जो व्यक्ति महान बनना चाहता है उनके लिए सामवेद की एक ऋचा बहुत ही सुन्दर संकेत देती है की हे मनुष्य !तू अपने जीवन को यज्ञ की और ले चल| लेकिन यज्ञ का क्या तात्पर्य है ,यज्ञ का अर्थ बहुत ही गहन,विशाल व रहस्यों से परिपूर्ण है की जैसे यज्ञ जो है ,कभी अकेले यज्ञ नहीं कर सकता ,अर्थात यदि समिधा(लकड़ी) चाहे की अकेले यज्ञ कर ले तो ये मुमकिन नहीं है .घरात चाहे की वो अपनी महत्ता को साबित कर दे तो यज्ञ सम्पन्न नहीं हो सकता क्युकी जब तक सभी वस्तुए मिलते नहीं ,संयुक्त नहीं होते तब तक यज्ञ संभव नहीं है ,ठीक उसी प्रकार से मित्रो जब तक हम अपनी इन्द्रिय,मनन,वचन,कर्म से संयुक्त नहीं हो जाते,मिलकर कार्य नहीं करते तो सफलता प्राप्त करना बहुत मुश्किल हो जायेगा |इसलिए यदि हम जीवन में उचाई को प्राप्त करना चाहते है तो हमे ह्रदय व आत्मा को परमपिता परमात्मा से संयुक्त करना पड़ेगा ताकि महाशक्ति बन कर हम अपने लक्ष्य को भेद सके |
क्युकी जैसे यज्ञ में दिव्या पदाथ जलकर भी भस्म नहीं होते अपितु सुक्ष्म रूप से आसपास के वातावरण को सुगन्धित व पुष्ट बना देते है ठीक उसी प्रकार से जो भक्त परमात्मा रुपी अग्नि को अपने ह्रदय में प्रज्वलित कर गया और अपने अन्दर के अहंकार को खत्म कर देता है वह सर्वविद सफलता और विजय को प्राप्त करता है |
तो आइये खुशहाल जीवन के लिए,जिन्दगी की जिन्दादिली के लिए अपनी जिन्दगी की इस बगिया में यज्ञ रुपी फल की पवित्र वर्षा के द्वारा फूले फले ||
पं ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )
इसे भी पढ़े "::: जिंदगी से शिकायत नहीं ,धन्यवाद करे ,पर क्यों ????
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