइयो को निकल फेंके ..अच्छे लोगो के साथ रहे जिससे आप तक अच्छे विचार पहुचे और आप उनसे अपना जीवन और आनंदमयी बना सके...
यदि आपका घर छोटा है और नया सामान  रखने की जगह नहीं है तो आप क्या करेंगे ??पहले पुराना सामान जो काम का नहीं है उसको निकालेंगे,जगह बनायेंगे और नया सामान  लायेंगे...यही बात आप अपने जीवन में क्यों नहीं अपनाते?जब तक आप अपने अन्दर की बुराइयों ,कमियों को बाहर नहीं निकालेंगे तब तक कोई अच्छाई ,अच्छा गुण ,संस्कार आपके अन्दर कैसे आएगा???विचार करे...



ब्रह्मदेव
(09350894633 )




Wednesday 2 November 2011

"अच्छे गुणों को भी ढक देती है इर्ष्या "

एक महिला को कुब्जा थी ,झुककर चलती थी..सब उसे चिढाते थे और उस पर हस्ते थे जिससे वह बहुत परेशान हो जाया करती थी.|एक दिन उसकी मुलाकात एक स्वामी जी से हुई ,उन्होंने उसे कहा-मेरे पास आओ और जो वरदान मांगना है मांगो...|महिला बोली-भगवन आप तो जानते है लोग मेरा कितना मजाक उड़ाते है,मुझे बुढिया कहते है ,कुबड़ी कहते है..|अगर आप मुझ पर मेहरबान है तो कूबड़ की फिकर मत कीजिये ,आप इन सबको कूबड़ से ग्रस्त कर दीजिये ताकि ये सब भी झुककर चले और मैं इन पर हसू,मजाक उडाऊ ..|
स्वामी जी उस महिला का उत्तर सुन कर हक्के बक्के रह गए ...|उस महिला के उत्तर  से पता चल गया की वह अपने दुःख से दुखी नहीं है बल्कि दूसरो  के सुख से दुखी है..कुछ यही हालत हमारी आपकी है...|   ईर्ष्यालु व्यक्ति की प्रकृति ऐसी ही होती है कि वह दूसरो कि सुखी सम्पन्न देखकर उनके जैसा उन्नत और सुखी होने कि प्रेरणा नहीं लेता बल्कि उनको दुखी करने और नीचा दिखाने का प्रयास करता है .|
इसलिए मित्रो दूसरो कि अच्छी आदतों को देखो उनसे प्रेरणा लो लेकिन कभी भी दूसरो को गिराने का प्रयत्न न करो..जब ऐसा विचार आये तो समझ लेना कि तुम इर्ष्या करने लगे हो और अगर यह स्वाभाव न छोड़ा तो विनाश निश्चित है....
अतः मित्रो प्रगति करो उन्नति करो लेकिन जलो नहीं,इर्ष्या मत करो.....

"श्री कृष्ण जी गीता में  कहते है की जिस प्रकार एक माचिस की सींक पहले अपने आपको जलती है बाद में दुसरे को ठीक उसी प्रकार से क्रोध और इर्ष्या के द्वारा व्यक्ति पहले अपने आप को जलाता है बाद में दूसरे को......|"

ब्रह्मदेव 
(09350894633 )


Tuesday 1 November 2011

जिंदगी से शिकायत नहीं ,धन्यवाद करे ,पर क्यों ????


जिंदगी एक नायब तोहफा है,इसे मुस्कुरा कर जिए .इससे शिकायत करने से पहले इससे जो पाया है उस पर नज़र जरुर डाले .आपकी जिंदगी में कई  रंग है जो औरो की जिंदगी से नदारद है.|हमे जो मिला है हम उसे  सही तरीके से नहीं जीते|कोई कठोर बात बोलने से पहले उनकी सोचिये जो बोल ही नहीं पाते |इसलिए जबान जैसी अनमोल चीज़ का सही इस्तमाल ही समझदारी है |
हमे स्वाद बहुत प्यारा होता है पर उसकी कीमत से हम अनजान है|जबकि न जाने कितने ऐसे है जो पैदा होते है और खाने के लिए संघर्ष करते हुए मर जाते है| इसलिए खाने से पहले मुह बनाने से पहले इस संघर्ष को समझे |
यदि बच्चो से परेशान है उनके बारे में सोचिये जो 'माँ' और 'पापा' शब्द सुनने के लिए हर वक़्त तरसते है.|दूरिय आपको तरसाती है पर  सोचे,जिन्हें लम्बी-लम्बी दूरियां पैदल चल कर पूरी करनी पड़ती है||
काम करते करते थकान से चूर होकर जब आपका मन काम को कोसने का होता है तो उन पर नज़र दौडाए जो बेरोजगार या physically challenged  है,हर वक़्त काम पाने का सपना देखते है.|\

जीवन को समझदारी से जीने का मंत्र है की जब भी आपकी ऊँगली किसी पर उठती है ,तो फट से अपने बारे में सोचे| आप भी कमियों से अछूते नहीं है,कमियों को दूर करने की कोशिश में जुटे ,रोने में समय बर्बाद न करे|आपके जीवन में कमिया आपको परेशान करे तो इस दुनिया की खूबसूरती के बारे में सोचे |अपने अन्दर की कमियों को दूर करे न की दूसरो की कनमिया देखते रहे यही जीवन को जीने का सही तरीका है ......,
always be happy always smile,not only because life is full of reasons to smile but also because your smile itself is a reason for many to smile....

ब्रह्मदेव
(09350894633 )


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