मन जो है वह कामनाओं रूपी राजपथ पर बड़ी तेजी से दौड़ना चाहता है ।लेकिन आइये हम चिंतन करे कि यदि मन के साथ दौड़ते रहेगे तो क्या मंजिल मिलेगी तो निश्चित रूप से मन की मंजिल मिल सकती है लेकिन आत्मा कही खो जायेगी।और जब हमारा मालिक ही कही खो जाएगा तो हम उस शिखर पर पहुँच कर क्या करेंगे।
वास्तव में हमारे सम्पूर्ण दुखों का मूल मन का अनियंत्रित होना है,जैसे कि यदि हमे कार के द्वारा कही भी जाना है तो
प्रशिक्षित चालक अवश्य होना चाहिए क्योंकि यदि चालक समझदार नही है तो कही ना कही गाड़ी की टक्कर कर देगा जिससे चोटिल होकर कष्ट पाएंगे ठीक ऐसे ही यदि हम कामनाओं (इच्छाओं) के पथ पर मन का नियंत्रण नही करते तो बड़ी दुर्घटना हो सकती है।
पं ब्रह्मदेव वेदालंकार
Aacharya BrahmDev Vedalankar

Monday, 6 August 2018
मन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment