स्वामी श्रद्धानन्द जी के बचपन का नाम मुंशीराम था |इसने पिता श्री नानक चाँद जी east india company में इंस्पेक्टर थे ,इसी वजह से उनका जगह जगह तबादला होता रहता था और मुंशीराम की पढाई में व्यवधान आता था...|कालांतर में कुछ दुर्व्यसनी मित्रो की सांगत के कारन ही मुंशीराम के अन्दर बहुत सी बुरी आदतों ने प्रवेश कर लिया.|
बनारस के अन्दर के कहावत प्रचलित थी की जो अपने बच्चो को बहार भेजेंगे वह एक नास्तिक जादूगर के जादू में रंग जायेगा |उनकी माँ उन्हें बाहर नहीं निकलने देती थी...लेकिन भविष्य में इसी जादूगर (स्वामी दयानंद सरस्वती) से उनकी मुलाकात बरेली में हुई |स्वामी दयानंद के प्रवचनों से प्रभावित होकर इन्होने अपना जीवन बदल डाला और जीवन के चौराहे से निकल कर लक्ष्य का निश्चय करना सिखा...|महारिशी दयानंद के उपदेशो एवं जीवन की कुछ घटनाओ के कारन ही मुंशीराम को इश्वर पर भरोसा हुआ |इसके उपरांत वे लाहौर के आर्य समाज में जाकर सत्यार्थ प्रकाश लिया और उसको पढ़ कर अपने जीवन को नयी दिशा देते हुए ,सभी दुर्व्यसनो का त्याग करके वे महात्मा मुंशीराम बने..|
सर्वप्रथम आधुनिक भारत में 'कृष्ण-सुदामा' की गुरुकुल शिक्षा पद्धति को जीवित किया|अपनी समाती बेच कर स्वामी जी ने गुरुकिल की स्थापना करी |इसी तरह उन्होंने भारतीय राजनीती में नए काल का खंड किया और स्वतंत्रता आन्दोलन में देश को नयी दिशा दी |उन्हें न केवल वैदिक धर्मं का अपितु सभी धर्मो का समर्थन मिला और इसकी मिसाल है की उन्होंने जामा मस्जिद से मंत्रो का गान किया,जलिंवाला बाघ में कांगेस की अध्यक्षता की ,चांदनी चौक में गोरो की संगीनों के सामने अंग्रेजो को ललकारा|वो स्वामी श्रद्धानन्द ही थे जिन्होंने एक अनपढ़ भारत को पढ़ाने का सपना देखा|वह स्वामी श्रद्धानन्द नहीं तो कौन था जिसने शुद्धिकरण की प्रथा प्रारंभ की जिससे जो हिन्दू इसाई बन गए है,भटक गए है ,उन्हें पुनः हिन्दू धर्मं में लिया जाये |वो स्वामी श्रद्धानन्द थे जिन्होंने गुरुकुल कांगरी की स्थापना करके वेद की शिक्षाओ को प्रसारित किया |
आज जरुरत इस बात की है की हम स्वामी श्रद्धानन्द के विचारो को समझ कर उस पर चले ,और किसी व्यक्ति से घृणा न करे ,उसके अवगुणों को न देखे अपितु अपने सद्गुणों से उसके दुर्व्यसन दूर करने का प्रयास करें | आज आर्य समाज में कुछ लोग शराबी ,दुर्वस्नी लोगो को प्रवेश नहीं करने देते वो ऐसा करते है जैसे की कहीं दुर्गंधी है और वो खिड़की इसलिए बंद करते है कहीं वह दुर्गन्ध उनके कमरे में न घुस आये |वे लोग भूल जाते है की इस दुर्गंध्य्क्त वातावरण को बदलने के लिए हमे सुगन्धित वातावरण तैयार करना होगा....|यदि स्वामी जी दयानंद जी से न मिलते तो आज हमे श्रद्धानन्द जी जैसे वो हीरा न मिलता जिसने हमारे भारत को एक ज्ञानवान,सुशिक्षित समाज में बदलने का सफल प्रयास किया .|हर इंसान के अन्दरकहीं न कहीं बुराई छुपी है,दुर्व्यसन है जो मुंशीराम का सूचक है |
आइये उठे,जागे,और अपने अन्दर के मुंशीराम को पहचान कर महात्मा मुंशीराम बने ,स्वामी जी के सपने को सच कर जायें और स्वामी श्रद्धानन्द कल्याण मार्ग के पथिक कहलाये...
पं ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )
Purohit,
Arya Samaj Mandir
Vivek Vihar ,Delhi
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