हम समाज में प्राय: देखते है की कोई न कोई मनुष्य प्राय: कभी न कभी उपवास में रहता है ।जब हम उपवास में रहने वाले से पूछते है तो वह बड़े ही दिव्या भावो को अपने अन्दर समेटे हुए श्रद्धावान दीखता है ।जब हम सब मिलकर चर्चा करते है की उपवास क्यों रखा जाता है तो कुछ लोग अपनी कामना पूर्ती के लिए उपवास रखते है तो कुछ इसलिए उपवास रखते है की आने वाले कष्टों से उनका छुटकारा हो जायेगा ।लेकिन आईये मिलकर विचार करें की उपवास का वास्तविक अर्थ क्या है ?तो इसका उत्तर यह है की उपवास का अर्थ होता हिया समीप बैठना ,तो प्रश्न उठता है की किसके समीप बैठना ?इसका उत्तर वेदों में मिलता है की इस संसार में तीन चीज शःस्वत और सत्य है-इश्वर ,जीव और प्रकृति ।
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२. दूसरी चीज हम स्वयं है -जीव और हमे प्रभु ने शारीर रुपी साधन इसलिए दिया है की परमात्मा रुपी मंजिल को प्राप्त कर ले ।लेकिन शारीर को लक्ष्य समझकर मंजिल से दूर हो जाते है ।हमे प्रतिदिन ये विचार करना चाहिए की हम जीवात्मा शारीर से अलग और स्वतंत्र है ।
३. तीसरी चीज है -परमात्मा जो की अपने आप में जीव और प्रकृति दोनों से श्रेष्ठ है और सबका पूजनीय है ।अब उपवास का उत्तर मिला की वास्तव में हम सबको अद्भुद शक्तियों से युक्त उस परमात्मा की शरण में रहना ही उपवास है ।आप जब कभी अपने प्रियतम के समीप बैठते है तो उस समय भूख प्यास भूलकर केवल उसके रंग में रंग जाते है ।उपवास का यही भाव है जब हम उस परमात्मा के समीप बैठते है या रहते है तो उसी के गुण धारण कर लेते है और वह प्रभु सुख स्वरुप है तो निश्चित रूप से हम भी सुख से युक्त हो जाते है ।वह प्रभु ऐश्वर्याशाली है तो हम भी ऐश्वर्या से युक्त हो जाते है ।
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तो आईये अपने उपवास से उपासना करें तो निश्चित रूप से हम सभी के अन्दर जो दिव्या शक्तिया सोई पड़ी है वो सब जाग जाएँगी और जब वो शक्तिया जग जाएँगी तो हम मानव से महामानव बनकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करके सुख समृद्ध यशस्वी बन कर उस पलक प्रभु की जय जयकार करेंगे.........