एक महिला को कुब्जा थी ,झुककर चलती थी..सब उसे चिढाते थे और उस पर हस्ते थे जिससे वह बहुत परेशान हो जाया करती थी.|एक दिन उसकी मुलाकात एक स्वामी जी से हुई ,उन्होंने उसे कहा-मेरे पास आओ और जो वरदान मांगना है मांगो...|महिला बोली-भगवन आप तो जानते है लोग मेरा कितना मजाक उड़ाते है,मुझे बुढिया कहते है ,कुबड़ी कहते है..|अगर आप मुझ पर मेहरबान है तो कूबड़ की फिकर मत कीजिये ,आप इन सबको कूबड़ से ग्रस्त कर दीजिये ताकि ये सब भी झुककर चले और मैं इन पर हसू,मजाक उडाऊ ..|
स्वामी जी उस महिला का उत्तर सुन कर हक्के बक्के रह गए ...|उस महिला के उत्तर से पता चल गया की वह अपने दुःख से दुखी नहीं है बल्कि दूसरो के सुख से दुखी है..कुछ यही हालत हमारी आपकी है...| ईर्ष्यालु व्यक्ति की प्रकृति ऐसी ही होती है कि वह दूसरो कि सुखी सम्पन्न देखकर उनके जैसा उन्नत और सुखी होने कि प्रेरणा नहीं लेता बल्कि उनको दुखी करने और नीचा दिखाने का प्रयास करता है .| इसलिए मित्रो दूसरो कि अच्छी आदतों को देखो उनसे प्रेरणा लो लेकिन कभी भी दूसरो को गिराने का प्रयत्न न करो..जब ऐसा विचार आये तो समझ लेना कि तुम इर्ष्या करने लगे हो और अगर यह स्वाभाव न छोड़ा तो विनाश निश्चित है....
अतः मित्रो प्रगति करो उन्नति करो लेकिन जलो नहीं,इर्ष्या मत करो.....
"श्री कृष्ण जी गीता में कहते है की जिस प्रकार एक माचिस की सींक पहले अपने आपको जलती है बाद में दुसरे को ठीक उसी प्रकार से क्रोध और इर्ष्या के द्वारा व्यक्ति पहले अपने आप को जलाता है बाद में दूसरे को......|"
ब्रह्मदेव
(09350894633 )
Bahut Badhiya...
ReplyDeleteDhanyavad...