Saturday, 25 June 2011

शालीनता ,विनम्रता और मुस्कान

शालीनता ,विनम्रता और मुस्कान बिना मूल्य के मिलते है लेकिन इनसे सब कुछ ख़रीदा जा सकता है...इसलिए हमारे ऋषि मुनियों ने संस्कारो पर बल दिया और कहा की सत्य और अच्छाई के रास्ते चलते हुए गुणों कोधारण करते जाये और अवगुणों को छोड़ते जाये....
Pt. Brahm Dev Vedalankar
(09350894633)

Monday, 20 June 2011

कर्मफल

हमे कृतज्ञ बनना चाहिए न की कृतघ्न .इश्वर की व्यवस्था भी अदभुद  है ,मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्र है और और फल भोगने के लिए परतंत्र.अर्थात हम जो कर्म करना चाहते है वह हम करते तो है लेकिन उसका  फल भी हमे अवश्य लेना पड़ता है....यह कुछ उसी तरह है जैसे एक किसान खेत में जो बोता है समय आने पर उसे वही मिलता है ,यही जीवन है.....इसलिए सत्कर्म करे,अच्छे कर्म करे और सुखी रहते हुए विजय को प्राप्त करे...

pt. Brahm Dev Vedalankar
(09350894633)

Monday, 13 June 2011

क्यों छोड़े बुरी आदतों और विचारो को???

मै जैसा हू सो तैसा हु,अच्छा हू .....ये बोल कर क्या आप अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग रहे??
क्या यह आपका कर्त्तव्य नहीं है की आप अपने अन्दर की कमियों को पहचाने और उनको दूर करे???और जब कोई दूसरा आपको आपकी कमी बताता है तो आपको गुस्सा आता है...!!.क्या आप सही मार्ग पर चल रहे है....???
 यदि आपका घर छोटा है और नया सामान  रखने की जगह नहीं है तो आप क्या करेंगे ??पहले पुराना सामान जो काम का नहीं है उसको निकालेंगे,जगह बनायेंगे और नया सामान  लायेंगे...यही बात आप अपने जीवन में क्यों नहीं अपनाते?जब तक आप अपने अन्दर की बुराइयों ,कमियों को बाहर नहीं निकालेंगे तब तक कोई अच्छाई ,अच्छा गुण ,संस्कार आपके अन्दर कैसे आएगा???विचार करे...
अपने अन्दर की बुराइयों  को समाप्त करना  और अच्छाई ,गुण,कर्म,संस्कार को धारण करना हम मनुष्यों का कर्त्तव्य है नहीं तो आप ये बताये की आपमें और एक पशु में क्या अंतर रह गया???
इसलिए वेद में मंत्र आता है "ओउम विश्वनी देव सवितार्दुरितानी परासुव यद् भद्रं तन्न आसुव ."
अर्थात "हे प्रभु मेरे अन्दर की बुराइयों  को दूर कर,मुझे बल दे की  मै अपनी कमियों को पहचान कर दूर करू और अच्छे गुण.संस्कार को धारण करू..."
इसलिए आप,हम,सभी लोग सत्य को पहचाने,उसको माने और अपने को श्रेष्ठ ,अच्छा,और सच्चे अर्थो में मनुष्य बनाये....आत्मचिंतनबहुत जरुरी है,आत्मचिंतन करे ,मंथन करे और जीवन सुखमयी बनाये...
ब्रह्मदेव 
Pt. Brahm Dev Vedalankar               
(09350894633)


Saturday, 11 June 2011

कैसे मिलेगी सफलता???

कहा गया है की "न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवा: " अर्थात बिना परिश्रम के तो देवो की भी मैत्री नै मिलती..हमारे ऋषि मुनियों ने ,अमर ग्रन्थ वेद ने हमे यही ज्ञान दिया यदि कोई व्यक्ति परिश्रम,म्हणत करता है तो उसे उसका फल जरूर मिलता है...इसलिए कभी हार न माने..सफलता की ओर बढ़ना  है तो मेहनत करे क्योकि  कहा गया है की "श्रमेव जयते" अर्थात परिश्रम की ही जीत होती....
अतः जीवन में विजय प्राप्त करने के लिए आलस्य छोड़कर,परिश्रम का मार्ग अपनाये...
pt. Brahm Dev Vedalankar 
(09350894633)

Thursday, 9 June 2011

सत्य मार्ग ही क्यों??

ओउम
  वेद कहता है की अच्छा सुने और उस पर चलने का प्रयास करे .आजकल लोग साधू संतो के प्रवचन तो सुन लेते है लेकिन ना तो कभी उस पर विचार करते और ना ही उस पर अमल करते...तभी वेद भगवन कहते है की हमेशा सत्य सुने ,अच्छा सुने,सत्संग में रहे और उस सत्य के अनुसार अपना आचरण बनाये क्योकि जीवन अच्छे मार्ग पर चल कर ,अच्छे विचारो को सुनकर,और उस का पालन करने पर ही सुख समृद्धि से पूर्ण हो सकता है... .....

वेद :::चुनौतियों का सामना करे

 जीवन में अगर मुश्किल न हो,कष्ट न हो तो जीवन नीरस हो जायेगा....जिस प्रकार से रोज रोज मीठा खाते खाते कुछ दिन बाद मीठा खाने का मजा नहीं आता ठीक उसीप्रकार से अगर हमारे जीवन में हरपाल सुख रहेगा तो हम सुख का भी आनंद नहीं ले पाएंगे. इसीलिए इश्वर ने यह व्यवस्था बनायीं कि कर्म के अनुसार दंड देना, जिसकी वजह से हम कष्ट भी सहते है और सुख भी भोगते है...
जीवन में कभी दुःख के समय घबराये  नहीं,उस चुनौती का सामना करे...ये जीवन भी रण है और इस रण में हमे विजय प्राप्त करनी है...कही  इश्वर को दोष न दे अपितु अपने अन्दर कि कमियों को दूर करे....
सत्य पथ पर चले और जीवन में सुख समृधि प्राप्त करते हुए आगे बढे...