Friday 4 December 2015

जो बोओगे वही पाओगे सुख दुःख है शुभकर्मो का


किसी गांव में एक किसान रहता था। उसके पास भी लगभग उतनी ही जमीन थी जितनी गांव के दूसरे किसानों के पास, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति सबसे अच्छी थी। वह हमेशा अच्छे से अच्छे बीज अपने खेतों में बोता था। उसके खेतों में उगने वाली फसलें सबसे अच्छी होती थीं। बीज तो बाकी किसान भी अच्छे ही बोते थे, लेकिन उनकी फसलें उतनी अच्छी नहीं होती थीं। यह किसान बहुत समझदार व उदार हृदय था। वह जैसा उत्तम बीज अपने खेतों में बोता था वैसा ही उत्तम बीज अपने आसपास के किसानों को भी खरीदवा देता था। और जो किसान उत्तम व महंगे बीज नहीं खरीद पाते थे, ये बीज वह उन्हें खुद ही खरीदकर दे देता था। इसीलिए पड़ोसी किसान उसकी तारीफ करते न थकते थे।

एक बार एक व्यक्ति ने उससे पूछा कि भाई तुम अच्छे वाले इतने महंगे बीज मुफ्त में क्यों बांट देते हो? इस पर किसान ने जवाब दिया-'इससे तो मुझे ही फायदा होता है। 'पर कैसे?' उस व्यक्ति ने आश्चर्य से पूछा। किसान ने बताया- 'जब फसलों में बौर आता है तो उसके परागकण उड़कर इधर-उधर चले जाते हैं। हमारे आसपास के खेतों का हमारे खेतों की फसलों पर गहरा असर पड़ता है। हमारे आसपास जैसी फसलें होंगी कुछ समय के बाद हमारी फसलें भी वैसी ही हो जाएंगी।

मेरे आसपास के खेतों में अच्छे बीजों से उत्पन्न पौधों के परागकण जब मेरे खेतों में उगे पौधों पर आते हैं तो वे अच्छे होने के कारण मेरी फसल को खराब नहीं करते। यदि पड़ोसियों के खेतों में घटिया बीजों से उत्पन्न पौधे होंगे तो उनसे आने वाले परागकण मेरे अच्छे बीजों से उत्पन्न पौधों को भी खराब कर डालेंगे और मेरी फसल का मूल्य कम हो जाएगा। इसीलिए मैं अपने पड़ोसियों को अच्छी किस्म के बीज बोने में उनकी हर संभव मदद करता हूं।

इसी प्रकार हमारे परिवेश का भी हमारे घर-परिवार और स्वयं हमारे ऊपर सीधा असर पड़ता है। इसलिए हमारे लिए आवश्यक है कि हम एक अच्छे समाज के निर्माण के प्रति लापरवाही न बरतें। यदि हमारे आसपास कुछ कमियां हैं तो उन्हें फौरन दूर करने की दिशा में सक्रिय हो जाएं। यदि हम अपने घर को तो साफ-स्वच्छ रखते हैं, लेकिन हमारे पास-पड़ौस में गंदगी व कूड़ा पड़ा है अथवा पानी रुका हुआ है, तो उसमें से उठने वाली दुर्गंध व बीमारियां फैलाने वाले मच्छर-मक्खियों को हम तक पहुंचते देर नहीं लगेगी।

जितनी घर की स्वच्छता जरूरी है, उतनी ही स्वच्छता अपने आसपास व संपूर्ण परिवेश की भी है। भौतिक परिवेश के साथ-साथ सांस्कृतिक परिवेश भी महत्वपूर्ण है। हमें अपने पूरे समाज व राष्ट्र को शिक्षित व समझदार बनाने के प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि जैसा हमारा समाज व राष्ट्र होगा वैसे ही हम स्वयं भी हो जाएंगे।

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