मन जो है वह कामनाओं रूपी राजपथ पर बड़ी तेजी से दौड़ना चाहता है ।लेकिन आइये हम चिंतन करे कि यदि मन के साथ दौड़ते रहेगे तो क्या मंजिल मिलेगी तो निश्चित रूप से मन की मंजिल मिल सकती है लेकिन आत्मा कही खो जायेगी।और जब हमारा मालिक ही कही खो जाएगा तो हम उस शिखर पर पहुँच कर क्या करेंगे।
वास्तव में हमारे सम्पूर्ण दुखों का मूल मन का अनियंत्रित होना है,जैसे कि यदि हमे कार के द्वारा कही भी जाना है तो
प्रशिक्षित चालक अवश्य होना चाहिए क्योंकि यदि चालक समझदार नही है तो कही ना कही गाड़ी की टक्कर कर देगा जिससे चोटिल होकर कष्ट पाएंगे ठीक ऐसे ही यदि हम कामनाओं (इच्छाओं) के पथ पर मन का नियंत्रण नही करते तो बड़ी दुर्घटना हो सकती है।
पं ब्रह्मदेव वेदालंकार
Aacharya BrahmDev Vedalankar

Monday, 6 August 2018
मन
Thursday, 7 June 2018
आज का विचार
👉👉👉 *असली उम्र* 👈👈👈
एक बार एक आदमी किसी गाँव के पास से गुजर रहा था । उस रास्ते में श्मशान भूमि थी, उसने श्मशान भूमि में पत्थरों के ऊपर मरने वाले की उम्र लिखी हुई देखी 5 वर्ष, 8 वर्ष, 10 वर्ष और 20 वर्ष । उस आदमी ने सोचा कि इस गांव में सभी की मृत्यु अल्प आयु में ही हो जाती है । वह आदमी गांव में गया तो गांव वालों ने उस आदमी की बहुत सेवा सत्कार किया । वह आदमी कुछ दिन उस गांव में ठहरने के बाद वहां से जाने के लिए तैयार हुआ और गांव वालों को बताया कि मैं कल जा रहा हूँ ।
उसकी बात सुनकर गांव वाले बहुत दुखी हुए और कहने लगे हमारे से कोई गलती हुई है तो बताओ लेकिन आप यहाँ से न जाओ, आप इसी गाँव में रुक जाओ । वह आदमी कहने लगा कि इस गांव में, मैं और अधिक नहीं रह सकता, क्योंकि इस गांव में इंसान की अल्प आयु में ही मृत्यु हो जाती है । उसकी बात सुनकर गांव वाले हँसने लगे, और बोले देखो - हमारे बीच में भी कोई 60 वर्ष, 70 वर्ष औऱ 85 वर्ष का भी है । *तो उस आदमी ने पूछा कि श्मशान भूमि के पत्थरों पर लिखी मृतक की आयु का क्या कारण है ?* गांव वाले कहने लगे कि हमारे गांव में रिवाज़ है कि *आदमी सारा दिन काम काज करके, फिर भगवान का भजन कीर्तन, जीव की सेवा करके, रात को भोजन करने के बाद, जब वह सोने जाता है, तब वो अपनी डायरी के अंदर यह बात लिखता है कि आज कितना समय भगवान का सत्संग, भजन - सुमिरन किया ।*
जब उस आदमी की मृत्यु होती है, तब उसकी लिखी हुई डायरी लेकर उसके किये हुए *भजन सिमरन के समय को जोड़ कर हम उसे महीने और साल बनाकर उसे पत्थरों पर लिख देते हैं ।* क्योंकि इंसान की *असली आयु तो वही है जो उसने भगवान के भजन - सुमिरन में बिताई है ।* इंसान का बाकी जीवन तो *दुनियाँ मे ही व्यर्थ चला गया।*
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Tuesday, 24 April 2018
आज का विचार
आज का शब्द है: *सम्मान्य*
*✍एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण: रिश्तें मोतियों की तरह कीमती होतें हैं अगर कोई गिर भी जाये तो झुककर उठा लेना* *चाहिए।।*
एक कथा:
*✔”भैया, परसों नये मकान पे हवन है। छुट्टी (इतवार) का दिन है। आप सभी को आना है, मैं गाड़ी भेज दूँगा।” छोटे* *भाई लक्ष्मण ने बड़े भाई भरत से मोबाईल पर बात करते हुए कहा।*
*”क्या छोटे,किराये के किसी दूसरे मकान में शिफ्ट हो रहे हो?”*
*”नहीं भैया, ये अपना मकान है, किराये का नहीं ।”*
*”अपना मकान”, भरपूर आश्चर्य के साथ भरत के मुँह से निकला।*
*“छोटे तूने बताया भी नहीं कि तूने अपना मकान ले लिया है।”*
*”बस भैया“,कहते हुए लक्ष्मण ने फोन काट दिया।*
*”अपना मकान”,”बस भैया” ये शब्द भरत के दिमाग़ में हथौड़े की तरह बज रहे थे।*
*✔भरत और लक्ष्मण दो सगे भाई और उन दोनों में उम्र का अंतर था करीब पन्द्रह साल। लक्ष्मण जब करीब सात* *साल का था तभी उनके माँ-बाप की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। अब लक्ष्मण के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारी* *भरत पर थी। इस चक्कर में उसने जल्द ही शादी कर ली कि जिससे लक्ष्मण की देख-रेख ठीक से हो जाये।*
*✔प्राईवेट कम्पनी में क्लर्क का काम करते भरत की तनख़्वाह का बड़ा हिस्सा दो कमरे के किराये के मकान और* *लक्ष्मण की पढ़ाई व रहन-सहन में खर्च हो जाता। इस चक्कर में शादी के कई साल बाद तक भी भरत ने बच्चे पैदा* *नहीं किये। जितना बड़ा परिवार उतना ज्यादा खर्चा।*
*✔पढ़ाई पूरी होते ही लक्ष्मण की नौकरी एक अच्छी कम्पनी में लग गयी और फिर जल्द शादी भी हो गयी। बड़े* *भाई के साथ रहने की जगह कम पड़ने के कारण उसने एक दूसरा किराये का मकान ले लिया। वैसे भी अब भरत के* *पास भी दो बच्चे थे, लड़की बड़ी और लड़का छोटा।*
*✔मकान लेने की बात जब भरत ने अपनी बीबी को बताई तो उसकी आँखों में आँसू आ गये। वो बोली,”देवर जी के* *लिये हमने क्या नहीं किया। कभी अपने बच्चों को बढ़िया नहीं पहनाया। कभी घर में महँगी सब्जी या महँगे फल नहीं* *आये। दुःख इस बात का नहीं कि उन्होंने अपना मकान ले लिया, दुःख इस बात का है कि ये बात उन्होंने हम से* *छिपा के रखी।”*
*✔इतवार की सुबह लक्ष्मण द्वारा भेजी गाड़ी, भरत के परिवार को लेकर एक सुन्दर से मकान के आगे खड़ी हो* *गयी। मकान को देखकर भरत के मन में एक हूक सी उठी। मकान बाहर से जितना सुन्दर था अन्दर उससे भी ज्यादा* *सुन्दर। हर तरह की सुख-सुविधा का पूरा इन्तजाम। उस मकान के दो एक जैसे हिस्से देखकर भरत ने मन ही मन* *कहा,”देखो छोटे को अपने दोनों लड़कों की कितनी चिन्ता है। दोनों के लिये अभी से एक जैसे दो हिस्से तैयार कराये* *हैं। पूरा मकान सवा-डेढ़ करोड़ रूपयों से कम नहीं होगा। और एक मैं हूँ, जिसके पास जवान बेटी की शादी के लिये* *लाख-दो लाख रूपयों का इन्तजाम भी नहीं है।”*
*✔मकान देखते समय भरत की आँखों में आँसू थे जिन्हें उन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर आने से रोका। तभी पण्डित* *जी ने आवाज लगाई,”हवन का समय हो रहा है, मकान के स्वामी हवन के लिये अग्नि-कुण्ड के सामने बैठें।” लक्ष्मण* *के दोस्तों ने कहा,”पण्डित जी तुम्हें बुला रहे हैं।” यह सुन लक्ष्मण बोले,”इस मकान का स्वामी मैं अकेला नहीं, मेरे बड़े* *भाई भरत भी हैं। आज मैं जो भी हूँ सिर्फ और सिर्फ इनकी बदौलत। इस मकान के दो हिस्से हैं, एक उनका और एक* *मेरा।” हवन कुण्ड के सामने बैठते समय लक्ष्मण ने भरत के कान में फुसफुसाते हुए कहा, ”भैया,बिटिया की शादी की* *चिन्ता बिल्कुल न करना। उसकी शादी हम दोनों मिलकर करेंगे।”*
एक निचोड़ कथा का:
*पूरे हवन के दौरान भरत अपनी आँखों से बहते पानी को पोंछ रहे थे, जबकि हवन की अग्नि में धुँए का नामोनिशान* *न था। भरत जैसे आज भी मिल जाते हैं इन्सान पर लक्ष्मण जैसे बिरले ही मिलते इस जहान में। आओ दोस्तो आज* *से ही सही पर लक्ष्मण न बन सके पर सोच तो शुरू कर ही सकते है लक्ष्मण जैसी। लक्ष्मण दूसरे के घर में नहीं पर* *अपने घर में भी पैदा करोंगे, ऐसा प्रण तो कर ही लो न दोस्तो।*
Monday, 29 January 2018
Thursday, 25 January 2018
26januray
नमस्ते जी।
आज हमारे श्रेष्ठ आर्यावर्त भारतवर्ष का पावन पवित्र गणतंत्र पर्व है।आज एक प्रकार से राष्ट्रीय अनुशासन पर्व है आइये कुछ चिन्तन मनन करे जिस से हमारे जीवन मे अग्नि मिसाइल जैसी लक्ष्य सिद्धि हो,इसरो के सैटलाइट की तरह दूरदृष्टि हो सर्वत्र विजय का जज्बा पैरा कमांडो की तरह हो।
याद कीजिए सतयुग के चक्रवर्ती राजा हरिश्चन्द्र जी को जिन्होंने जीवन की विपरीत परिस्थितियों में भी अपने धीरज साहस शौर्य को कमजोर नही होने दिया।
स्मरण कीजिए आर्य शिरोमणि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के जीवन को जिन्होंने समस्याओं को चुनौती समझा ना कि अपनी किस्मत को कोसा, और अपनी धीरता वीरता,शूरता ,पराक्रम के द्वारा अपनी चुनौतियों को ही अवसर में परिवर्तित कर के आर्य वंश के गौरव और श्रेष्ठता को स्थापित किया।
मित्रों आज का दिवस श्रीकृष्ण जी की नीति निपुणता, चाणक्य और चन्द्रगुप्त का ज्ञान कर्म का उच्चतम स्तर का शुभ प्रेरणापूर्ण मेल,गौतम, कणाद,ऋषि दयानंद जी
की देश पर मर मिटने और आध्यात्मिक उन्नति के द्वारा
भारतवर्ष के गौरवशाली स्वर्णिम अतीत की ओर अग्रसर होने का संकल्प लेने का समय है।
आज के समाज मे यदि हमे सफल सुखी स्वस्थ तन और मन रखना है तो सबसे पहले धीरज धारण करना पड़ेगा घर परिवार के मामलों कुछ को माफ करना पड़ेगा, कुछ से माफी मांग कर रिश्तों के नये गणतंत्र का शुभारंभ कर पाएंगे।
अपने ईश्वर, गुरुजनों ,माता पिता की सर्वोच्च सत्ता को पुनः स्थापित करना पड़ेगा।
दोस्तों आज का दिन कुछ संकल्प करने का समय है कि हम धर्मवीर बने हकीकत रॉय की तरह,भक्त बने प्रहलाद की तरह,धनवान बने भामाशाह की तरह,वीर बने महाराणा प्रताप की तरह,आयुष्मान बने पितामह भीष्म की तरह तभी तिरंगे की आन बान शान हिमालय की तरह अटूट अक्षुण्ण रहेगी।
जय हिंद
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
पं ब्रह्मदेव वेदालंकार