Thursday, 21 July 2011

प्रभु के प्रति समर्पण :सच्ची घटना



एक समय किसी गाँव में एक बहुत ही गरीब परिवार रहता था उस परिवार में एक बालक था वो  पढने   में बहुत होशियार  था  माता  पिता  ने  उसको  ये  कहा  की  तुम्हारी  पढाई  में हम  अपनी  गरीबी  को बाधक  नहीं  बनने देंगे  हम  महनत   मजदूरी  कर के  तुम्हारी  शिक्षा  पूर्ण  करायेगे | एक सुबह   बालक  उठा  तो  माँ  ने  कहा  की  आज  घर में केवल चार रोटी का आटा ही है ,आप के पिता जी के लिए ही है जिसमे से आप के लिए दो रोटी और आप के पिता जी के लिए एक रोटी और मेरे लिए एक रोटी है |
बालक  ने  बड़े ही दुखी मन से  रोटी खाई और स्कूल के लिए चल दिया  स्कूल के रास्ते में एक गाँव और आता था  बालक ने एक घर में आवाज़ दी अंदर से एक महिला निकल कर आई और कहा की बोलो बेटा क्या बात है बालक ने कहा की माँ मुझे बड़े जोर की प्यास  लगी है उस महिला को समझते देर नहीं लगी की बालक भूखा है वह अन्दर गई और जा कर एक बड़ा गिलास दूध से भर कर दे दिया |बालक ने भी दूध प़ी कर उस का धन्यवाद किया और यह कहा की माँ मेरी माँ ने मुझे यह सिखाया है अगर कोई आप पर उपकार करे तो आप  को भी बदले में उपकार करना चाहिए मेरी माँ ने मुझे स्कूल फीस के लिए एक रुपे दिया है वो मै आप को दे देता हूँ  उस महिला ने कहा की बेटा तुम खूब पढो लिखो यही मेरे लिए आप का उपकार है  खैर कहानी एक भाग यही बीत जाता है कुछ वर्षो बाद एक किसी गाँव में एक महिला बहुत बीमार हो गई दर्द से परेशान हो कर के गाँव के डॉक्टर के पास जाती है डॉक्टर  ने   उन का दर्द देख कर उन को सिटी के किसी बड़े हॉस्पिटल में जाने को कहा वो शहर के बड़े हॉस्पिटल में भारती हो गई विशेषज्ञ ने परिक्षण करके  उनका operation कर दिया धीरे धीरे वो स्वस्थ होने लगी लेकिन एक चिंता ने उन को घेर लिया की इस हॉस्पिटल का बिल कैसे भुगतान होगा जब वो स्वस्थ हो गई  तो डॉक्टर ने को घर जाने को कहा तो उस महिला ने अपना बिल मागा तो कैश काउंटर पर  बैठे हुआ आदमी ने यह कहा की आप बिल के लिए  डॉक्टर से मिल लीजिये | वो महिला यह सोच कर और परेशान  हो गई की लगता है की बिल ज्यादा होगा तभी   डॉक्टर से मिलने के लिए कहा है वो बुजुर्ग महिला परेशान होती हुई डॉक्टर के चम्बर में जा कर बोली डॉक्टर साहब जो मेरा बिल है  दे दीजिये .डाक्टर ने कहा की आपका कोई बिल नहीं है आप घर जाईये,तब माता जी ने कहा की बेटा कोई बिल कैसे नहीं है?जो है मुझे बता दो ,मैं दूंगी.. तब उसने कहा की ,"माँ आपने मुझे पहचाना नहीं ,मै वही बालक हू जिसे आपने एक दिन दूध पिलाया था ,जब मै कुछ बन गया तो हमेशा ही आपको ढूद्ता रहा,,आज इस ऋण से उऋण  होने का अवसर आया है |इसलिए माँ मैंने सारा बिल चुकता कर दिया...अगर आपको बिल देने की जिद है तो मै घर आऊंगा तो आप मुझे अपने हाथों से दूध पिला दीजियेगा,वही बिल है " ||

 

मै जब भी इस कहानी को पढता हू, सुनता हू  तो मिझे एहसास होता है की एक बालक ने दूध के ऋण के लिए पूर्ण जीवन उस माँ को ढूढता  रहा और जिस  परमात्मा ने हमे सब कुछ दिया है हम उसी को भूल जाते है??क्या हमे उसका उपकार भूल जाना चाहिए?क्या इश्वर सिर्फ हमे दुःख में ही याद करना चाहिए, में इश करे??नहीं ,उस परमपिता परमात्मा का धन्यवाद् करी हमे उसका आभारी रहना चाहिए,eश्वर का ध्यान करना चाहिए  ताकि हम हमेशा जीवन में उन्नति करते रहे.|

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