Thursday 24 January 2019

निर्धनता बुरी नही धन का नशा बुरा है

कहा गया है कि धन में लक्ष्मी का वास होता है। धन का महत्व आज के समय में ही नहीं, बल्कि प्राचीन समय से रहा है। धन के बिना न तो कोई यज्ञ होता है न ही कोई अनुष्ठान। जीवन निर्वाह धन के बिना नहीं हो सकता। आपने अक्सर ही लोगों से सुना होगा कि पैसे में बहुत ताकत है और यह कि पैसा है तो सब कुछ है! इन कथनों में कुछ हद तक सच्चाई भी है। यह सही है कि धन के बिना हमारा काम नहीं चल सकता, पर ऐसा कतई नहीं है कि धन ही सब कुछ है। थोड़ा-बहुत धन हमें चाहिए, पर जितना चाहिए उसी के पीछे यह सब अनर्थ नहीं हो रहा। अनर्थ वे लोग ही करते हैं जिनके पास ‘चाहिए’ से अधिक धन है। यहां सवाल यह उठता है कि चाहिए से अधिक धन का लोग क्या करते हैं?

आज धन बल पर धर्म का व्यवसायीकरण हो रहा है। संतगण धन-संचय और वैभवशाली जीवन-शैली के नए प्रतिमान गढ़ रहे हैं। ऐसे में निराकार ईश्वर के आराधक संत कबीरदास याद आते हैं। कबीर ने बड़े सहज भाव से परमेश्वर से यह मांग रखी- ‘साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥’ यानी वह जनसाधारण को परिश्रम से उतने ही धन उपार्जन के लिए कह रहे हैं, जितने से उसके दैनिक कार्यों की पूर्ति हो जाए। आवश्यकता से अधिक धन की इच्छा ही तृष्णा का रूप धारण कर लेती है और अंततोगत्वा यह तृष्णा ही व्यक्ति के नैतिक पतन का कारण बनती है।

हमारी संस्कृति में धन के अभाव को बहुत बड़ा अभिशाप माना जाता है। जहां यह सत्य है कि दूसरों की भलाई के कार्यों के लिए धन की आवश्यकता होती है, वहां यह भी सत्य है कि धन की बुराइयों को अपनी ओर खींचने की क्षमता अकथनीय है। इस दुविधा को दूर करने के लिए हमारी संस्कृति ने एक मार्ग सुझाया है और वह है त्याग। अपने शरीर को स्वस्थ रखने व दूसरों की भलाई के लिए धन की सहायता से उचित साधन जुटाए जाएं, लेकिन उनका उपभोग त्याग की भावना से किया जाए।

यह सच है कि धन मूल्यवान है। उसकी सभी को जरूरत है, पर उसको सब कुछ मान लेना स्वस्थ मन-मस्तिष्क का परिचायक नहीं कहा जा सकता। इसी मान्यता के प्रभाव का परिणाम है कि आज जीवन के लिए धन नहीं रह गया है, धन के लिए जीवन हो गया है। हर आदमी भाईचारा, सुख-शांति व ईमान खोकर जिस किसी भी तरह से धन कमाने के पीछे पड़ा है। इससे दुनिया में धन नहीं बढ़ा है बल्कि धन का नशा बढ़ा है, धन के लिए पागलपन बढ़ा है। इससे दुख बढ़ा है, अशांति बढ़ी है, घमंड बढ़ा है और शैतानियत बढ़ी है।

वेद कहता है- पैसा कमाओ परंतु बहुत नहीं, जितनी जरूरत है उतना कमाओ। कुछ दान भी दो कुछ खाओ-पियो और ईश्वर का ध्यान, भगवान का भजन करो। धन कमाने के लिए एक दिन में अधिकतम 8 घंटे का समय खर्च करना चाहिए, थोड़ा-थोड़ा करके धीरे-धीरे पैसा कमाओ, धीरे-धीरे जमा करो जिससे अपना जीवन ठीक से चलता रहे। अत्यधिक धन की चाह को अपने दिल में कभी जड़ मत पकड़ने दो। याद रखिए कि आपके दोस्त, परिवार के सदस्य और आपकी सेहत पैसे से कहीं ज्यादा अनमोल हैं।
निर्धनता बुरी है पर धन का नशा उससे भी बुरा है।

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