Aacharya BrahmDev Vedalankar

Monday, 24 February 2025
सत्य ज्ञान क्रांति का अप्रतिम योद्धा महर्षि दयानन्द सरस्वती।
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी भारत के समृद्ध इतिहास के नायक
इस संसार के अन्दर सबसे ज्यादा तपस्या साधना कठोर पुरुषार्थ यदि करना होता है तो ज्ञान प्राप्ति के लिए करना होता है। प्राचीन काल में जब कोई शिष्य गुरु के पास उपस्थित होता था तो समित्पानि होकर जाता था उसके बाद भी शिष्य को गुरु कहता था कि एक वर्ष बाद आना एक वर्ष श्रद्धा तप सत्य का अनुष्ठान करो और फिर जो तुम्हारे प्रश्न है अगर मै उनको जानता होऊंगा तो तुम्हे उत्तर दे दूंगा। इतना विश्वास अपने गुरु पर इतनी लगन तभी जिज्ञासु अपनी धीरज से अपनी जिज्ञासा शांत कर पाता है।
संघर्ष में नही टूटना ही जीवन है।
आप विचार कीजिए सूरज जब धरती पर अपनी किरणे बिखेरता है उससे पहले कितनी साधना संघर्ष करता है अपने डगमगाता नही अपने लक्ष्य से अपने कर्तव्य पथ से।
इसी प्रकार जब कोई नदी पृथिवी से निकलकर प्रस्फुटित होती है बहुत संघर्ष करती है।
याद कीजिए पवित्र गंगा नदी को धरती पर लाने के श्रीराम के पूर्वज श्री भागीरथी जी असंख्य वर्षों तक निरन्तर पुरुषार्थ और साधना और कठोर तपस्या निरन्तर करते रहे तभी अविरल निरन्तर बहने वाली मां गंगा को समस्त भारत का पालन पोषण करने वाली बना पाए।
बालक सिद्धार्थ एक रोगी
एक बूढ़े
एक अर्थी को देखकर संसार के मोहपाश से मुक्त हो कर गौतम बुद्ध बन जाते है।
समर्थ गुरु रामदास सावधान सुनकर विवाह मंडप से उठकर ऐसी यात्रा पर चले जाते हैं जो वास्तव में भारत के अन्दर एक स्वराज्य की क्रान्ति की ऐसी अग्नि प्रज्वलित करते है जिसकी ज्वाला में से छत्रपति शिवाजी महाराज का प्रादुर्भाव होता है जो मुगलों को छिन्न भिन्न करके हिंदवी स्वराज्य की स्थापना करते है।
इसी कड़ी में जब देश के अंदर धर्म के नाम पर थोथा कर्मकाण्ड, नैतिकता के नाम पर मिथ्या अंधविश्वासों का प्रचलन था।
चारों ओर समाज अपनी दुर्दशा पर कराह रहा था,
नारियों की दुर्दशा के उनका रुदन और चित्कार बड़े बड़े पाषाण हृदय वाले लोगों को भी विचलित कर रहा था ।
ऐसी ही दुरूह कठिन परिस्थितियों में राष्ट्र नायकों का जन्म होता है।
महान पुरुषों का व्यक्तित्व दिव्य प्रेरक होता है।
वसुंधरा पर महापुरुषों का जन्म इतिहास की विशिष्ट घटना होती है।
इनके उदात्त व्यक्तित्व, उत्कृष्ट विचार तथा प्रभावपूर्ण क्रियाकलापों के कारण ये महान पुरुष न केवल समकालीन अपितु आनेवाले युग युगांतरों तक अपनी चारित्रिक विशेषताओं की छाप छोड़ जाते है। इनका व्यक्तित्व एवं इनकी विचार सम्पदा मानव जाति का पथ निर्देश करते है। भारत की उर्वरा भूमि सदा से ही ऐसी महान दिव्य विभूतियों से सुशोभित रही है।
गुजराती के प्रसिद्ध साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने लिखा है इतिहास की रंगभूमि पर ऐसे व्यक्ति जब जब आते है तब दूसरे तत्व पुरुषार्थ विहीन हो जाते है इतिहास क्रम रुक जाता है। समय शक्तियों का मान भूलकर दर्शकों का मन उसके आसपास लिपट जाता है। भूतकाल की रंगभूमि पर ऐसे अनेक व्यक्ति हुए है परशुराम, योगेश्वर श्रीकृष्ण चाणक्य।
ऐसे ही महान पुरुषों की शृंखला में भारत के धार्मिक सामाजिक सांस्कृतिक पुनर्जागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की गणना ऐसे ही शलाका और प्रशंसनीय महान पुरुषों में होती है ।
गुजरात एक महावृक्ष है। उसकी जड़ में परमात्मा श्रेष्ठ श्रीकृष्ण का कर्मयोग छिपा हुआ है। उसकी डालियों पर महाकवि नर्मद और महात्मा गांधी की कोपले फूटी है।।
गुजरात की इसी धरती ने लोककल्याण के लिए सर्वस्व त्याग करनेवाले संन्यासी दयानन्द सरस्वती जी को जन्म दिया ।
ऋषि दयानन्द जी का बचपन
मूलशंकर जी ऋषि दयानन्द जी के बचपन का यही नाम था
जब छोटे यानि कि किशोर अवस्था में थे उनके जीवन में एक अद्भुत घटना घटी जिसने न केवल उनकी मानसिक दशा में परिवर्तन किया अपितु उनके भावी कार्यक्रम की को भी सुनिश्चित कर सका।
शिवरात्रि पर मूलशंकर जी ने व्रत रखा, रात्रि में शिव जी के ऊपर चूहों को उछल कूद करते देखा तो मुझे शंका हुई कि यह वो शिव तो नही है जिसकी मै कथा सुनता था कि वो सर्वशक्तिमान है, चेतन है मैने अपने पिता जी से पूछा कि पिता जी ये शक्तिमान चेतन है फिर ये चूहे को अपने ऊपर कैसे चढ़ने दे रहे है। तब पिता जी ने कहा कि कैलाश पर जो महादेव रहते है उनकी मूर्त बना कर पूजा करते है कलियुग में उस का दर्शन साक्षात नही होता है । ऐसा सुनकर मुझे भ्रम हो गया है । उसी समय मन में संकल्प लिया कि अगर ये शिव सत्य नही है एक दिन अवश्य ही अपने पुरुषार्थ और विवेक से सच्चे और सत्य शिव रूपी प्रभु के दर्शन अवश्य करूंगा।
मनुष्य के विचार ही उसकी शक्ति है। महर्षि से सीखे।
विचारों की यह दृढ़ता मूलशंकर के चरित्र की ऐसी विशेषता है जिसके कारण वो आजीवन अपनी आस्थाओं और मान्यताओं पर चट्टान की भांति दृढ़ और अविचल रहे। निन्दा अथवा स्तुति हानि अथवा लाभ कोई बाहरी प्रलोभन उन्हें विचलित नही कर सका।
सामान्य मानव के लिए रोग शोक जरा और मृत्यु चाहे किसी भी प्रकार की उत्तेजना प्रदान न करते हो, किन्तु मनस्वी और दार्शनिक पुरुषों के लिए ये घटनाएं सदा ही असाधारणता लेकर आती है और उनके जीवन को निर्णायक मोड़ देने में कारण बनती है।
इतिहास पुरुष ही कुछ विशिष्ट ही होते है जैसे महर्षि दयानन्द सरस्वती जी।
संसार में आम लोगों के जीवन में मरण आदि विषय परेशान करते है लेकिन झकझोरते नही है लेकिन जो इस संसार में कुछ विशिष्ट आत्माएं जो कि दिखने में सामान्य ही होते है लेकिन जीवन में चिन्तन मनन का दृष्टिकोण दूरदर्शी होता है उन लोगों को अपनो की मृत्यु झझकोरती है।
ऋषि दयानन्द सरस्वती जी के जीवन में एक रात जब वो अपने पारिवारिक उत्सव में व्यस्त थे अचानक से उनकी बहन की तबियत बिगड़ती है और मृत्यु को प्राप्त हो जाती है ऋषि दयानन्द जी अंदर तक सिहर जाते है और सोचते है कि एक दिन मै भी ऐसे ही मर जाऊंगा यही से उनके मन में वैराग्य की प्रेरणा जगी जिस वैराग्य को धारण करके जीवन के इस वास्तविक सत्य को समझ करके जन्म मरण से मुक्त हुआ जा सके।
इसके उपरान्त उनके धर्मपरायण प्रिय चाचा जी का अचानक देहावसान हो जाने से अत्यंत वैराग्य हुआ कि संसार कुछ नही है।
इन सब घटनाओं ने महर्षि दयानन्द जी को सत्य ज्ञान क्रांति का अप्रतिम योद्धा बना दिया।
महर्षि दयानन्द जी से प्रेरणा
जिसके कारण बाद के वर्षों में उनकी सत्य की साधना और तपस्या में वो ऊर्जा रही है जिसके कारण असंख्य लोगों में सत्य मार्ग में चलने का संकल्प ही नही लिया अपितु सत्य मार्ग पर चलकर व्यक्ति निर्माण, राष्ट्र निर्माण में अप्रतिम योगदान दिया। आइए संकल्प ले हम सभी महर्षि दयानन्द जी की सिद्धांतों पर चलकर सही अर्थों में ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित रहेंगे।
पण्डित ब्रह्मदेव वेदालंकार
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