मित्रो,आज जीवन में कौन सफल नहीं होना चाहता ,,हर व्यक्ति दुसरे से आगे बढ़ना चाहता है ,ऊंचा उठाना चाहता है ,सफल होना चाहता है ....इसमें कोई खराबी नहीं है ,प्रतिस्पर्धा की भावना से अपने अन्दर सुधार आता है लेकिन सही तरीके से.| कोई भी व्यक्ति सिर्फ चाहने से,बोल देने से सफल नहीं हो जाता उसके लिए उसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है ....वेद में कहा गया है की सफलता प्राप्त करने के लिए त्रिविध शक्ति (शारीरिक,बौद्धिक,आत्मिक) की आवश्यकता है ....आइये इसपर विचार करे ..
कभी कभी इनमे से कोई एक या फिर दो होने पर भी सफलता मिल जाती है ...
शारीरिक बल :शारीरक बल से भी बहुत सारे कार्य सिध्द होते है ,जैसे यदि महाभारत का उद्धरण ले तो ध्यान दीजिये की चक्रव्यू की रचना कौरवो ने करी और उसका रक्षक ड्रोन जैसे महारथी को बनाया लेकिन अभिमन्यु अपनी वीरता और शारीरिक,बौद्धिक बल के द्वारा उसमे प्रवेश करने में सफल रहा ...इसलिए अपने शारीर को स्वस्थ रखना चाहिए
अब बात करते है बौद्धिक बल की ,बहुत से युद्ध हथियारों से नहीं बुध्धि से लड़े जाते है ये आप सभी जानते है ,यदि हम अपनी बुधि का सही प्रयोग न करे तो उसे कह दिया
जाता है strategy failure .| उद्धरण आप महाभारत के यक्ष-युधिष्ठिर संवाद का ले सकते है जहाँ युधिष्ठिर ने अपने बौद्धिक बल से अपने सारे भाइयो को बचाया था |
अब बात आती है आत्मिक बल की ,,,,इसे समझना बहुत जरुरी है.| हमे कहा बोलना है ,कब बोलना है ,कैसे बोलना है ये भी समझने की जरुरत है .जीवन में संयम का भी बहुत महत्व है ,यदि व्यक्ति अचानक बिना सोचे समझे कार्य कर दे तो वह मार खा सकता है इसलिए आपको आत्मिक रूप से मजबूत होना होगा .इसका उद्धरण आप श्री कृष्ण को ले सकते है जिन्हें योगिराज भी कहा जाता है
चाहे कितनी सफलता ही क्यों न मिल जाये हमेशा सज्जन रहे ,अपने व्यव्हार में शालीनता रहे,वाणी में मधुरता है रहे क्रोध में अनावश्यक निर्णय न करना यही है आपका आत्मिक रूप से मजबूत होना |
मित्रो जरा विचार करें और अपने लक्ष्य को सोचे ,और देखे ,विश्लेषण करे की क्या आप अपने लक्ष्य की और बढ़ रहे हो??क्या आप जिस रस्ते पर चल रहे हो वह आपकी मंजिल तक पहुचता है ???क्या आपके पास वो त्रिविध शक्ति है जिससे आप अपनी मंजिल को हासिल करोगे??? सिर्फ ऊंचे सपने देखने से सपना सच नहीं हो जाता ,उस पर कठोर परिश्रम करें ,सोचे और विचार करें....
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633)
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आप क्यों डरते है ?किससे डरते है ?आप कमजोर है ??
कभी कभी इनमे से कोई एक या फिर दो होने पर भी सफलता मिल जाती है ...
शारीरिक बल :शारीरक बल से भी बहुत सारे कार्य सिध्द होते है ,जैसे यदि महाभारत का उद्धरण ले तो ध्यान दीजिये की चक्रव्यू की रचना कौरवो ने करी और उसका रक्षक ड्रोन जैसे महारथी को बनाया लेकिन अभिमन्यु अपनी वीरता और शारीरिक,बौद्धिक बल के द्वारा उसमे प्रवेश करने में सफल रहा ...इसलिए अपने शारीर को स्वस्थ रखना चाहिए
अब बात करते है बौद्धिक बल की ,बहुत से युद्ध हथियारों से नहीं बुध्धि से लड़े जाते है ये आप सभी जानते है ,यदि हम अपनी बुधि का सही प्रयोग न करे तो उसे कह दिया
जाता है strategy failure .| उद्धरण आप महाभारत के यक्ष-युधिष्ठिर संवाद का ले सकते है जहाँ युधिष्ठिर ने अपने बौद्धिक बल से अपने सारे भाइयो को बचाया था |
अब बात आती है आत्मिक बल की ,,,,इसे समझना बहुत जरुरी है.| हमे कहा बोलना है ,कब बोलना है ,कैसे बोलना है ये भी समझने की जरुरत है .जीवन में संयम का भी बहुत महत्व है ,यदि व्यक्ति अचानक बिना सोचे समझे कार्य कर दे तो वह मार खा सकता है इसलिए आपको आत्मिक रूप से मजबूत होना होगा .इसका उद्धरण आप श्री कृष्ण को ले सकते है जिन्हें योगिराज भी कहा जाता है
चाहे कितनी सफलता ही क्यों न मिल जाये हमेशा सज्जन रहे ,अपने व्यव्हार में शालीनता रहे,वाणी में मधुरता है रहे क्रोध में अनावश्यक निर्णय न करना यही है आपका आत्मिक रूप से मजबूत होना |
मित्रो जरा विचार करें और अपने लक्ष्य को सोचे ,और देखे ,विश्लेषण करे की क्या आप अपने लक्ष्य की और बढ़ रहे हो??क्या आप जिस रस्ते पर चल रहे हो वह आपकी मंजिल तक पहुचता है ???क्या आपके पास वो त्रिविध शक्ति है जिससे आप अपनी मंजिल को हासिल करोगे??? सिर्फ ऊंचे सपने देखने से सपना सच नहीं हो जाता ,उस पर कठोर परिश्रम करें ,सोचे और विचार करें....
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633)
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आप क्यों डरते है ?किससे डरते है ?आप कमजोर है ??
सूर्य को पूजने का अर्थ है सूर्य जैसे गुण अपने में धारण करना
ReplyDeleteजिस प्रकार सूर्य हर जीव को प्रकाश देता है किसी से छुपाता नहीं है.
इसी प्रकार तुम भी किसी के साथ भेदभाव न करो सूर्य की भांती सभी
को प्रकाशित करों अर्थात ज्ञान रूपी प्रकाश सभी जगह फैलाओ, चाहे
वह आपका मित्र हो या शत्रु ..
10 मनुष्य को पतन के के मार्ग पर अग्रसर करने वाले उसके शत्रु नहीं
ReplyDeleteबल्कि अपनी त्रष्णा होती है. मनुष्य या तो भोग के त्याग को सरस्व
मान कर सर्वथा विरक्त हो जाता है , या पूर्णतया भोगों में डूब कर
घोर विलासी हो जाता है . ये दोनों सिथति अज्ञान के कर्ण होती हैं .
सच्चाई तो यह है की मनुष्य को न तो संसार को छोड़ना चाहिए,
न ही परमात्मा को . क्योंकि संसार भी उसी परमात्मा का बनाया
हुआ है .धन संपत्ति बुरे नहीं हैं, लेकिन इन्हें दूसरों की सेवा में लगाएं
तो यह वरदान हैं ,स्वयंम के भोग विलास में तो तो यह माया बंधन बनती है.
शरीर को उग्र तप करके कस्टदेकर, या भोगों से अति पुष्ट बनाना ,दोनों
ही ठीक नहीं है . परमात्मा को पाने का सही मार्ग है, शरीर से सेवा
और आत्मा से ध्यान . सार यह है की जीवन का संतुलन परम सत्य प्रती
आस्थावान रह कर के अपने कर्तव्य को करने में निहित (भलाई) है ....
जिस कुल, समाज, गाँव ,प्रदेश
ReplyDeleteऔर देश में मात्र (माता ) शक्ती का सम्मान होता है,
वही कुल ,समाज, गाँव, प्रदेश, और देश में खुशहाली ,सम्पन्नता तथा लक्छमी का निवास होता है.