तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यम्
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥
यह प्रकति हमे विभिन्न प्रकार से समझाती रहती है...हम बहुत कुछ इस जीवन में प्रकति से सीखते है.
एक वृक्ष पर जब फल लग जाते है तो वह झुक जाता ,और अकड़ता नहीं है लेकिन हम मनुष्य उससे सीखना नहीं चाहते,हमारे अन्दर यदि कोई एक भी सदगुण आता है तो हम और अड़ियल हो जाते है घमंड करते है क्योकि झुकना हमने सिखा ही नहीं...
मित्रो इस जीवन में जो अहंकार करता है वो उन्नति नहीं कर पता,जो झुकता नहीं वो टूट जाता है,...
रावण के अन्दर इतना ज्ञान था लेकिन सज्जनता और विनम्रता न होने के कारन वह अहंकार में ही नष्ट हो गया,..
किसी कवि ने सुन्दर ही लिखा है..
झुकता वही है जो इन्सान है,अकड़ तो मुर्दों की पहचान है...
इसलिए मित्रो अपने अन्दर के ज्ञान को जगाओ और अपने विनम्र और शालीनता के आचरण से विजय प्राप्त करो......
धन्यवाद
ब्रह्मदेव वेदालंकार
(9350894633)
No comments:
Post a Comment