Tuesday, 17 January 2012

समर्पण


हमारा पलक प्रभु अदभुद विलक्षण सामर्थ्य से भरपूर है |वह सूर्य जैसे देवो को भी प्रकाश देता है |तो सोचने वाली बात यह है की जो सूर्यचन्द्र तारों को अपनी शक्ति से प्रकाश देता है तो यदि उस प्रभु को हम  अपने ह्रदय में प्रकाशित कर ले तो हम स्वयं प्रकाशित हो जायेंगे|जैसा की हम जानते है की दुःख व कष्ट उसका नाम है जो हमसे दूर है ,हमारे विपरीत है लेकिन यदि हम उसकी कृपा को अपने आँचल में समेट लेंगे तो सारे दुःख व कष्ट अपने आप दूर हो जायेंगे |
एक कहानी याद आती है जिसमे एक गुरु के पास दो शिष्य पढने जाते है तो गुरु पूछता है की एक जगह अँधेरा है ,उसको दूर करने का क्या उपाय है ??एक शिष्य कहता है की तलवार लो और उस अँधेरे को काट दो ,और दूसरा शिष्य कहता है की गुरूजी एक दीपक जला दीजिये अँधेरा अपने आप दूर हो जायेगा |ठीक उसी प्रकार से मित्रो प्रभु कृपा रुपी दीपक जब जीवन में प्रज्वलित होगा तो निश्चित रूप से दुःख,कष्ट ,दरिद्रता रुपी अँधेरा अपने आप दूर हो जायेगा ....
आगे हमारे वेदों में वर्णन आता है की जैसे लोहे को अपने खांचे में ढालने के लिए अग्नि में तपाया जाता है तो लोहा भी अग्नि के जैसे हो जाता है ठीक उसी प्रकार से जब हम तपस्या रुपी जीवन  ज्योति  को जागृत कर लेंगे ,जीवन संघर्ष को तप से तपाये रखेंगे  तो निश्चित रूप से हमारी  सफलता  स्वर्णिम  होगी  |इसलिए कहा गया है की सत्य का ग्रहण करें ,विद्या को प्राप्त करें,अच्छाई के रस्ते पर चलते हुए अपने लक्ष्य की और बढे....अपना ध्यान हमेशा लक्ष्य पर लगायें जो समस्या आयें उन पर ध्यान केन्द्रित न करें क्योकि वो उस अन्धकार की तरह है जो की प्रकाश होने पर स्वयं नष्ट हो जाता है... इसलिए आप सन्मार्ग पर चलते हुए अपने जीवन को उत्कृष्ट बनाएं ... 

ब्रह्मदेव वेदालंकार
(09350894633 )

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